क्रिश्चन विवाह अधिनियम - Christian Marriage Act
क्रिश्चन विवाह अधिनियम - Christian Marriage Act
क्रिश्चन लोगों के लिए भारतीय क्रिश्चन विवाह अधिनियम, 1872 हैं। इसे पारित करने के पीछे यह उद्देश्य था कि क्रिश्चन विवाहों को भारत में संपन्न कराने से संबंधित कानून को समेकित एवं संशोधित किया जा सके। यह अधिनियम ऐसे राज्यों को छोड़ भारत के सभी किञ्चन पर लागू होता है जो नवंबर 1956 से पहले श्रावनकोर, कोचीन, मणिपुर जम्मू एवं कश्मीर में शामिल थे। यह अधिनियम दोनों पक्षों की राष्ट्रीयता या अधिवास चाहे कही का भी हो भारत में संपन्न सभी क्रिशन विवाहों पर लागू होता है। इस अधिनियम में भारतीय क्रिश्चन के अंतर्गत इसाई धर्म अपनाने वाले धर्मपरिवर्तन से इसाई बने हुए भारतीय मूल के इसाई वंशज भी शामिल किए गए हैं।
अधिनियम की धारा 4 के अनुसार दो पक्षा, जिसमें से एक या दोना इसाई है के बीच होने वाला प्रत्येक विवाह अधिनियम की धारा 5 के अनुसार संपन्न किया जाएगा अन्यथा विवाह अमान्य होगा। तलाक अधिनियम, 1969 की धारा 10 में अनुमति है कि यदि पति दूसरा विवाह करने का दोषी पाया जाता है या किसी और से उसके संबंध है तो इस स्थिति में उसकी पत्नी उस पर मुकदमा दायर कर सकती है।
धारा 494, भारतीय दंड संहिता (द्विविवाह) के अंतर्गत किए गए न्यायिक फैसलों में व्यक्त है कि किसी भी इसाई व्यक्ति की एक से अधिक पत्नी या उसका एक से अधिक पति नहीं हो सकता। तलाक के मामले में महिलाओं के प्रति पक्षपातपूर्ण प्रावधानों को हटाने के लिए भारतीय तलाक (संशोधन) अधिनियम, 2001 के जरिए भारतीय तलाक अधिनियम, 1896 में व्यापक संशोधन किए गए। इसके अतिरिक्त इस अधिनियम की धारा 36 और 41 में विवाह कानून (संशोधन) अधिनियम, 2001 के जरिए संशोधन किया गया, ताकि गुजारा खर्चा अथवा नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण और शिक्षा व्यव के बहन के लिए दी जाने वाली याचिका का निपटारा प्रतिवादी को नोटिस दिए जाने के 60 दिनों के भीतर किया जा सके।
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