दहेज निषेध अधिनियम, 1961 - Dowry Prohibition Act, 1961
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 - Dowry Prohibition Act, 1961
दहेज जैसे सामाजिक अभिशाप से महिला को बचाने के उद्देश्य से 1961 में दहेज निषेध अधिनियम बनाकर क्रियान्वित किया गया। वर्ष 1986 में इसे भी संशोधित कर समयानुकूल बनाया गया। यह अधिनियम दहेज लेने और देने पर प्रतिबंध लगाता है। यह दहेज को एक ऐसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति मानता है जिसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विवाह के एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को विवाह के समय या उससे पहले या उसके बाद दिया जाता है। किंतु इसमें दोअर या मेहर शामिल नहीं है - उन व्यक्तियों के मामले में जिन पर मुस्लिम पर्सनल ला (जिसे शरीयत कहते हैं) लागू होता है। यह अधिनियम दहेज देने वाले और दहेज की मांग करने वाले पक्षों को द िकरता है। यह दहेज का विज्ञापन करने वाले विज्ञापनों पर भी प्रतिबंध लगाता है। यह अधिनियम के प्रावधानों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए दहेज निषेध अधिकारियों की नियुक्ति की व्यवस्था करता है तथा साथ ही केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को अधिनियम के बेहतर कार्यान्वयन हेतु निगम बनाने के लिए अधिकृत करता है। अधिनियम के अनुसार यदि दहेज का सामान ससुराल पक्ष के लोग दुर्भावनावश अपने कब्जे में रखते हैं तो धारा 405-406 भा.द.वि. का अपराध होगा। विवाह के पूर्व या बाद में दबाव या धमकी देकर दहेज प्राप्त करने का प्रयास धारा 3/4 दहेज प्रतिषेध अधिनियम के अतिरिक्त धारा 506 भा.द.वि का भी अपराध होगा। यदि धमकी लिखित में दी गई हो, तो धारा 507 भा.द.वि. का अपराध बनता है। दहेज लेना तथा देना दोनों अपराध है।
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