संयुक्त परिवार के बदलते प्रतिमान - Changing Paradigms of Joint Family
संयुक्त परिवार के बदलते प्रतिमान - Changing Paradigms of Joint Family
वर्तमान में औद्योगिकरण व नगरीकरण के परिणामस्वरूप न केवल व्यावसायिक गतिशीलता बढ़ी है बल्कि एक ही जाति और परिवार के लोगों के व्यवसाय और आय में काफी अंतर आया है। उनके सामाजिक प्रस्थिति में ही नही बल्कि उनके दृष्टिकोण में भी काफी भिन्नता आयी है। उच्च शिक्षा और पाश्चात्य प्रभाव के कारण व्यक्ति में उदार, तार्किक और व्यक्तिवादी दृष्टिकोण पनपा है जिसका स्पष्ट प्रभाव पारिवारिक संरचना पर भी देखने को मिलता है। आधुनिक भारत में संयुक्त परिवार संक्रमण की स्थिति से गुजर रहा है। इसके ढांचे, कार्य, आदर्श और में नैतिकता में तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है। विलियम गुडे का कथन है कि परिवार से संबंधित परिवर्तनों का विश्लेषण करना इसलिए अत्यधिक कठिन हो जाता है कि परिवार के भूतकालीन रूप को हम अधिक स्पष्ट रूप से नहीं जानते हैं। जो कुछ और लेख प्राप्त होते हैं वह भी एक समय विशेष की संपूर्ण पारिवारिक व्यवस्था का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। इस कठिनाई के बीच संयुक्त परिवार में होने वाले समस्त परिवर्तनों को हम निम्नांकित रूप से स्पष्ट कर सकते हैं -
1. परंपरागत विचार प्रतिमानों में परिवर्तन
लोगों ने परंपरागत विचारों को त्याग कर नए विचारों को धीरे धीरे ग्रहण करना शुरू किया है और कुछ समय के पश्चात ए नए विचार पुराने व्यवहार प्रतिमानों को प्रभावित कर पाते हैं। एक पीढ़ी के लोग जब नवीन विचारों को ग्रहण कर लेते हैं तो उनके व्यवहार में थोड़ा बहुत परिवर्तन आता है परंतु उसके बाद वाली पीढ़ी में यह परिवर्तन तेजी से आता है। जिन नवीन विचारों ने भारत में पारिवारिक प्रतिमानो को परिवर्तित करने में योग दिया उनमें से मुख्य हैं- प्रत्येक व्यक्ति को उसके विकास के पूर्ण स्वतंत्रता और अवसर प्राप्त हो वर्तमान समय में यौन संबंधी परंपरागत दृष्टिकोण में अंतर आया है, प्रेम विवाह का महत्व बढ़ा है, धार्मिक परंपरा का महत्व कम हो रहा है और धार्मिक निरपेक्षवाद की प्रक्रिया तीव्र हो रही है। लोग प्रजातांत्रिक और समाजवादी दृष्टिकोण को अपना रहे हैं फलस्वरूप सामाज एक पवित्र परिवार से धर्मनिरपेक्ष परिवार की ओर बढ़ रहा है। धर्म निरपेक्ष परिवार में व्यक्ति परिवर्तनों को सुगमता से स्वीकार कर लेता है।
2. संयुक्त परिवार के स्वरूपात्मक प्रतिमानों में परिवर्तन
औद्योगिकरण व नगरीकरण के कारण देश की आर्थिक संरचना में मुद्रीकरण की ओर कदम बढ़ा रहे हैं
और राजनीतिक संरचनाओं का विस्तार होता जा रहा है। व्यवसायिक सुविधाओं के बढ़ने से एक ही परिवार के विभिन्न सदस्य अलग-अलग व्यवसायों में अलग-अलग स्थानों पर कार्य करने लगे हैं। उनकी आय में भी काफी असमानता पाई जाती है। परिणाम यह हुआ है कि संयुक्त प्रकार के जीवन की विशेषताएं समाप्त होने लगी है और एक ही परिवार के सदस्यों के हितों, दृष्टिकोण तथा आय में विभेद पैदा हो गए हैं। नई शिक्षा व्यवस्था के कारण पुरानी और नई पीढ़ियों के दृष्टिकोण में अंतर उत्पन्न हुआ है। जाति संरचना में भी परिवर्तन हुए हैं, जाति बंधन शिथिल होते जा रहे हैं तथा अंतर्जातीय विवाह होने लगे हैं। विभिन्न जाति के नव विवाहित लड़के लड़कियों के लिए संयुक्त परिवार में अपना अनुकूलन करना कुछ कठिन रहता है. ऐसी दशा में अंतर्जातीय विवाह के बढ़ने के साथ-साथ परिवार के प्रतिमान और सामाजिक संबंधों में परिवर्तन आना स्वभाविक है।
3. संयुक्त परिवार के संरचनात्मक प्रतिमानों में परिवर्तन -
अ. परिवार के आकार में परिवर्तन आकार का अर्थ परिवार में सदस्यों की संख्या से है। जहां पहले पति पत्नी और बच्चों के अतिरिक्त तथा रक्त एवं विवाह संबंधी बहुत सारे नाते रिश्तेदार परिवार में रहते थे अब वही परिवार का आकार पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चों तक सीमित रह गया है।
