शोध समस्या के स्त्रोतशोध समस्या के स्त्रोत - source of research problem

शोध समस्या के स्त्रोत - source of research problem

शोध समस्या के स्त्रोत - source of research problem


व्यक्तिगत अनुभव


शोधकर्ता अपने अनुभव के आधार पर यह जानने का प्रयास कर सकता है कि शिक्षा मनोविज्ञान अथवा समाजशास्त्र के किस क्षेत्र में किस प्रकार की समस्याएँ विद्यमान हैं, जिनका समाधान खोजना आवश्यक है, कितने तथा किस प्रकार के ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर कहीं उपलब्ध नहीं हैं, कितने ऐसे प्रकरण एवं प्रसंग हैं, जिनकी पूरी जानकारी किसी को नहीं है। यदि वह इन क्षेत्रों में कार्य करता है अथवा इन विषयों का विद्यार्थी है, तो उसके ऐसे अनेक अनुभव हो सकते हैं, जिनका संबंध इस प्रकार की समस्याओं, प्रश्नों एवं वांछनीय जानकारी से होता है। यदि उसके अनुभव में कोई समस्या आती है तथा उसका अनुभव समस्या का कोई समाधान सुझाता है, तो उसी को लेकर अनुसंधान किया जा सकता है।


एक अध्यापक को विद्यालय में काम करते हुए छात्रों, सहयोगियों, प्रधानाचार्य आदि के साथ निरंतर अन्तर्क्रिया के फलस्वरूप जो अनुभव होते हैं, उन्हीं में शोध की समस्याएँ उपलब्ध हो सकती हैं। शोधकर्ताओं को मानवीय व्यवहारों के संबंध में जो अनुभव होते हैं, उनमें शोध समस्याओं के संकेत मिल सकते हैं। समाज व्यवस्था एवं संस्थाओं से संबंधित अनुभवों में शोध-समस्याएँ उपलब्ध हो सकती हैं। जहाँ कहीं भी अनुभवगत घटनाएँ, परिस्थितियाँ, व्यवहार, तथ्य समस्या के रूप में प्रतीत होते हैं तथा जिनके समाधान उपलब्ध नहीं हैं, उन्हें शोध समस्याओं के रूप में चुना जा सकता है।


(ख) संदर्भ साहित्य का अध्ययन


शोधकर्ता का अध्ययन शोध समस्या के चयन का दूसरा स्रोत है। प्रत्येक क्षेत्र में विभिन्न विषयों पर बहुत सा साहित्य उपलब्ध है। संबंधित साहित्य का अध्ययन करने पर यह पता चल जाता है कि उपलब्ध ज्ञान का कहाँ उपयोग किया जा सकता है, उसके आधार पर किन घटनाओं की व्याख्या की जा सकती है, कहाँ उसमें अपूर्णता है आदि पढ़ते-पढ़ते कई प्रकार के प्रश्न भी मस्तिष्क में उभर कर आते हैं, जिनके उत्तर खोजना महत्त्वपूर्ण हो सकता है। प्रत्येक क्षेत्र में बहुत से ऐसे सिद्धांत (theories) कथन, सुझाव हो सकते हैं, जो पर्याप्त रूप से परीक्षित एवं वैध प्रतीत नहीं होते। अतः उन्हें लेकर शोध समस्या का निर्धारण किया जा सकता है। बुद्धि के सिद्धांत (theories of intelligence) अधिगम सिद्धांत, व्यक्तिगत सिद्धांत आदि बहुत से सिद्धांतों का निरूपण शिक्षा एवं मनोविज्ञान के क्षेत्र में किया गया है। इनके आधार पर अनेक प्रकार के व्यवहारों, परिस्थितियों एवं समस्याओं का विश्लेषण सम्भव हो सकता है। ये संभावनाएँ भी शोध समस्याओं का रूप ले सकती हैं। अनुसंधान के द्वारा इन सिद्धांतों की वैधता का भी परीक्षण किया जा सकता है।


(ग) पूर्ण हो चुके अनुसंधानों का सर्वेक्षण


प्रत्येक क्षेत्र में पहले ही बहुत से अनुसंधान हो चुके होते हैं। इन अनुसंधानों का अध्ययन करने पर अनुसंधान की नई समस्याएँ उभरकर सामने आती हैं। इन अनुसंधानों का अध्ययन करने पर मस्तिष्क में यह बात उभरकर आती है कि कहाँ कुछ ऐसा छूट गया है, जिसका अध्ययन करना आवश्यक है। जो अनुसंधान पूर्ण हो चुका है, उसी को आगे भी बढ़ाया जा सकता है, उसमें दूसरे महत्त्वपूर्ण चरों को जोड़कर पुनः उस समस्या पर कार्य किया जा सकता है, उसी अध्ययन को दूसरे परिप्रेक्ष्य में भी किया जा सकता है आदि। इन अनुसंधानों का अध्ययन करने पर यह भी ज्ञात होता है कि उस क्षेत्र में अनुसंधान की भावी संभावनाएँ क्या हो सकती हैं, क्योंकि प्रत्येक अनुसंधानकर्ता अपने थीसिस के अन्त में इस प्रकार के सुझाव देता है। इन सुझावों के आधार पर अनुसंधान की नई समस्या का चयन सरल हो सकता है। प्रत्येक क्षेत्र में ऐसे सर्वेक्षण प्रकाशित होते रहते हैं, जो पूर्ण हो चुके अनुसंधानों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हैं। इनका विस्तार से उल्लेख आगे किया जाएगा।


