पूँजी - Capital
पूँजी - Capital
आर्थिक सिद्धान्त में पूँजी का महत्वपूर्ण स्थान होने के बावदूर भी पूँजी अनुभवाश्रित विचार में अत्यधिक कठिन अवधारणा है। ऐसा करने के लिए इसके मापन में सांख्यकीय तथा वैचारिक समस्यायें अन्तर्निहित होती है। पूँजी विभिन्न प्रकार की पूँजी गत वस्तुओं- जिसमें प्रत्येक वस्तु की अपनी विशेषतायें तथा स्थायित्व होता है की बनी हुई एक संयुक्त वस्तु है। यहाँ तक कि इस संयुक्त वस्तु में समय के साथ परिवर्तन भी होता रहता है। उदाहरणार्थ, इसमें भूमि, भवन, सडक, रेलवे साइडिंग तथा संयन्त्र एवं मशीनरी को सम्मिलित करना होगा। संयन्त्र एवं मशीनरी में यदि एक मशीन उत्पादन उपयोग के बाहर हो जाती है तो यह आवश्यक नहीं है कि उस मशीन का उसी किस्म की मशीन से प्रतिस्थापन किया जावे। इसे पूर्णतया एक विभिन्न किस्म की मशीन जो अधिक उत्पादक तथा अधिक कीमती हो सकती है, के द्वारा प्रतिस्थापित की जा सकती है, पूँजी का एक भाग लम्बे समय तक सेवाओं में लगाया जा चुका हो तथा चूँकि भविष्य इतना निश्चित नहीं होता है,
अतः पूँजी की सेवाओं तथा उपयोगिताओं को मापना कठिन है इसके अतिरिक्त पूँजी की उपयोगिता तथा उत्पादकता हर समय स्थिर नहीं रहती है। तथापि उत्पादन प्रक्रिया के दौरान लगी हुई पूँजी की मात्रा अनेक कठिनाइयों से युक्त होती है। सर्वप्रथम तो पूँजी के बारे में सभी अपर्याप्त तथा दोशी सांख्यकीय प्रतिवेदन (भारत में A.S. I तथा C.M.I श्रंखला में ऐसा ही पाया जाता है) प्रयोगित पूँजी निवेश के मूल्यांकन को और अधिक कठिन बना देते हैं। ASI के प्रतिवेदन (घटाये हुए मूल्यों पर ) स्थायी सम्पत्तियों के पुस्तक मूल्य (अर्थात् ऐतिहासिक मूल्य जिसका तात्पर्य जब और जिस मूल्य पर पूँजी अंकित की गई है) के अनुसार लिखे गये हैं। पूँजी उत्पादकता की गणना करने के लिए ऐतिहासिक मूल्यों पर दी हुई घटे मूल्यों की पूँजी अधिक उपयोगी नहीं होती है, क्योंकि (1) मूल्य ह्रास का विषय पूर्ण रूप से व्यवहार तथा परम्पराओं का होता है तथा इसके लिए फर्मे देश अपनी स्वयं की नीतियाँ रखते हैं।
तदापि निवेश से इस विवेकाधीन परिस्थिति को समाप्त करने के लिए यह अच्छा रहेगा कि हमेशा विशुद्ध पूँजी समकों की अपेक्षा समग्र समकों को प्रयोग में लाया जावे। दूसरी कठिनाई (2) है पूँजी के सम्पूर्ण स्टॉक को स्थिर आधार मूल्यों पर लाना । पूँजी का समायोजन उस समय एक पेचीदगी पूर्ण समस्या बन जाती है जबकि वह पूँजी सम्पत्तियों की संरचना आयु तथा मूल्य ह्रास की दर पर निर्भर करता है। विभिन्न उद्योगों में स्थायी सम्पत्तियों की संरचना मूल्यों पर पर्याप्त सूचनाओं के अभाव में अच्छा यह होगा कि सम्पत्तियों के कया मूल्य तथा अपलिखित मूल्य के बारे में सूचना देने पहली फर्मों के एक आदर्श नमूने से एक विशेष वर्ष के लिए औसत सकल विशुद्ध अनुपात का मूल्यांकन करना होगा।' इस सकल विशुद्ध अनुपात के प्रयोग द्वारा हम सम्पत्तियों के पुस्तक मूल्य को 1960 के लिए सकल मूल्य में बदलने में समर्थ होंगे (जैसा कि A.S.I प्रतिवेदन में है) पूँजी स्टॉक में सकल वार्शिक वृद्धि समको के प्रयोग द्वारा अब हम प्रत्येक अग्रिम तथा पिछले वर्ष के लिए सकल मल्यों का निर्माण कर सकते हैं।
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