नारीवादी आंदोलन - Feminist Movement

नारीवादी आंदोलन - Feminist Movement

हालांकि नारीवादी आंदोलन स्वतंत्रता से पूर्व भारत में पूर्ण रूप से महिला अथवा नारी केंद्रित नहीं रहा तथापि कई सामाजिक मुद्दों में से नारी उत्थान भी एक अहम मुद्दे के रूप में रहा है। भारत में पश्चिम समाजों के जैसे इसका कोई स्पष्ट स्वरूप परिलक्षित नहीं होता है। मध्यकालीन भारत में महिलाओं की स्थिति अत्यंत निम्न हो चुकी थी यथा सती प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, विधवा पुनर्विवाह पर निषे,हिंदू क्षेत्रीय शासकों की बहु विवाह प्रथा, राजस्थान के राजपूतों में महिलाओं की जोहर प्रथा देवदासी प्रथा आदि। 19वीं सदी के आरंभ से ही समाज सुधारकों का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ और उन्होंने इसके खिलाफ प्रयास आरंभ कर दिए। इसमें प्रमुख रूप से आर्य समाज ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन जैसे संगठन सम्मिलित हैं। प्रमुख पुरुष समाज सुधारकों में से राजराम मोहन राय दयानंद सरस्वती, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, डी घाँडो केशव कर्वे, स्वामी विवेकानंद सैयद अहमद खान, बदरुद्दीन तैयबजी गांधी अबेडकर के नाम उल्लेखनीय है। 1910 और 1920 के दशक में कई आंदोलनों में महिलाओं की उपस्थिति भी देखी जाने लगी। 19वीं सदी के सुधार आंदोलनों व स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के रूप में महिलाओं ने स्वयं को प्रबल तरीके से प्रस्तुत किया। घरिघार महिला संगठनों की स्थापना की जाने लगी, यथा- भारतीय महिला संप (1917), भारतीय महिलाओं की राष्ट्रीय परिषद तथा अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (1927)। प्रमुख महिला समाज सुधारकों में हैं. सावित्री ज्योतिबा फुले, ताराबाई शिंदे पंडिता रमाबाई स्वर्णकुमारी देवी, सिस्टर निवेदिता, सरोजिनी नायडू, एनी बेसेंट, कमला नेहरू, रोया सखाबत हुसैन, डॉ. मुधु लक्ष्मी रेड्डी दावी सुब्बुलक्ष्मी अरुणा आसफ अली, कमला देवी, विजय लक्ष्मी पंडिता इसके अलावा सरकार द्वारा कई प्रावधान कार्यक्रमा द्वारा भी महिलाओं की स्थित में उत्तरोत्तर परिवर्तन लाने के प्रयास किए गए है।