(घ) सामाजिक, तकनीकी एवं शैक्षिक परिवर्तन 


प्रत्येक देश में सामाजिक, तकनीकी एवं शैक्षिक प्रकार के अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। शिक्षा नीतियाँ बनती हैं तथा शिक्षा की व्यवस्था में परिवर्तन किए जाते हैं। देश में तकनीकी परिवर्तन भी होते हैं। समाज में भी बदलाव आता रहता है। इन परिवर्तनों के कारण बहुत सी समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं। इन समस्याओं के समाधान खोजना व्यक्ति एवं समाज के विकास के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हो सकता है। इसी पृष्ठभूमि में शोध की समस्याओं का भी जन्म होता है। इन परिवर्तनों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से विश्लेषण करने पर कितनी ही शोध समस्याएँ उपलब्ध हो सकती हैं। उदाहरण के लिए नई शिक्षा नीति (1986) में शिक्षा के स्वरूप को बदलने के अनेक सुझाव दिए गए हैं। फलस्वरूप कितने ही नये सवाल एवं नई समस्याएँ उभरी हैं, जिनके उत्तर एवं समाधान अनुसंधान द्वारा ही खोजे जा सकते हैं। जीवन-मूल्यों का ह्रास, बढ़ती हुई धर्मान्धता, लोकतंत्र समर्थित स्वतंत्रता का दुरुपयोग तथा बिगड़ता हुआ संस्थाओं का वातावरण, संस्थाओं में बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार, शिक्षा संस्थाओं की घटती सार्थकता आदि अनेक ऐसे परिवर्तन हैं, जिन्होंने हमारे देश में अनेक प्रकार की समाजशास्त्रीय मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षिक समस्याओं को जन्म दिया है, जिन पर गम्भीरतापूर्वक अनुसंधान करने की आवश्यकता है।


शोध समस्याओं की उपलब्धि के ये कुछ सर्वमान्य स्रोत हैं, परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि इनके अतिरिक्त समस्या-चयन का और कोई माध्यम नहीं हो सकता, तो भी यह सभी स्वीकार करते हैं कि शोधकर्ता के स्वयं के गहन अध्ययन एवं मनन का तो कोई विकल्प हो ही नहीं सकता। शोध समस्या के चयन हेतु तत्संबंधी ज्ञान सागर में तो उसे उतरना ही होगा जिस क्षेत्र में अनुसंधान करना है, उसके संबंध में यदि शोधकर्ता को पर्याप्त वांछनीय जानकारी नहीं है तो उपयुक्त शोध समस्या का चयन सम्भव नहीं हो सकता।


होल्मेस का मत है कि निम्नलिखित प्रश्न शोधकर्ता को समस्या के चयन में सहायता प्रदान कर सकते हैं


1. संबंधित क्षेत्र में जो व्यक्ति वास्तव में कार्यरत हैं. उनके समक्ष किस प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती  हैं?


2. वर्तमान में तथा पिछले कुछ वर्षों में किन समस्याओं पर अनुसंधान किया गया है?


3. संबंधित क्षेत्र में जो अनुसंधान हुए हैं, उनमें किस प्रकार के तथ्य, नियम एवं सामान्यन उजागर हुए हैं?


4. इन तथ्यों नियमों तथा सामान्यनों की व्यावहारिक उपयोगिता क्या हो सकती है?


5. संबंधित क्षेत्र में किए गए अनुसंधानों के परिणामों का व्यवहार में कहाँ तक प्रयोग किया गया है? 


6. किस प्रकार की नई समस्याएँ इन अनुसंधानों के द्वारा उभर कर आई हैं तथा किन पर अनुसंधान किया जाना शेष है? 


7. संबंधित क्षेत्र में अनुसंधान किए जाने के मार्ग में कौन-कौन सी प्रमुख कठिनाइयाँ हैं?


8. संबंधित क्षेत्र में अनुसंधान की कौन-कौन सी तकनीकों एवं प्रक्रियाओं का विकास हुआ है?


9. कौन-कौन सी संकल्पनाएँ हैं, जो संबंधित क्षेत्र में प्रचलित हैं?


10. संबंधित क्षेत्र में किए गए अथवा किए जा रहे अनुसंधानों में किस प्रकार की अवधारणाओं (assumptions) का सहारा लिया गया है?