विश्लेषणात्मक अनुसंधान - analytical research

 विश्लेषणात्मक अनुसंधान - analytical research


वर्णनात्मक अनुसंधान से इतर विश्लेषणात्मक अनुसंधान में शोधकर्ता को सर्वप्रथम संबन्धित से विषय अथवा घटना के बारे में जानकारी संकलित करनी होती है। इसके बाद जानकारी के आधार पर ही संकलित की गई सामाग्री का आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया जाता है। पूर्व में एकत्रित किए गए तथ्यों, आंकड़ों, विचारों आदि से परे अंतर्दृष्टि रखते हुये एक समाज-विश्लेषक का मानना होता है कि संचित तथ्यों व आंकड़ों के पीछे की कहानी कुछ और भी होती है. अतः उस छिपे हुये संदर्शों को तलाशने में एक विश्लेषक की अधिक रुचि रहती है। इसके पीछे तर्क यह है कि संग्रहीत तथ्यों व आंकड़ों को जब सामाग्री से संबंधित अन्य चरों के साथ जोड़ा जाता है, तो एक व्यापक और परिष्कृत अर्थ उभरकर सामने आता है तथा इस प्रस्तुत अर्थ की सहायता से एक वैध सामान्यीकरण प्रस्तुत करना सरल हो जाता है।


शोध क्रिया पर आधारित सामाजिक विश्लेषण की प्रक्रिया एक निरंतर क्रियाशील रहने वाली प्रक्रिया होती है। यह क्रमबद्ध विश्लेषण एक ऐसा बौद्धिक फ़लक तैयार करता है, जहां छाँटे हुये तथ्यों और आंकड़ों को व्यवस्थित रूप से रखा जाता है, ताकि शोधकर्ता उनकी मदद से एक वैध अनुमान तक पहुँच सके। तथ्य स्वयं अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत कर सकने योग्य नहीं होते हैं, उन्हें शोधकर्ता द्वारा अभिव्यक्ति प्रकट करने हेतु योग्य बनाया जाता है। तथ्यों में अनेक जटिलताएँ होती हैं, वे समान और स्वतंत्र प्रकृति के नहीं होते हैं। एक सामाजिक विश्लेषक को तथ्यों को उनकी आत्मपरक प्रतिक्रियाओं के संयोजन के रूप में देखने की आवश्यकता होती है। सामाजिक विश्लेषण हेतु संकलित की गई सामाग्री की व्यापक और सटीक जानकारी की आवश्यकता होती है।