संस्कृति की मानवशास्त्रीय परिभाषाएं - Anthropological Definitions of Culture
संस्कृति की मानवशास्त्रीय परिभाषाएं - Anthropological Definitions of Culture
क्रोबर तथा क्लकहौन ने अपनी पुस्तक ऑन द कंसेप्ट एण्ड डेफिनेशन ऑफ कल्चर (1952) में संस्कृति की 300 भाषाओं का संकलन प्रस्तुत किया और बताया कि इस शब्द (संस्कृति) की 164 परिभाषाएं हैं। अपनी पुस्तक प्रिमिटिव कल्चर (1871) में टायलर ने संस्कृति की सबसे विस्तृत परिभाषा प्रस्तुत की जिसे मैरिल तथा एल्ड्रिज ने संस्कृति की शास्त्रीय परिभाषा (क्लासिकल डेफिनेशन) की संज्ञा दी है। टायलर के शब्दों में संस्कृति और सभ्यता वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, आचार, कानून, प्रथा और ऐसे ही अन्य क्षमता और आदतों का समावेश है जिन्हें मनुष्य समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है।" टायलर की परिभाषा में दो बातें स्पष्ट है 1. संस्कृति अर्जित की जाती है अर्थात यह वंशानुगत नहीं होती तथा 2. व्यक्ति अपनी संस्कृति समाज में रहकर सीखता है।
टायलर की परिभाषा ने उस वैज्ञानिक अवधारणा को खंडित कर दिया जिसके अनुसार यह मान्यता प्रचलित थी की संस्कृति अनुवांशिकता से प्राप्त की जाती है।
फल स्वरुप श्वेत संस्कृति को श्रेष्ठ तथा अश्वेत संस्कृति को निम्न समझा जाता था। परंतु इस परिभाषा की कमी ये है की इसमें संस्कृति और सभ्यता को एक दूसरे का पर्यायवाची माना गया है जबकि यह दोनों अलग-अलग अवधारणाएं हैं।
ब्रिटिश प्रकार्यवादी मैलीनोवस्की ने संस्कृति को प्रकार्यात्मक ढंग से बताया है। मैलिनोवस्की ने संस्कृति को "जीवन की समग्रता माना है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने शारीरिक, मानसिक एवं अन्य आवश्यकता की पूर्ति करता है और अंततः अपनी स्वायत्तता (प्रकृति के बंधनों से मुक्ति) प्राप्त करता है के रूप में परिभाषित किया। उनके अनुसार संस्कृति का संबंध वंशागत उपकरण, समान, शिल्पशास्त्रीय प्रक्रिया, विचार, आदत तथा मूल्य से है। इस प्रकार मलिनोवस्की ने संस्कृति को अभौतिक तथा भौतिक अथवा मूर्त या अमूर्त में विभाजित करने का प्रयास किया है। बाद में अपनी पुस्तक साइंटिफिक थ्योरी ऑफ कल्चर' (1944) में संस्कृति को प्रकार्यवाद सिद्धांत के अनुसार परिभाषित किया है, उनके अनुसार संस्कृति मानव की आवश्यकता पूर्ति का साधन है।
चूंकि संस्कृति का अस्तित्व मानव के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। अतः संस्कृति का मुख्य प्रकार्य मानव का अस्तित्व बनाए रखना है।
हर्षकोविट्स ने अपनी पुस्तक 'मैन एण्ड हिज वर्क' (1956) में संस्कृति को पर्यावरण का मानव निर्मित भाग मानते हैं।" उन्होंने पर्यावरण को दो भागों में विभाजित किया है प्राकृतिक तथा सामाजिक उन्होंने सामाजिक पर्यावरण के अंदर मानव निर्मित सभी भौतिक तथा अभौतिक सांस्कृतिक वस्तुओं को रखा है अर्थात व्यक्ति को चारों ओर से प्रभावित करने वाली जितनी वस्तुओं का निर्माण मनुष्य द्वारा किया गया व सभी संस्कृति के अंग है।
मजूमदार एवं मदान ने लोगों के जीने के ढंग को ही संस्कृति माना है। रॉबर्ट एच. लुवी (1936) ने संस्कृति कि व्याख्या करते हुए कहते हैं कि “समाज में से खुद की सृजन प्रवृत्ति से नहीं बल्कि औपचारिक व अनौपचारिक शिक्षा द्वारा, विगत काल से विरासत में प्राप्त किए गए रीति रिवाजों का कुल जोड़ ही संस्कृति है।”
लोवी ने संपूर्ण सामाजिक परंपरा को ही संस्कृति कहा है। क्लूखौन (1952) ने सांस्कृतिक तत्वों को दो भागों में विभाजित करने का प्रयास किया है- प्रकट तथा अप्रकट। प्रकट सांस्कृतिक तत्वों का अवलोकन मानव इंद्रियों द्वारा भी कर सकते हैं, जबकि संस्कृति के अप्रकट तत्वों का अवलोकन केवल दक्ष मानवशास्त्री ही कर सकते हैं। संक्षेप में क्लकहौन ने संस्कृति को विचारने, अनुभव करने एवं क्रिया करने की एक विधि माना है।
राल्फ लिंटन ने संस्कृति ज्ञान, अभिव्यक्ति एवं आदतन व्यवहारों का कुल संग्रह है। इसे किसी समाज के सदस्य आपस में बांटते हैं एवं संचालित करते हैं।" रुथ बेनेडिक्ट ने “संस्कृति, व्यक्ति की भांति विचार और क्रिया का एक स्थिर प्रतिमान है।”
