महात्मा गांधी का सम्पूर्ण क्रांति और सर्वोदय - Complete Revolution and Sarvodaya of Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी का सम्पूर्ण क्रांति और सर्वोदय - Complete Revolution and Sarvodaya of Mahatma Gandhi


समाज छोटी-छोटी इकाइयों से मिलकर बनता है। सभी इकाई मिलकर समाज के कार्य के प्रकार्य को पूर्ण करती है। समाज की चेतना पूर्ण तभी बनती है जब सम्पूर्ण इकाई आपस में मिलकर काम करे जब किसी व्यक्ति विशेष की विचार शक्ति इतना ताकतवर होती है कि समाज को प्रभावित बड़े पैमाने पर करती है तो व्यक्ति सामाजिक के परिवर्तन का अग्रदूत बन जाता है। समाज लम्बे समय तक सामान्य दरें पर चलता रहता है। प्रभावशाली व्यक्ति समाज में अपने विचारों एवं कृत्यों से पूरा परिदृश्य बदल देता है तथा क्रांतिकारी परिवर्तन करता है। क्रांति समाज में अमूलचूल परिवर्तन का बाहक होती है। दुनिया का हर समाज अपने जीवन यात्रा में क्रांति के दौर को भी देखा होता है। जिसका प्रभाव समाज पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। भारत गुलामी से निकल कर स्वतंत्रता की जीवन यात्रा 1947 से प्रारंभ किया। लगभग ढाई दशकों के बाद गांधी के ही एक अनुयावी जयप्रकाश के नेतृत्व में 1975 के आस-पास एक क्रांति प्रारंभ की गई जिसे जयप्रकाश ने सम्पूर्ण क्रांति का नाम दिया।


सम्पूर्ण क्रांति का अभिप्राय


सम्पूर्ण क्रांति को समग्र क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांतिका अर्थ भ्रष्ट्राचार, कुशासन, कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, जामखोरी एवं विद्यमान शिक्षा व्यवस्था में बदलाव को मानते थे जहाँ मालिक एवं मजदूर के बीच विभाजक रेखा खत्म हो जायेगी तथा सभी प्रकार के विवाद भी समाप्त हो जायेंगे। प्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति की प्राप्ति का मार्ग मार्क्सवादी न मानकर गांधीवादी माना। उन्होंने सत्य, अहिंसा सामुदायिक विकास के साथ-साथ सर्वोदय एवं सामाजिक लोकतंत्र की बात की। बदलाव की प्रक्रिया सम्पूर्ण क्रांतिम अमूलचूल परिवर्तन लाती है ऐसा जयप्रकाश नारायण का विश्वास था।


सम्पूर्ण क्रांति और सर्वोदय


सम्पूर्ण क्रांति की अवधारणा जयप्रकाश नारायण ने दिया था यहाँ सर्वोदय की अवधारणा महात्मा गांधी ने दिया था। व्याकरण के दृष्टि से देखा जाये तो एक क्रियात्मक तथा दुसरा ज्ञात्मक अर्थ को धारण करता है। जब स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में राजनैतिक शिथीलता एवं व्यवस्था की बदहाला पैदा हो गई तो जयप्रकाश नारायण को गांधी के सर्वोदय के लक्ष्य का न पूरा होते हुए परिदृश्य दिखा। अतः सर्वोदय की प्राप्ति के लिए एक बार पुनः भारत में क्रांति हो इसलिए जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया। जयप्रकाश का मानना था कि सर्वोदय निर्वाचन पद्धति, दलीय संगठन में विश्वास न करके प्रत्यक्ष लोक तंबकी बात करता है जबकि देश आजादी पाने के बाद राजनैतिक तौर पर गुटतंत्र का शिकार हो गया। जिसे सम्पूर्ण क्रांति के द्वारा खत्म के सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना करनी होगी। अप्रकाश नारायण मानते थे कि आधुनिक समाज में लोकतंत्र एक अपरिहार्य शर्त है पर इसकी उपयोगिता तब होगी जब ईमानदार एवं परार्थ भाव से कार्य करने वाले लोग आगे आकर कार्य करा राजनैतिक शक्ति के बगैर की समाज के हित में कार्य किया जा सकता है इसलिए महात्मा गांधी कांग्रेस को एक समाज सेवी संस्था के रूप में बदलने की बात की थी। जयप्रकाश जी संगठित दबाव समूह के अस्तित्व को लोकतंत्र के लिए उपयोगी मानते थे जो वगैर राजनैतिक शक्ति के काम करेगा। जयप्रकाश नारायण यह भी मानते थे कि कल्याणकारी राज्य व्यवस्था में नौकरशाही भ्रष्ट चरित धारण कर लेती है। भारत में स्वतंत्रता के बाद राजनैतिक एवं नौकरशाही में परिर्वन हेतु की सम्पूर्ण क्रांति की बात जे.पी. ने की थी।


