भारतीय समाज की संरचना - Structure of Indian Society
भारतीय समाज की संरचना - Structure of Indian Society
सभी समाजों की एक पृथक संरचना होती है जो विभिन्न परंपराओं व संस्कृति में निहित होती है। भारतीय समाज की संरचनाओं व सांस्कृतिक जीवन को देखने पर कहा जा सकता है कि मूल रूप से यह दो आधारों पर टीका हुआ है
● व्यक्ति एवं समाज का संतुलित समन्वय
विश्वबंधुत्व की भावना एवं उसका प्रचार, जिसके कारण सांस्कृतिक समन्वय संभव हुआ है। लुईस इयूमाजी.एस. पूरिए मेडलबाम, योगेंद्र सिंह, एम. एन. श्रीनिवास, एस.सी. दूबे आन्द्रे येते, इरावती कर्वे, डी.एन. मजूमदार, हिचकॉक आदि कई विद्वानों द्वारा भारतीय समाज का अध्ययन किया गया है। योगेंद्र सिंह ने भारतीय समाज के चार प्रमुख संरचनात्मक एवं परंपरागत लक्षण प्रस्तुत किए हैं.
● श्रेणीबद्धता या संस्तरण
• समग्रवाद अथवा संपूर्णवाद
निरंतरता
• लौकातीतत्व
एम. एन. श्रीनिवास ने सांस्कृतिक विविधता को भारतीय समाज की प्रमुख विशेषता माना है। विभिन्न विद्वानों द्वारा भारतीय सामाजिक संरचना के विभिन्न लक्षणों की चर्चा की गई है। ये सभी लक्षण शून्य में नहीं, अपितु गाँवों, कस्बों व नगरों में पाए जाते हैं।
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