इसी प्रकार होबेल ने अपनी पुस्तक मैन इन प्रिमिटिव वर्ड' (1958) में संस्कृति को सीखे हुए व्यवहार प्रतिमान का कुल योग बताया है।" वे संस्कृति को जैविक वंशागत नहीं मानते हैं, बल्कि वह संस्कृति को सामाजिक अविष्कारों का परिणाम मानते हैं। संक्षेप में हावेल ने "संस्कृति संबंधित सीखे हुए व्यवहार प्रतिमानों का संपूर्ण योग है, जोकि एक समाज के सदस्यों की विशेषताओं को बतलाता है, अतः वह प्राणीशास्त्रीय विरासत का परिणाम नहीं है।"
पिडिंगटन ने अपनी पुस्तक 'एन इंट्रोडक्शन टू सोशल एंथ्रोपोलॉजी' (1952) में संस्कृति को भौतिक तथा बौद्धिक साधनों का संपूर्ण योग बतलाया है। इस प्रकार मैलीनोवस्की, बीडेन तथा पिडिंगटन की परिभाषाओं में संस्कृति के अभौतिक तथा भौतिक पक्ष प्रकट होते हैं। भौतिक संस्कृति के अंतर्गत गांव, घर, घरेलू उपकरण, कृषि उपकरण, युद्ध उपकरण, मनोरंजन उपकरण, भोजन, वस्त्र, आभूषण इत्यादि आते हैं। जबकि अभौतिक संस्कृति के अंतर्गत ज्ञान, विश्वास, मूल्य, प्रथा, कानून, कला, संस्था इत्यादि आते हैं।
संस्कृति के यह दोनों पक्ष एक दूसरे से संबंधित एवं पूरक हैं। संक्षेप में पिडिग्टन ने संस्कृति उन भौतिक तथा बौधिक साधनों का संपूर्ण योग है, जिनके द्वारा मानव अपनी प्राणीशास्त्रीय तथा सामाजिक आवश्यकताएं को पूरा करता है तथा अपने पर्यावरण से अनुकूलन करता है"
रेडफील्ड (1941) के अनुसार संस्कृति कला तथा कलात्मक वस्तुओं द्वारा प्रदर्शित परंपरागत ज्ञान का संगठित समूह है।" रॉबर्ट रेडफील्ड ने संस्कृति को "अ बॉडी ऑफ शेयर्ड अंडरस्टैंडिंग' कहकर संस्कृति की अवधारणा में वैचारिकता के पक्ष को महत्व प्रदान किया है। संक्षेप में रेडक्लिफ ब्राउन ने · परंपराओं के अधिग्रहण एवं उनके हस्तांतरण की प्रक्रिया जिनके परिणाम स्वरूप समाज का अस्तित्व सुनिश्चित होता है, संस्कृति है।”
इसी क्रम में अमेरिकी मानवशास्त्रीय लेस्ली वाइट ने संस्कृति के सांकेतिक दृष्टिकोण पर जोर दिया है। वाइट के अनुसार संस्कृति एक सांकेतिक तथा निरंतर चयन की जाने वाली गतिशील प्रक्रिया है।” तथा "संस्कृति प्रतीकों एवं प्रतीकात्मक व्यवहारओं की समीष्टि होती है।"
डेविड बिडने (दार्शनिक मानवशास्त्री) ने संस्कृति कृषि-तथ्यों (Agrofacts) प्राविधिक तथ्यों (Artifacts) सामाजिक तथ्य (Sociofacts) तथा मानसिक तथ्यों (Mentifacts) की उपज है।" इन्होने अपनी पुस्तक 'थ्योरिटिकल एंथ्रोपोलॉजी' (1952) में संस्कृति को कृषि तथ्यों, मानसिक तथ्यों, प्राविधिक तथ्यों तथा सामाजिक तथ्यों की उपज मानते हैं। संस्कृति की परिभाषा को और प्रस्तुत करते हुए बीडेन ने कहा है कि "संस्कृति के अंतर्गत व्यक्ति के व्यवहार तथा विचार के साथ-साथ बौद्धिक, कलात्मक और सामाजिक संस्थाएं आती हैं। इन संस्थाओं के माध्यम से मानव अपनी जैविक तथा सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तथा अपने पर्यावरण के साथ अनुकुलन करने का प्रयास करता है।
एस. सी. दुबे के अनुसार "हम उसे (संस्कृति को) मानसिक, नैतिक, भौतिक, आर्थिक, समाजिक, राजकीय, कलात्मक अथवा सारांश में मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष में सीखे हुए व्यवहार प्रकारों की समग्रता कह सकते हैं।"
इस प्रकार परंपरागत मानवशास्त्रियों ने समय-समय पर अपने शोधों एवं खोजों के आधार अपने विचार प्रस्तुत कर संस्कृति को परिभाषित किया है। इसके साथ ही साथ उन्होंने संस्कृति को कभी भौतिक, कभी अभौतिक तो कभी प्रकट या अप्रकट इत्यादि भागों में बाटा है। उपरोक्त परिभाषाओं से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संस्कृति एक समग्र है, जो मानव निर्मित है और उसे मानव सीखने के साथ-साथ अगली पीढ़ी में हस्तातरित भी करता रहता है।" संस्कृति के अंतर्गत ज्ञान, कला, विश्वास, लोकाचार, प्रथाएं, रीति-रिवाज, सामाजिक मूल्य, नियम-कानून इत्यादि मानवीय व्यवहार तथा इन व्यवहारों को करने के लिए मानवनिर्मित भौतिक उपकरण जैसे घरेलू उपकरण, वस्त्र, आभूषण, वाद्य यंत्र, आधुनिक उपकरण, कृषि उपकरण, औद्योगिक उपकरण, शिल्प उपकरण इत्यादि सम्मिलित हैं।
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