जाति व्यवस्था - Caste System

जाति व्यवस्था - Caste System


भारतीय सामाजिक संस्थाओं में जाति व्यवस्था का स्थान अत्यंत ही महत्वपूर्ण है. रहा है और संभवत रहेगा। जाति व्यवस्था की इसी महत्ता के कारण समय-समय पर अनेक समाजशास्त्रियों, इतिहासवेत्ताओं, नृतत्वशास्त्रियों आदि विद्वानों ने इसकी संरचना, प्रकार्यों और इसके परिवर्तनशील तत्वों के बारे में व्यापक अध्ययन और विश्लेषण किए हैं। जाति शब्द अंग्रेजी के 'Caste' शब्द का हिंदी रूपांतरण है. जो पुर्तगाली शब्द 'Casta' से बना है। इसका अर्थ प्रजाति, नस्ल अथवा जन्म से लगाया जाता है। जाति शब्द की उत्पत्ति (1665) को ग्रेसिया डी. ओरेटा नामक विद्वान से जोड़ा जाता है। यहाँ इससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाओं के बारे में विवरण दिया जा रहा है -


• मजूमदार और मदान के अनुसार,


"जाति एक बंद वर्ग है।" 


• इरावती कार्वे लिखती हैं कि


"जाति वस्तुतः एक विस्तृत नातेदारी समूह है।"


• जे.एच. हट्टन के शब्दों में,


"जाति एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत एक समाज अनेक आत्म-केंद्रित तथा एक-दूसरे से पूरी तरह से पृथक इकाइयों (जातियों में बंटा रहता है। इन इकाइयों के मध्य पारस्परिक संबंध ऊच-नीच के रूप में सांस्कृतिक आधार पर निर्धारित होते हैं। "


• चार्ल्स कूले लिखते हैं कि


"जब एक वर्ग पूर्णतः आनुवंशिकता पर आधारित होता है तो हम उसे जाति कहते हैं। "


• केतकर के अनुसार,


"जाति एक सामाजिक समूह है तथा इसकी दो विशेषताएं होती हैं


1) इसकी सदस्यता केवल उन व्यक्तियों तक सीमित रहती है, जिनका जन्म उसी जाति में हुआ हो तथा


2) इसके सदस्य एक कठोर सामाजिक नियम द्वारा अपने समूह से बाहर विवाह करने से निषिद्ध रहते हैं। "


• ब्लंट के अनुसार,


"जाति एक अंतर्विवाही समूह अथवा अंतर्विवाही समूहों का गुच्छा है, इसका एक सामान्य नाम होता है, इसकी सदस्यता आनुवांशिक होती है, यह सामाजिक सहवास के क्षेत्र में अपने सदस्यों पर कुछ निषेधों को आरोपित करता है. इसके सदस्य या तो एक सामान्य परंपरागत व्यवसाय में संलिप्त रहते हैं अथवा किसी सामान्य आधार पर अपनी उत्पत्ति का दावा करते हैं तथा इस प्रकार एक समरूप समुदाय के रूप में वैध होते है।"


• मिर्डल का मानना है कि जाति पूर्णतः कठोर वर्ग है, जो समूह में गतिशीलता को स्वीकार नहीं


करता। उक्त वर्णित विद्वानों की विभिन्न परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि जाति एक ऐसा सामाजिक समूह है जिसमें जन्म को निर्धारक तत्व माना जाता है। इसके अलावा यह अपने सदस्यों के प्रति व्यवसाय, सामाजिक सहवास, खान-पान विवाह आदि निषेध आदि भी पारित करती है।