विभिन्न विचारकों द्वारा समाजशास्त्र से अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध पर मत - Opinions on the relationship of sociology with other social sciences by different thinkers

विभिन्न विचारकों द्वारा समाजशास्त्र से अन्य सामाजिक विज्ञानों से संबंध पर मत - Opinions on the relationship of sociology with other social sciences by different thinkers

समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान का आपस में बहुत ही घनिष्ट संबंध है। समाजशास्त्र के अन्तर्गत हम समाज की सबसे छोटी इकाई व्यक्ति के संबंध में अध्ययन से प्रारम्भ करते है। समाज क्या है अंतर उत्तर आता है, समाज सामाजिक संबंधों का जाल है। संबंध हम समाज में किसी से क्यों रखते है, तथा कैसे रखते है इसी क्यों, तथा कैसे को समझकर हम समाज तथा उससे निर्मित समाजशास्त्र को तथा साथ ही मनोविज्ञान से संबंध को समझने में सरलता होगी। व्यक्ति किसी से संबंध क्यो रखता है घ् मनुष्य अपनी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति अकेले नही कर सकता। अतः अनगिनत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य एक दूसरे से संबंध रखते है। दूसरा है संबंध कैसे बनते है घ् हम जानते है कि हमारे संबंध सभी लोगों से एक जैसे नहीं होते है। हम किस व्यक्ति से किस प्रकार संबंध स्थापित करेगें यह हमारे सामाजिक मूल्यों पर निर्भर होता है। सामाजिक मूल्यों के अनुसार ही हम किसी स्त्री से मां का संबंध रखते है तो किसी से पत्नी का संबंध, किसी से बहन का संबंध होता है तो किसी से मित्रता का संबंध

इस प्रकार सामाजिक संबंधों का निर्माण इस बात पर निर्भर होता है कि हमारे सामाजिक मूल्य किस व्यक्ति से हमें कैसा संबंध स्थापित करने की अनुमति देता है। जब समाज में सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन होता है तथा समाज में सामाजिक संबंधों की प्रकृति भी बदलने लगती है। मनोविज्ञान मन का विज्ञान है। इसमें मन की क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। मनोविज्ञान के अन्तर्गत इस तथ्य की व्याख्या की जाती है कि एक व्यक्ति के आचरण व व्यवहार दूसरे व्यक्ति से क्यो और किस प्रकार भिन्न होता है। अतः मनोविज्ञान में मानव समाज तथा मानव-आचरण का परिचय करना ही मनोविज्ञान के अध्ययन का मुख्य विषय है।

समाजशास्त्र की प्रकृति को समझने के लिए यह जानना अत्यधिक आवश्यक है कि दूसरे सामाजिक विज्ञानों की तुलना में समाजशास्त्र का स्थान क्या है। आज अनेक विद्वान समाजशास्त्र को केवल अन्य सामाजिक विज्ञानों का मिश्रण मान लेने की भूल करते है। जबकि कुछ विचारक का मत है कि समाजशास्त्र पूर्णतया एक स्वतंत्र विज्ञान है और इस प्रकार दूसरे सामाजिक विज्ञानों से इसका कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। ये दोनों धारणाएं भ्रांतिपूर्ण है।

वास्तविकता यह है कि सामाजिक ज्ञान की सीमाएं इतनी विस्तृत है कि सभी सामाजिक विज्ञानों को इसमें से आवश्यक विषय वस्तु प्राप्त हो जाती है। जिस प्रकार अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, मनोविज्ञान, इतिहास, मानवशास्त्र, और दर्शन सामाजिक जीवन के ही किसी न किसी पक्ष का अध्ययन करते है। इसी प्रकार समाज भी सामाजिक घटनाओं और मानव व्यवहारों के सामान्य दृष्टिकोण को लेकर अध्ययन करता है। इस आधार पर सभी सामाजिक विज्ञानों की अध्ययन वस्तु में कुछ न कुछ सामानता का होना स्वाभाविक है। यदि विभिन्न सामाजिक विज्ञान समाज की विभिन्न दशाओं और घटनाओं का अध्ययन अलग-अलग दृष्टिकोण को लेकर करते है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उनके बीच विभाजन की एक रेखा खींच दी जाय।


प्रश्न यह उठता है कि उपर्युक्त समानता के बाद भी विभिन्न सामाजिक विज्ञानों को एक दूसरे के पूर्णतया समान क्यो नहीं माना जाता। वास्तव में इसका कारण विशेष सामाजिक विज्ञान' और 'सामान्य सामाजिक विज्ञान की धारणा है। अर्थशास्त्र केवल आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। जबकि राजनीति शास्त्र का कार्य केवल राज्य से संबंधित तयों का अध्ययन करना है। यह दोनों विज्ञान समाज के एक विशेष भाग का ही अध्ययन करते है। इसलिए इन्हे विशेष सामाजिक विज्ञान कहा जाता है। इसके विपरीत समाजशास्त्र समाज के किसी विशेष पहलू का अध्ययन न होकर सम्पूर्ण समाज की सामान्य दशाओं का अध्ययन है।

इस प्रकार समाजशास्त्र की प्रकृति अन्य विशेष सामाजिक विज्ञानों से कुछ भिन्न हो जाना से बहुत स्वाभाविक है। हमारे अध्ययन से संबंधित प्रमुख समस्या यह है कि समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञानों के बीच पाये जाने वाले संबंध की प्रकृति कैसी है? इस विषय पर समाज शास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किए है। समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञानों के संबंध को समझने से पहले इन विचारों को जान लेना आवश्यक होगा क्यो कि इन्ही के सन्दर्भ में समाजशास्त्र व अन्य सामाजिक विज्ञानों के पारस्परिक संबंध को उचित रूप से समझा जा सकता है।