जनजातीय विकास की केंद्रीय प्रायोजित योजनाएं - Centrally Sponsored Schemes of Tribal Development

जनजातीय विकास की  केंद्रीय प्रायोजित योजनाएं - Centrally Sponsored Schemes of Tribal Development


प्रायोजित योजनाओं के उपर राज्यों एवं केंद्र शामिल प्रदेशों को वित्तीय सहायता 50:50 प्रतिशत के आधार दी जाती है। इन योजनाओं के उपर कें550 प्रतिशत खर्च करता है तथा राज्य को 50 प्रतिशत खर्च करना पड़ता है। 50:50 प्रतिशत सहभागिता के आधार पर जनजातीय विकास के लिए निम्नलिखित योजनओं का क्रियान्वयन किया गया है। 


> अनुसूचित जनजातीयों के लिए बालिका छात्रावास का निर्माण 


> अनुसूचित जनजातियों के लिए बालक छात्रावास का निर्माण


> जनजातीय उपयोजना क्षेत्र 

> अनुसंधान एवं प्रशिक्षण के अंतर्गत आश्रम स्कूलों की स्थापना


केंद्रीय क्षेत्र परियोजना, जिसमें राज्यों केंद्र शासित प्रदेशों एवं गैरसरकारी संगठनों को शत-प्रतिशत


वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस प्रकार की सहायता राशि निम्नलिखित योजनाओं के लिए प्रदान की जाती है:


> जनजातीय क्षेत्रों में व्यवसाय आधारित प्रशिक्षण


• जनजातीय क्षेत्रों में महिला साक्षरता विकास हेतु निम्न साक्षर पाकेट्स में शैक्षणिक संकुल


आदिम जनजातीय समूहों (PTG) का विकास केंद्रीय परियोजना, जिसमें 90 प्रतिशत से शत-प्रतिशत सहायता स्वयंसेवी संगठनों को प्रदान की जाती हैं इसके अंतर्गत वैसे स्वयं सेवी संगठनों को00 प्रतिशत से लेकर 100 प्रतिशत तक वित्तीय सहायता दी जाती हैं, जो अनुसूचित जनजातियों कल्याण के लिए कार्य करते हैं।


वे केंद्रीय क्षेत्र केंद्र प्रायोजित योजनाएं, जिन्हें सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से दो शाखाओं में बांटकर चलाई जा रही है। इस प्रकार के कल्याण योजनाएं निम्नलिखित है


> अनुसूचित जनताति के विद्यार्थियों को मैट्रिक के बाद भारत में पढ़ने के लिए छात्रवृति


→ अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को विदेशों में पढ़ने के लिए छाज्वृत्ति > अनुसूचित जनजाति के छात्रछात्राओं के लिए पुस्तक


अनुसूचित जनजाति के लिए कोचिंग एवं सहबद्ध योजना


राज्य अनुसूचित जनजातीय विकास निगमों को सहायता


अनुसूचित जनजाति के लिए मेधा उन्नयन परियोजना


अनुसूचित जनजातियों के विकास के मूलभूत पक्षों पर चर्चा की विभिन्न विकास प्रयासों के स्वरूप एवं विषय वस्तु पर विचार करने से पूर्व हमने जनजाति काअर्थ, विशेषताएँ, उनके सामाजिक संगठन एवं संवैधानिक स्थिति आदि पर विस्तार से बात की है। हमने यह भी देखा है कि जनजातियों के विकास में वृद्धि के लिए एक राष्ट्रीय जनजाति आयोग और जनजातियों के विकास में संबंधित नीतियों एवं कार्यक्रमों को भी देखा है।


प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ताओं को इन जनजातियों के अधुनातन जीवन से समंजन हेतु प्रयत्नशील होना चाहिए और समाज कार्य संबंधी विभिन्न विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के विभागों के अध्यापक एवं छात्रों को इनके बीच कार्य करना चाहिए, ताकि समाज कार्य के छात्रों को इनकी संस्थाओं जैसे विवाह, परिवार, धर्म, जादू युवागृह संस्कृति गोत्र गोत्रवाद, नातेदारी इत्यादि के विषय में पूरी जानकारी हो, ताकि इन्हें इनके बीच कार्य करते समय किसी प्रकार की परेशानी न आए। ऐसे कार्यकर्ताओं की उपलब्धि से निश्चय ही न्यायपूर्ण जीवन की संभावनाएँ बढ़ेगी औरये जनजातियाँ अपनी मौलिकता की अक्षुणता के साथ साथ अभिनव जीवन और समाज से अधिकाधिक अभिभूत हो सकेंगी इनमें आर्थिक शोषण कमतर होगा, साक्षरता एवं शिक्षा बढ़ेगी स्वास्थ्यकर प्रवृत्तियाँ विकसित होगी।