सम्पूर्ण क्रांति की पुष्टिभूमि


इतिहास में उस समय को ज्यादा महत्व दिया जाता है जो परिवर्तनका सूचक रहा है। उसे भी बेह सम्मान के साथ खुली आखों से देखना चाहिए जन परिवर्तन की बीज समय के गर्भ में बोई गई थी। 15 अगस्त, 1947 को भारत ने स्वतंत्रता के सौभाग्य एवं अधिकार दोनों को प्राप्त किया। देश की शासन की बागोर पं. नेहरू ने प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में संभाली तो चुनौतियाँ अपार मुँह बाये उनके सामने खड़ी थी। नेहरूजी के इरादों में निः संदेश इमानदारी, कर्तव्यनिष्ठता एवं लोकतांत्रिक भावना का संगम विद्यमान था। भारत को कल्याणकारी राष्ट्र के रूप में पं. ने आगे बढ़ाना उचित समझा दुर्भाग्य से कल्याणकारी राज्य का मॉडल भ्रष्ट नौकरशाही एवं शोषित औद्योगिक संस्थाओं का चेहरा धारण कर लिया। नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधान मंत्री बने लगभग दो वर्षके बाद उनके भी लौकिक जीवन का सूरज डूब गया। देश की आगडोर तृतीय प्रधानमंत्री के तौर पर जवाहर लाल की एक लोती पुत्री इंदिरा गांधीने संभाली। धीरे-धीरे इंदिरा • गांधी सत्तावादी नजरिये से ग्रस्त हो गई। एक तरफ देश में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अशिक्षा, भूखमति शोषण की चौमारी देश की आत्मा को नील रही थी तो दूसरे तरफ प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी निरंकुश शासकका चेहरा धारणकर चुकी थी। देश का नागर समाज समझ चुका था कि राष्ट्र भटकाव के रास्ते पर चल पड़ा है। इस समय में बीहार में जयप्रकाश नारायण एक किरण के रूप में दिखे। बीहार छात्र संघर्ष समितिने अयप्रकाश नारायण से आंदोलन का नेतृत्व करने की बात की। जयप्रकाश नारायण दो शर्तों के साथ नेतृत्व करने की स्वीकृति दे रही। प्रथम शर्तें आंदोलन अहिंसक होगा एवं दूसरी शर्त यह थी कि आंदोलन का आकार बिहार से बाहर भी होना। इस प्रकार जयप्रकाश के हाथों में आंदोलन की लगाम आते ही आंदोलन बड़ा रूप धारण कर लिया। अप्रैल, 1974 के मध्य में आंदोलनकारियों ने गुजरात विधानसभा के समान बिहार विधान सभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की। 5 जून को गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने आबादी के सपनों पूरा करने के लिए संपूर्ण क्रांति का नारा दिया।

उन्होंने कहा कि आंदोलन की रह कंतकाकीरण एवं बेहद संघर्षमय है फिर भी जीत सत्य की होगी। सम्पूर्ण क्रांति भ्रष्ट्राचार एवं पूंजीवादी व्यवस्था की जड़ों को उखाड़े के लिए आवश्यक है। धीरे-धीरे पूरे देश में रेल हड़ताल बंदी एवं विरोध प्रारंभ हो गया। प्रधानमंत्री इंदिरा •गांधी ने पैतरा बदला एवं 1974 में परमाणु परिक्षण कराकर आंदोलन की आग को ढूंढी कर दिया पर यह आग कुछ दिनों एवं सदर्भों में ही हड़ी हो पाई। जयप्रकाश नारायण ने सामाजिक आर्थिक बदलाव के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था की मांग की। उनका छोड़ रूप से कहना था कि भारत में वर्ग व्यवस्था आजादी के सपनों पर पानी फेर देना। वर्गविहीन समाज भारत में हो एवं कोई नवीन वर्गन पैदा हो सके जय प्रकाश नारायण ने अपने आंदोलन के समय लोगों को यह भी बताया कि शिक्षा के कभी के कारण सम्पूर्ण क्रांति पाना असंभव है इसलिए शिक्षा एक ऐसी शर्तें है जो सर्व मुलभ हो। स्थितिया बदलती गई। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दबाव में आती गई। अन्ततः 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा करके पूरे भारत में आंदोलन को दबाने की कोशिश की।


