कानून एवं एकता - Law and Solidarity

 कानून एवं एकता - Law and Solidarity


दुर्खीम ने समाज में पाई जाने वाली वैधानिक व्यवस्था को स्वीकार किया है। उनका कहना है कि वैधानिक व्यवस्था ही वह शक्ति है जिसके माध्यम से सामाजिक एकता को स्थापित किया जा सकता है। दुर्खीम के अनुसार वैधानिक कानून समूह के सदस्यों के पारस्परिक संबंधों को स्पष्ट करते हैं। संबंध जितने घनिष्ट होते हैं वहां उतनी ही अधिक एकता देखने को मिलती है। हर समाज की कानूनी व्यवस्था होती है। दुर्खीम ने कानूनों का वर्गीकरण प्रत्येक प्रकार के कानून से संबंधित सामाजिक एकता के प्रकारों का भी उल्लेख किया है। उन्होंने प्रमुख रूप से दो प्रकार के कानून का उल्लेख किया है


1. दमनकारी कानून (Law of Repressive) दुर्खीम के अनुसार दमनकारी कानून आदिम - समाजों में पाए जाते थे।

दमनकारी कानून सार्वजनिक कानून होते हैं जो व्यक्ति और राज्य के संबंधों का नियमन करते हैं। इसमें व्यक्ति के बजाय सामूहिक हितों को अधिक महत्व दिया जाता है। इन कानूनों का मुख्य उद्देश्य समाज के नैतिक मूल्यों की रक्षा करना और सामूहिक उद्देश्यों का आदर करना होता था। ये कानून समाज को वंश परंपरा के द्वारा प्राप्त होते थे और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होते रहते हैं। दुर्खीम के अनुसार दमनकारी कानून के भी दो प्रकार होते हैं A. दंडकारी कानून (Penal Law)- इनका संबंध कष्ट देने, हानि पहुंचाने, हत्या करने एवं स्वतंत्रता का हनन करने से है।


B. व्याप्त कानून (Diffused Law) यह वह कानून है जो संपूर्ण समूह में नैतिकता के आधार पर व्याप्त रहते हैं।


2. प्रतिकारी कानून (Restitutive Law)


दुर्खीम के अनुसार प्रतिकारी कानून आधुनिक युग की विशेषता है और इन कानूनों को सुविधा मुलक कानून के नाम से भी जाना जाता है। इनका उद्देश्य व्यक्तियों के पारस्परिक संबंधों में उत्पन्न असंतुलन में सामान्य स्थिति को उत्पन्न करना है। इसके अंतर्गत दीवानी कानून व्यवसाय कानून, संवैधानिक कानून एवं प्रशासनिक कानून आते हैं।