विवाह में आधुनिक परिवर्तन - Modern Change in Marriage
विवाह में आधुनिक परिवर्तन - Modern Change in Marriage
जिस प्रकार से आधुनिक समाज ने परिवार को परिवर्तित किया है उसी प्रकार से विवाह में भी कई नवीन परिवर्तन देखने को मिलते हैं, जो इस प्रकार हैं
1. विवाह संबंधी निषेधों और कर्मकांडों में परिवर्तन
अतीत में विवाह करने से पूर्व कई निषेधों का पालन किया जाता था और साथ ही विवाह के दौरान भी कई कर्मकांडों को संपन्न किया जाता था। गोत्र जाति, प्रवर आदि के अपने-अपने निषेध होते थे। वैवाहिक कर्मकांड दो से तीन दिन तक लगातार विधि-विधान के साथ चलते रहते थे. परंतु वर्तमान में गोत्र, जाति, प्रवर आदि से संबंधित निषेध अपेक्षाकृत शिथिल हुए हैं और साथ ही वैवाहिक कर्मकांडों का प्रयोग नाम मात्र ही किया जाता है।
2. एक विवाह का प्रचलन
सरकार द्वारा पारित किए गए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत बहुपति और बहुपत्नी विवाह पर रोक लगा दिया गया है और एक विवाह को ही स्वीकार किया गया है। किसी विवाहित द्वारा पत्नी अथवा पति के जीवित रहते हुए या बिना तलाक लिए दूसरा विवाह करना असंवैधानिक है।
3. विवाह-विच्छेद
सरकार द्वारा लागू किए गए कानूनों और प्रावधानों ने महिलाओं को स्वतंत्रता प्रदान की है। आज उन्हें शिक्षा के अधिकार प्राप्त है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त है। महिलाओं के सक्षम और जागरूक होने के कारण वे अपने हित तथा अहित को समझने में सफल हो गई हैं और हिंदू विवाह अधिनियम में दिए गए अधिकार के अनुसार उन्हें तलाक लेने का अधिकार भी प्राप्त है।
4. बाल विवाह पर रोक
अतीत में बाल विवाह का प्रचलन काफी मात्रा में था, परंतु वर्तमान समय में वैवाहिक प्रावधानों के अनुसार विवाह की आयु वर की 21 वर्ष और वधू की 18 वर्ष निर्धारित कर दी गई है। यदि इसके पूर्व विवाह विवाह किए गए तो इसके लिए दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान भी है। वर्तमान समय में बाल विवाह लगभग पूरी तरह समाप्त हो चुके हैं।
5. विधवा विवाह को मान्यता
पहले के समय में विधवा को पुनर्विवाह करने के अधिकार प्राप्त नहीं था तथा विभिन्न शुभ अवसरों पर उनका निषेध किया जाता था, परंतु अब परिस्थिति बदल चुकी है। कानूनों द्वारा विधवा पुनर्विवाह को मान्यता दे दी गई है साथ ही उनके संपत्ति पर अधिकार को भी सुनिश्चित किया गया है। विधवा पुनर्विवाह को मान्यता प्रदान कर उनके साथ सामाजिक व मानवीय व्यवहार किया गया है।
6. दहेज पर रोक
पहले के समय में दहेज इच्छानुसार दिया जाता था. परंतु धीरे-धीरे यह दृढ़ बाध्यता चनता चला गया। इसने एक सामाजिक बुराई का रूप धारण कर लिया। हालांकि कानूनी तौर पर दहेज पर निषेध लगाया जा चुका है, परंतु व्यावहारिक तौर पर इसका क्रियान्वयन अभी भी प्रयलन में है। अनुमान लगाया गया था कि शिक्षा के प्रसार से दहेज की मांग में कमी आएगी, परंतु शिक्षा ने इसे और भी तूल दे दिया है। अब शिक्षा और नौकरी के आधार पर दहेज की मांग की जाने लगी है। अंतर्जातीय विवाह और प्रेम विवाह के प्रचलन से दहेज पर रोक लगने की संभावनाएं बनी हुई
