मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 - Mental Health Act, 1987
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 - Mental Health Act, 1987
मानसिक रुग्णता से प्रभावित व्यक्तियों के प्रति समाज का दृष्टिकोण बहुत बदल गया है और अब • सार्वभौमिक रूप से महसूस किया जा रहा है कि इस प्रकार की रुग्णता के प्रति कोई कलंक नहीं जुड़ना चाहिए, क्योंकि यह उपचार योग्य है। 19वीं सदी के शुरुवात में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित पागलपन अधिनियम 1912 का उल्लेख मिलता है, अभी वह अप्रचलित हो गया है। इस अधिनियम ने आधुनिक समाज में अपनी प्रासंगिकता खो चुका है क्योंकि मनोचिकित्सा के क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई है। इन बीमारियों के प्रकृति को समझते हुए नए स्वरूप में मानसिक रोग ग्रस्त व्यक्तियों के उपचार हेतु बेहतर उपबंधों सहित एक नया विधान लाना आवश्यक है। मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987 उसी दिशा में एक कदम है, जो एक लंबे समय से चली आ रही कानूनी कमी को पूरा कर रहा है।
मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987 को मानसिक रूप से रोगी के उपचार और देखभाल से संबंधित कानून को एकत्रित और संशोधित करने के लिए पारित किया गया था ताकि उनकी संपत्ति और मामलों तथा उनसे संबंधित अन्य आनुषंगिक मामलोंके संबंध में बेहतर उपबंध बनाए जा सकें, जिसमें 98 धाराएं हैं, जिन्हें 10 अध्यायों में विभक्त किया गया है और यह सभी राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों में लागू होता है। मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987 के अंतर्गत भी विशेष योग्यजनों के संरक्षण हेतु कुछ प्रावधान किए गए है। इस के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है
• स्वैच्छिक रूप से इलाज करवाने हेतु इच्छित ज्ञान न रखने वाले एवं इलाज के दौरान निरुद्ध किए गए मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को मनोचिकित्सालयों एवं नर्सिंग गृहों में भर्ती को नियमित करना एवं इनके अधिकारों को संरक्षित करना।
मानसिक रूप से अस्वस्थ्य व्यक्तियों से समाज का संरक्षण करना।
• मनोचिकित्सालयों एवं नर्सिंग गृहों में बिना किसी वांछिनीय कारण के विरुद्ध नागरिकों संरक्षण प्रदान करना।
• मनोचिकित्सालयों एवं मनश्चिकित्सकीय नर्सिंग गृहों में भर्ती हुए मानसिक रोगियों के अनुरक्षण शुल्कों के उत्तरदायित्व को नियमित करना।
• अपने कार्यों के कारण में असमर्थ मानसिक रोगियों के लिए संरक्षकत्व की सुविधा उपलब्ध कराना।
मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए केंद्रीय प्राधिकरण एवं राज्य प्राधिकारियों की स्थापना
कराना।
• मानसिक रोगियों के लिए स्थापित होने वाले मनश्चिकित्सकीय अस्पतालों एवं मनोचिकित्सकीय नर्सिंग गृहों को लाइसेन्स देने एवं इन पर नियंत्रण करने की शक्तियों को नियंत्रित कराना।
• कुछ विशिष्ट प्रकार के मानसिक रोगियों को राज्य के खर्च पर कानूनी सहायता उपलब्ध कराना। यह कानून सारे भारतवर्ष पर लागू है इस कानून के अंतर्गत मानसिक रोगियों के संरक्षण अथवा अन्य व्यक्तियों द्वारा मानसिक रोगियों के इलाज के लिए स्थापित मनोचिकित्सकीय अस्पताल एवं मनोचिकित्सकीय नर्सिंग गृह एवं मानसिक रोगियों के स्वास्थ्य लाभ हेतु स्थापित गृह आते हैं।
अध्याय 2 के अधीन केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए क्रमशः केंद्रीय प्राधिकरण और राज्य प्राधिकरण स्थापित करने की शक्तियां प्रदान की गई हैं।
अध्याय 3 के अधीन केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों को जैसा ये उचित समझे, उन स्थानों पर मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्तियों के दाखिले और देखभाल के लिए मनोरोग अस्पतालों या मनोरोग उपचर्या गृहों की स्थापन और रखरखाव की शक्तियां प्रदान करता है।
अध्याय 4 के अधीन मनोरोग अस्पताल या मनोरोग उपचय गृह में दाखिले के लिए प्रक्रियाओं का उपबंध करता है।
अध्याय 5 के अधीन मनोरोग अस्पताल या मनोरोग उपचर्या गृह के लिए पाँच से अन्यून आगंकों की नियुक्ति का उपबंध करता है जिनमें से कम-से-कम एक मनश्चिकित्सक या कम-से-कम एक चिकित्सा अधिकारी और दो सामाजिक कार्यकर्ता होने चाहिए। यह ऐसे मनोरोग अस्पताल या मनोरोग उपचर्चा गृह और उसके रोगियों के प्रबंधन और दशा के संबंध में तीन अन्यून आगंतुकों द्वारमासिक संयुक्त निरीक्षण का उपबंध करता है। यह मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति की देखभाल के लिए उसके रिश्तेदारों या मित्रों से अभिवचन लेने के पश्चात मनश्चिकित्सक द्वारा प्रमाणित किए जाने पर उस मनोरोग अस्पताल या मनोरोग उपचर्या गृह से मानसिक रूप एसआर रुग्ण व्यक्ति की छुट्टी का उपबंध भी करता है जहां पर ऐसे व्यक्ति को किसी मनोरोग अस्पताल या मनोरोग उपचर्चा गृह में अवरुद्ध स्थल पर तीन माह में दौरा करेगा और उस पर प्राधिकरण को एक रिपोर्ट तैयार करके देगा जिसके आदेश से उस व्यक्ति का अवरुद्ध किया गया है।
अध्याय 6 के अधीन संपत्ति रखने वाले कथित मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति के संबंध में परीक्षण उसकी अभिरक्षा और उसकी संपत्ति का प्रबंधन का दायित्व प्रदान करता है।
अध्याय 7 के अधीन मनोरोग अस्पताल या मनोरोग उपचर्चा गृह में अवरूद्ध मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति की देखभाल की लागत की पूर्ति हेतु उपबंध करता है।
अध्याय 8 के अधीन मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्तियों के मानव अधिकारों की रक्षा करना है और यह इसकी कानूनी पहचान है। इसमें बताया गया है कि मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति का उपचार के दौरान कोई निरावर या क्रूरता नहीं होगी। इसमें यह भी बताया गया है कि उपचार के दौरान मानसिक रूप से रुग्ण किसी भी व्यक्ति का उपयोग अनुसंधान कार्यों के लिए नहीं किया जाएगा जब तक कि निदान या उपचार के लिए ऐसा अनुसंधान सीधा लाभ नहीं पहुंचता है।
अध्याय 9 के अधीन इस बात का प्रावधान है कि अध्याय 3 के उपबंधों का उल्लंघन करने पर मनोरोग अस्पताल या मनोरोग उपचर्या गृह की स्थापना पर जुर्माना लगाया जाए। मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को ठीक न रखने पर भी इसमें व्यवस्था है।
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