इसका तात्पर्य है कि अधिकांश संयुक्त परिवार एकांकी परिवार में विभाजित हो रहे हैं।
ब. कर्ता की सत्ता का ह्रास वर्तमान परिवारों में कर्ता का आदेश न तो अंतिम है न हीं उनको ईश्वरीय आदेश के रूप में देखा जाता है। आयु की अपेक्षा व्यक्तिगत योग्यता को परिवार में अधिक महत्व दिया जाने लगा है। समस्या का हल केवल कर्ता के द्वारा न होकर सभी के लिए और सभी के द्वारा होता है। परिवार की परंपरागत व्यवस्था में हास हो जाने के कारण सभी सदस्य समान अधिकारों की मांग करने लगे हैं और इस प्रकार संयुक्त परिवार अधिनायकवाद की सीमा के बाहर जनतांत्रिक आदर्शों की ओर उन्मुख हो रहा है।
स. स्त्रियों की शक्ति में वृद्धि आधुनिक परिवार स्त्री को घर की चारदीवारी के अंदर बंद रखकर कुलवधू का तथाकथित सम्मान नहीं देना चाहते हैं, बल्कि आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र में पुरुष के समान अधिकार प्रदान करने के पक्ष में हैं। स्त्रियों में स्वयं सामाजिक चेतना बढ़ी है। जीवन की जटिलताओं में वृद्धि होने से स्त्रियों ने सभी कार्यों को करना प्रारंभ कर दिया है जिससे परिवार की बढ़ी हुई आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
परिवार में आज स्त्री की स्तिथि एक सहयोगी तथा मित्र की है किसी सेविका कि नहीं।
द. विवाह के स्वरूप में अंतर संयुक्त परिवार की संरचना का आधार अंतर्जातीय विवाह और कुलीन विवाह की पद्धतियां थी। आधुनिक परिवारों का संगठन सामाजिक और वैधानिक रूप से केवल एक विवाह के द्वारा ही संभव है। इस विशेषता ने परिवार के आकार को और भी छोटा कर दिया है. इसके अतिरिक्त विलंब विवाह के प्रति बढ़ती हुई रूचि के कारण परिवार परंपरा पर आधारित न होकर जीवन की आवश्यकताओं के अनुसार निर्धारित होने लगा है।
य. अस्थायित्व - आधुनिक परिवार की संरचना अपेक्षाकृत अधिक अस्थाई हो गई है। सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि होने से तथा परिवार का आकार छोटा रह जाने के कारण सरलतापूर्वक स्थान परिवर्तित किया जाने लगा है। स्त्रियों द्वारा आर्थिक क्षेत्र में प्रवेश करने के कारण कभी-कभी तो पति-पत्नी और बच्चों को एक दूसरे से काफी दूर रहना पड़ता है। पति-पत्नी को वैधानिक रूप से विवाह विच्छेद का अधिकार मिल जाने से परिवारों की स्थिरता किसी भी समय समाप्त हो सकती है। बहुत से परिवारों द्वारा किराए के मकानों और होटलों में रहने के कारण घर अथवा गृहस्थी जैसी भावनाओं का प्रभाव निरंतर कम होता जा रहा है।
र. पारिवारिक संबंधों में परिवर्तन व्यक्तिवादिता और निजी संपत्ति की भावना ने परिवार के सदस्यों के बीच ही औपचारिक संबंधों विकसित किया है। संबंधों के इस नवीन रूप ने सदस्यों की परंपरागत स्थिति में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन उत्पन्न किए है। वास्विकता तो यह है कि व्यक्तिगत हितों की पूर्ति के सामने पारस्परिक कर्तव्य की भावना धुंधली होती जा रही है। परिवार की नियंत्रण शक्ति बहुत कम रह जाने के कारण परिवारों की संरचना एक औपचारिक संगठन के रूप में बदलने लगी है।
ल. सामूहिकता में कमी परंपरागत संयुक्त परिवार की एकता में सामूहिक निवास, सामूहिक संपत्ति एवं सामूहिक भोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, किंतु वर्तमान में परिवार के सदस्यों द्वारा अलग-अलग स्थानों पर रहने के कारण सामूहिक पूजा एवं रसोई तो सम्भव नहीं है और संपत्ति का भी विभाजन होने लगा है। इससे परिवार की सामूहिकता समाप्त हुई है व एकांकी प्रवृत्ति प्रबल हुई है।
4. परिवार के प्रकार्यात्मक प्रतिमानों में परिवर्तन
1. सर्वप्रथम संयुक्त परिवारों के सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