7. वैवाहिक अनिवार्यता समाप्त
पहले के समय में विवाह एक धार्मिक बाध्यता के रूप में निर्धारित था और सभी को ऋणों से उऋण होने तथा पुरुषार्थों की प्राप्ति के उद्देश्य से विवाह संस्कार करने ही पढ़ते थे परंतु वर्तमान समय में परिस्थितियों वैसी नहीं रही। आज धार्मिक पक्ष की शिथिलता और समय तथा आस्था की कमी के कारण विवाह की अनिवार्यता के विचार में कमी आ रही है।
8. जीवन साथी के चयन में स्वतंत्रता
प्राचीन समय में जीवन साथी का चयन परिवार द्वारा ही कर दिया जाता था और इस बारे में बर बधू से कोई विचार-विमर्श नहीं किया जाता था। अर्थात उन्हें जीवन साथी का चुनाव करने का अधिकार नहीं था, परंतु वर्तमान समय में वर अथवा वधू को अपने जीवन साथी के चयन में पर्याप्त स्वतंत्रता प्राप्त है तथा परिवार व नातेदारों का हस्तक्षेप इन मामलों में धीरे-धीरे कम होता चला जा रहा है।
9. प्रेम विवाह
वर्तमान समय में प्रेम विवाह का प्रचलन काफी तेज हो चुका है। सह-शिक्षा औद्योगीकरण, पश्चिमी सभ्यता, सिनेमा आदि के प्रभाव से प्रेम विवाह को काफी प्रोत्साहन मिला है। साथ ही नवीन कानूनों में भी इसके विरुद्ध किसी प्रावधान की चर्चा नहीं है। हालांकि इन विवाह का प्रचलन गांवों में नाममात्र ही है।
10. बेमेल विवाह समाप्त
प्राचीन समय में कुलीन विवाह और दहेज से बचाव के प्रयोजन से बेमेल विवाह कर दिए जाते थे। सामान्य तौर पर वर और बधू की आयु में 20 वर्ष का अंतर पाया जाता था. परंतु आज के समय में वर और वधू को पर्याप्त अधिकार प्राप्त है तथा उनके आयु में अंतराल कम ही पाया जाता है। इससे वैवाहिक जीवन सुद्द तथा सुखमय बना रहता है।
कानून द्वारा दी गई मान्यताओं के आधार पर वर्तमान समय में अंतर्जातीय विवाहों की संख्या में दिन-प्रतिदिन इजाफा होता जा रहा है। इसके अलावा महानगरों में जाति व्यवस्था के कमजोर होने के कारण भी अंतर्जातीय विवाहों का प्रचलन तेज हुआ है। हालांकि आज भी ये विवाह बहुत कम मात्रा में होते हैं।
12. पत्नी की स्थिति में सुधार
प्राचीन समय में पत्नी को अधिकार नहीं दिए जाते थे, उसे स्वतंत्रता नहीं थी, निर्णयों में उसकी भागीदारी आवश्यक नहीं होती थी। उसे एक दासी के रूप में माना जाता था, परंतु आज के समय में पत्नी को पति के ही समान प्रस्थिति प्रदान की जाती है।
13. विवाह अधिनियम और कानून
हिंदू विवाह अधिनियम के क्रियान्वयन के पूर्व विवाह में कई भिन्नताएँ पाई जाती थी। इसके पूर्व मिताक्षरा और दायभाग में उल्लेखित नियमों के अनुरूप ही वैवाहिक क्रियाएँ संपन्न की जाती थी। इसके कारण रीति-रिवाजों, नियमों आदि में काफी भिन्नताएँ थी, परंतु हिंदू विवाह अधिनियम के नियोजन के पश्चात वे विविधताएं समाप्त हो गई और सभी के लिए नियमों में एकरूपता आ गई।
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