सम्पूर्ण क्रांति का विमर्श 


लोकन होता ही एक इतिहास के दहलाबपर हर ऐतिहासिक घटनाका दो तरह से अवलोकन होता है। एक यह कि संबंधित पटना ने क्या समाज एवं व्यवस्था के सापेक्ष पाया और क्या खोया। इस तरह सम्पूर्ण क्रांति के भी दो पक्ष उभरकर सामने आते है। प्रथम सकारात्मक पक्ष एवं द्वितीय नकारात्मक पक्ष 1. सकारात्मक पक्ष सम्पूर्ण क्रांति की नींव जयप्रकाश नारायण ने डाली और आगे बढ़ाया। जिसका आधार गांधी जी के दर्शन एवं सिद्धांत प्रमुख कारक थे। जयप्रकाश जी भी गांधी जी जैसे


किसी राजनैतिक पद पर आसीन न होकर समाज के लिए सेवा एवं त्याग से कार्य करते रहे। यह बात उनके एक कविता से भी स्पष्ट होती है कि सफलता और विफलता की पार्टभाषाएँ भिन्न हैं मेरी इतिहास से पूछो की वर्षों पूर्व बन नहीं सकता था प्रधानमंत्री किन्तु मुझ क्रांतिशोधक के लिए कुछ अन्य ही पक्ष मान्य थे, पथ त्याग के सेवा के निर्माण के निर्माण के और संपूर्ण क्रांति के सम्पूर्ण क्रांति भूमिगत क्रांति थी। यह गांधी जी के रामराज्य के सपने के पूरा करने के लिए की गई थी। सम्पूर्ण क्रांति के द्वारा स्वराज के आदर्श रूप में को जयप्रकाश पुनः ए जिसके कारण तत्कालीन शासन सत्ता उखड़ गई और आज भी राजनै 118/144 की कोशिश कायम रहती है।


सम्पूर्ण क्रांति समाजवाद की स्थापना की शंखनाद थी जो जयप्रकाश नारायण के त्याग एवं सेवा स प्रतिध्वनित हुई। राष्ट्र का युवा वर्ग इस क्रांति के दम पर अपनी शक्ति का अहसास कराया और सो रही राजनैतिक सत्ता को कर्तव्य पालन हेतु जगाया। इस क्रांति ने अपने गर्भ से कुछ ऐसे राष्ट्रीय नेताओं को मे पैदा किया जो आज भी भारतीय राजनीति में अपना एक विशेष स्थान रखते है। इस संपूर्ण क्रांति ने देश के दलित, कमजोर एवं पिछड़े वर्ग के लिगों को राजनैतिक रूप से जगा दिया और वे लोन अपनी उपस्थिति दर्ज कराना प्रारंभ किये। मगर दुःख है कि कई कारणों वश सत्ता के गलियारे में सम्पूर्ण क्रांति का सपना खो गया।


II. नकारात्मक पक्ष सम्पूर्ण क्रांति के संदर्भ में एक खेमा भारतीय चिंतकों का ऐसा भी था जो उस समय जे. पी. आंदोलन की निंदा कर रहा था और आज भी करता है। उनका कहना है कि सम्पूर्ण क्रांति राष्ट्र विरोधी आंदोलन थी। यह क्रांति जनता के द्वारा दी गई जनादेश की अवहेलना करने वाली थी। इसके भारतीय संविधान एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था को पूरी तरह नकारते हुए व्यक्तिवादी एवं गुटतंत्र की स्थापना करने की कोशिश की विरोधी के तौर पर तो यह भी कहा जाता है कि संघ ने इस क्रांति को आग दिया जो अखिल भारतीय विद्यार्थी संगठन के द्वारा आगे बढ़ावी गई। जयप्रकाश नारायण तो मात्र एक मुखौटा हो इसके पीछे हिन्दुवादी ताकते प्रमुख रूप से जिम्मेदार थी। इस क्रांति के संदर्भ में वह भी एक आक्षेप उठाया जाता है कि संपूर्ण क्रांति सिर्फ उन्नति भारत के उत्तर प्रदेश एवं बीहार प्रांत तक सीमित थी। इसका प्रभावशेष भारत पर नगण्य था। जिसके कारण इस क्रांति का प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं पद्मा इस प्रकार स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण क्रांति की स्थिति जयप्रकाश नारायणके नेतृत्व में उतना प्रभावकारी नहीं हो पाई जितना की इसे देखा जाता है। मैत्री


