भ्रांत तर्क की अवधारणा - The concept of Derivations
भ्रांत तर्क की अवधारणा - The concept of Derivations
विशिष्ट चालकें जहाँ मानव व्यवहार को प्रभावित करने वाली बहुत कुछ स्थिर प्रेरणाएं हैं वही भ्रांत तर्क अपनी प्रकृति से परिवर्तनशील, विविधतापूर्ण और अम्सर परस्पर विरोधी हो सकते हैं। वास्तविकता यह है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने सभी व्यवहारों व कार्यों को न केवल स्वयं उचित समझता है बल्कि वह दूसरे व्यक्तियों के सामने भी किसी न किसी तर्क के आधार पर उन व्यवहारों तथा क्रियाओं को उचित प्रमाणित करने का प्रयत्न करता है। अपनी प्रत्येक क्रिया के पीछे व्यक्ति किसी न किसी ऐसे तर्क प्रमाण अथवा सिद्धान्त को ढूँढ़ने का प्रयत्न करता है जिसकी सहायता से हव अपने व्यवहार की उपयोगिता अथवा उसके औचित्य को प्रमाणित कर सके। इस तरह के तर्क या प्रमाण तार्किक या प्रयोगात्मक विज्ञान से संबंधित नहीं होते लेकिन उन्हें तार्किकता के आवरण में इस तरह से लपेट दिया जाता है कि वे दूसरों को तार्किक प्रतीत हो सके। यह कारण है कि स्थान, समय और व्यक्ति के अनुसार ऐसे तर्कों में परिवर्तन किया जाता रहा है।
संक्षेप में, मानव व्यवहारों के औचित्य को प्रदर्शित करने वाले इस प्रकार के तर्कों को पैरेटो ने (भ्रांत तर्क) का नाम दिया है। पैरेटो का कथन है कि (मनुष्य अपनी अधिकांश क्रियाएं अनुभूति, भावना और संवेगों के आधार पर करता है। इसके पश्चात भी वह अपनी क्रियाओं की व्याख्या इस प्रकार करता है जिससे वे उचित तार्किक प्रतीत हो सके।
यह भ्रांत तर्क की दिशा में व्यवहारों की व्याख्या का प्रयत्न है) उदाहरण के लिए हमारा कोई व्यवहार चाहे मानवतावादी हो अथवा क्रूरता से भरा हुआ हो, हम उसके औचित्य को किसी न किसी आदर्श अथवा सिद्धान्त के द्वारा प्रमाणित करने का प्रयत्न करते हैं।
इस प्रकार पैरेटो द्वारा प्रस्तुत भ्रांत तर्क की अवधारणा को स्पष्ट करते हुये फेयरचाइल्ड ने लिखा है कि, (भ्रांत तर्क व्यवहारों और क्रियाओं का वह व्यापक क्षेत्र है जिसके द्वारा मनुष्य अपने व्यवहारों की तार्किकता औचित्य के संबंध में स्वयं अपने आपको और अन्य व्यक्तियों को विश्वास दिलाने का प्रयत्न करता है।)
इससे संबंध में दूसरे समाजशास्त्री मार्टिण्डेल (Martindalse) में पैरेटो के विचारों को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि (भ्रांत तर्क मनुष्य के कार्यों की हृदय व्याख्या के तरीके है।) इस संदर्भ में पैरेटो का यह के कथन सही प्रतीत होता है
कि मनुष्य के अधिकांश व्यवहार किसी तर्क या सिद्धान्त से प्रभावित नहीं होते बल्कि मनुष्य पहले व्यवहार करता है और इसके बाद अपने व्यवहार के औचितय को सिद्ध करता है। पैरेटो की मान्यता है कि केवल सामान्य व्यक्ति ही अपने जीवन में भ्रांत तर्कों का सहारा नहीं लेते बल्कि राजनीति दर्शन तथा समाज विज्ञान के में भी बड़े-बड़े विद्वान अपने कार्यों और विचारों को भ्रांत तर्कों की सहायता से उपयोगी प्रमाणित करने का प्रयत्न करते हैं।
इस संदर्भ में उन्होंने कॉम्ट की विशेष चर्चा करते हुए बताया कि कॉम्ट ने (मानवता के धर्म) (Religion of Humanity) के रूप में जिस अवधारणा को प्रस्तुत किया. वह मुख्यतः असत्य तथ्यों पर आधारित एक ऐसी युक्ति है जिसे भ्रन्त तर्कों द्वारा प्रमाणित करने का प्रयत्न क्या गया। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति अपने व्यवहार को उचित सिद्ध करने के लिए जिस तर्कों का सहारा लेता है, वे ही भ्रांत तर्क है।
भ्रांत तर्क की प्रकृति को इसकी दो प्रमुख विशेषताओं के आधार पर समझा जा सकता है भ्रांत तर्क की पहली विशेषता (भ्रांत तर्क विशिष्ट चालकों से संबंधित) होते है तथा दूसरा यह है कि (यह अतार्किक तथ्य है।) यदि हम प्रश्न करें कि ऐसा क्यों है कि व्यक्ति पहले कार्य करता है और बाद में इसके लिए तर्क ढूंढता है? तो यह स्पष्ट हो जाता है कि कुछ ऐसे विशिष्ट चालक अवश्य होते है जो व्यक्ति को कुछ विशेष भावनाओं और संवेगों के अनुसार व्यवहार करने की प्रेरणा देते हैं। इसके बाद व्यक्ति अपने व्यवहार के औचित्य को प्रमाणित भी करना चाहता है। ऐसा औचित्य तभी प्रमाणित हो सकता है जब व्यक्ति अपने व्यवहार की तुलना समाज द्वारा मान्यता प्राप्त कुछ अन्य व्यवहारों अथवा सिद्धान्तों से करें। यही कारण है कि मनुष्य विभिन्न श्रेणियों के विशिष्ट चालकों से संबंधित विशेषताओं को ही आधारभूत तर्क के रूप में स्वीकार कर लेता है। विशिष्ट चालक स्वयं ही अतार्किक होते हैं इसलिए इन पर आधारित तर्क भी अतार्किक हो जाते है। इस तरह विशिष्ट चालकों तथा भ्रांत तर्कों के बीच एक गहरा संबंध है।
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