सुल्तान रज़िया का इतिहास - History of Sultan Razia

सुल्तान रज़िया का इतिहास - History of Sultan Razia

  सुल्तान रज़िया का इतिहास - History of Sultan Razia

सुल्तान रज़िया

सुल्तान का चयन करना, तुर्क अमीर अपना विशेषाधिकार मानते थे। मात्र जनसमर्थन के बल पर रजिया का मुल्तान बनाया जाना उन्हें स्वीकार्य नहीं था। प्रान्तीय सूबेदारों के साथ-साथ वजीर निजामुलमुल्क जुनैदी भी उसके राज्यारोहण के विरुद्ध था। रजिया ने अमीरों में फूट डालकर मलिक सालारी तथा मलिक सालारी को अपने पक्ष में कर लिया तथा अपने विरोधियों निजामुलमुल्क जुनेदी, मलिक कूची और मलिक जानी आदि का सुगमता से दमन कर दिया। अब केन्द्रीय शासन में व प्रान्तों में रज़िया के समर्थकों की ही नियुक्ति की गई। उच्च पदों पर तुर्क अमीरों के एकाधिकार को तोड़ते हुए एक अबीसीनियन, मलिक याकूत को अमीर-ए-अखुर नियुक्त किया गया। रणथम्भीर पर राजपूतों द्वारा पुनराधिकार के प्रयास को रज़िया ने विफल कर दिया तथा ग्वालियर के किलेदार के विद्रोह को भी उसने सुगमता से कुचल दिया। रजिया ने अपने शासनकाल में अपने साहस, चातुर्य व योग्यता का परिचय देते हुए विद्रोहियों की हर साज़िश को नाकाम कर दिया।

रज़िया ने एक स्वतन्त्र और शक्तिशाली सुल्तान के रूप में प्रतिष्ठित किया और तुर्काने चहलगानी के प्रभाव को सीमित रखा। उसको तुर्काने चहलगानी का समर्थन कभी भी प्राप्त नहीं हुआ, यह केवल उनमें फूट डालकर अपना सिंहासन बचाए रखने में सफल रही परन्तु अबीसीनियन मलिक याकूत से उसकी निकटता व उसको अत्यधिक महत्व दिए जाने से तुर्क अमीर उसके विरुद्ध संगठित हो गए। रजिया ने लाहौर के सूबेदार कबीर खाँ के विद्रोह का दमन करने में सफलता प्राप्त की किन्तु अमीर-ए-हाजिव मलिक एतगीन, भटिण्डा के सूबेदार अल्तुनिया आदि का वह दमन नहीं कर सकी। मलिक याकूत मारा गया, रज़िया को बन्दी बना लिया गया और रजिया के भाई बहराम शाह को सुल्तान बनाया गया। रज़िया ने असन्तुष्ट अल्तूनिया को अपने पक्ष में कर उसके साथ विवाह कर लिया और फिर से सत्ता प्राप्त करने का अभियान प्रारम्भ किया किन्तु असफलता ही उसके हाथ लगी। पराजित होने के बाद भागते हुए रजिया तथा अल्तूनिया कैथल में डाकुओं द्वारा मारे गए।