सम्पूर्ण क्रांति एवं समाज कार्य


सम्पूर्ण क्रांति का अर्थ समाज में अमूलचूल परिवर्तन से होता है। जहाँ समाज में समानता, सहभागिता सामुहिक प्रयास न्याय एवं गैर-बराबरी के मूल्यों की स्थापना के लिए जयप्रकाश नारायण द्वारा • सम्पूर्ण क्रांति की विगुल बटजाई गई। समाज कार्य का उद्देश्य भी समाज में कमजान, दलित एवं असुरक्षित • लोगों की सेवा तथा कल्याण करना होता असुरक्षित लोगों की सेवा तथा कल्याण करना होता है। उसके लिए समाज कार्य अपने व्यावसायिक सिद्धांतों एवं उपागमों का प्रयोग करता है।


समाज कार्य की रेडिकल विचारधारा का कहना है कि समस्था की पैदाइस समाज द्वारा की जाती है इसलिए समाज में परिवर्तन लाये बगैर व्यक्ति, समूह एवं समुदाय की समस्या का निदान करना संभव नहीं होता है। • संपूर्ण क्रांति भी इसी लाभांश बिन्दु से समाज को देखनेका कार्य करती है। जयप्रकाश नारायण को देखने का कार्य करती है। जयप्रकाश नारायणजी का पूर्ण विश्वास था कि सामाजिक संस्थाओं में परिवर्तन लाकर ही • समाज के प्रकार्य को बदला जा सकता है। इसी लिए उन्होंने संपूर्ण क्रांति की बात की थी। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि एक समाज कार्य कर्ता को चाहिए कि वह पूरी तरह से समाज में परिवर्तन लाने के लिए संपूर्ण क्रांति के सिद्धांतों एवं नियमों का अनुप्रयोग कर सके। संपूर्ण क्रांति इस सिद्धांत की पूरी तरह से मुक्ति करती है कि बदलाव भारत में अहिंसा, त्याग एवं सेवा के भावना से संभव है और इन मूल्यों के साथ ही समाज कार्य के उद्देश्य को पूरा किया जा सकता है।


जयप्रकाश नारायण जी गांधी जी के परम शिवम एवं अनुयायी थे। वे समाज बादी की स्थापना के हिमायती थे। जीवन पर्यंत उन्होंने गैर-सरकारी, अन्याय, आलोकतांत्रि व्यवस्थातथा भ्रष्ट्राचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। 1947 में जयप्रकाश नारायण द्वारा प्रारंभ की गई क्रांति पूरी तरह से अहिंसक थी जिसमें किसानों, मजदूरों एवं छात्रों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इस क्रांति का ऐसा प्रभाव पड़ा कि एक क्षत शासन में रहने वाली कांग्रेस एवं इंदिरा सरकार धाराशायी हो गई। इस क्राति ने भारतीय राजनेताओं को एक बार पुनः आत्म मंचन करने के लिए विवश की। जिसका परिणाम यह निकला कि भारत में दलित, पिछड़ा समाज की राजनीति भी प्रारंभ हो गई।


समाज कार्यकर्ता की दृष्टि से सम्पूर्ण क्रांति एक ऐसी दिशा प्रदान करती है जो मानती है कि संस्थागत एवं प्रकार्यवादी परिवर्तन के द्वाराही संपूर्ण समाज की कायापलट की जा सकती है। बगैर संमय, त्याग एवं अहिंसा के मूल्यों के स्थापना के समान असहिष्णु एवं अराजक होगा। जहाँ सुख-चैन नहीं प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए समाज कार्यकर्ता को व्यावसायिक सिद्धांतों के साथ-साथ मानवतावादी सिद्धांतों के अनुप्रयोग करने की आवश्यकता भी है।