आज अधिकांश परिवार व्यक्ति की परंपरागत संस्कृति की शिक्षा नहीं बल्कि अपने सदस्यों के व्यवहार के नए आदर्श और संस्कृति के परिवर्तित रूप की शिक्षा देना को आवश्यक समझते हैं। कुछ समय पहले तक सामाजिक और सांस्कृतिक कार्य धर्म और प्रथाओं से नियंत्रित होते रहते होते थे लेकिन आज प्रथा, परंपरा धर्म, रीति-रिवाज व लोकाचारों के बंधन ढीले पड़ते जा रहे हैं। शिक्षा के प्रभाव से रूढ़ियों के स्थान पर तर्क में वृद्धि हो रही है। परिवार में सभी सदस्य को पूर्ण स्वतंत्रता मिली है. इसके परिणामस्वरूप सदस्यों की व्यक्तिगत रूचि और नवीन आदर्शों का महत्व कहीं अधिक बढ़ गया है। इससे परिवार के परंपरागत नियंत्रण में कमी आई है। व्यक्ति की स्थिति को निर्धारित करने का परंपरागत कार्य आज परिवार द्वारा नहीं होता है, बल्कि संस्थाएं इस कार्य को करने लगे हैं। यही कारण है कि आज परिवार और व्यक्ति दो इकाई बन गए हैं और परिवार का विघटन होने से व्यक्ति का विघटन होना अब आवश्यक नहीं रह गया है।
2. धार्मिक कार्य में परिवर्तन भी अब परिवार निरंतर स्पष्ट होते जा रहे हैं। कुछ समय पहले तक संयुक्त परिवार के संगठन का आधार धर्म का पालन था लेकिन आज तर्क का महत्व बढ़ने तथा स्थान परिवर्तन में वृद्धि होने से परिवार के धार्मिक कार्यक्रम कम होते जा रहे हैं।
वर्तमान जीवन में धर्म का अर्थ तत्कालीन कर्तव्य भावना से है और इस प्रकार आधुनिक परिवारों के धार्मिक कार्यों में इनकी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण संशोधन हुए हैं। यही कारण है कि परिवार में धार्मिक उत्सव का महत्व कम होता जा रहा है।
3. परिवार के आर्थिक कार्य में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहे हैं। कुछ समय पूर्व तक सभी प्रमुख आर्थिक क्रियाएं संयुक्त परिवार द्वारा ही की जाती थीं। विशेष रूप से सदस्यों के बीच श्रम विभाजन करना और जीविकोपार्जन के साधनों का निर्धारण करना परिवार का दायित्व था लेकिन व्यक्तिवादिता, निहित स्वार्थ और निजी संपत्ति की भावना के कारण आर्थिक क्रियाओं का चुनाव और उसके लाभ अथवा हानि का दायित्व व्यक्तिगत आधार पर ही निर्धारित होता है। इसके पश्चात यह भी सच है कि आर्थिक उत्पादन का दायित्व भले ही परिवार से अन्य संस्थाओं को हस्तांतरित हो जाए लेकिन उपभोग की इकाई के रूप में परिवार का महत्व आज भी बना हुआ है।
4. परिवार के मनोरंजन संबंधी कार्य की प्रकृति में भी आधारभूत परिवर्तन हुए हैं। प्राथमिक रूप से संयुक्त परिवार मनोरंजन का एक मात्र स्थान थे।
अवकाश के समय में सभी सदस्य एक स्थान पर बैठ कर स्वस्थ मनोरंजन प्राप्त करते थे। आधुनिक युग में मनोरंजन का संपूर्ण कार्य क्लबों, नाटकघरों, चलचित्रों, टेलीविजन और मित्र में संगोष्ठियों ने ले लिया है। कुछ लोगों का तो यहां तक विचार है कि इस कार्य का परिवार से कोई संबंध नहीं रह गया है। वास्तव में आज मनोरंजन के कुछ कार्य परिवार को प्राप्त हो रहे हैं और कुछ कार्य संस्थाओं को स्थानांतरित हो रहे हैं। इस प्रकार परिवार के मनोरंजन संबंधी कार्यों का केवल रूपांतरण हुआ है उनके महत्व में कोई कमी नहीं आई है।
5. संयुक्त परिवार के अन्य कार्यों में भी परिवर्तन आया है जैसे शैक्षणिक कार्यों, संरक्षण देने वाले कार्यों तथा व्यक्तित्व के विकास संबंधित कार्य में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। वर्तमान परिवारों में सभी सदस्यों का जीवन इतना जटिल और व्यस्त होता जा रहा है कि उनसे अनौपचारिकता की आशा रखना व्यर्थ है। परिवार के नियंत्रण शक्ति में भी कमी हो जाने से परिवार द्वारा सदस्यों को संरक्षण देने का प्रश्न ही नहीं उठता। परिवार के सभी नियम इतने रूढिगत समझे जाने लगे हैं कि अब उनके द्वारा सदस्यों के स्वार्थ प्रधान और दिखावटी संबंधों को नियंत्रित करना लगभग असम्भव सा हो गया है। वास्तविकता यह है कि व्यक्तित्व का विकास और संरक्षण की सुविधाएं राज्य के हाथों में चली गई हैं और प्रत्येक व्यक्ति के सामने राज्य के नियमों से अभियोजन (adjustment) करने का प्रश्न उठता है. परिवार से नहीं।
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