माँग की लोच के निर्धारक तत्व - Determinants of the Elasticity of Demand

माँग की लोच के निर्धारक तत्व - Determinants of the Elasticity of Demand


मुख्य रूप से माँग की लोच को निम्न तत्व निर्धारित करते हैं:


(1) वस्तु के गुण (Quality of Commodity) - वस्तु के गुण से भी माँग की लोच प्रभावित होती है। जो वस्तुएँ मनुष्य के लिए अनिवार्य होती हैं तथा जीवन रक्षा हेतु आवश्यक हैं उन वस्तुओं की माँग की लोच बेलोच होती है। ऐसी सतुओं की कीमतों में वृद्धि या कमी का इनकी माँग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। सुविधाओं ( Comfort ) की माँग की लोच औसत श्रेणी की होती है। यह लोच साधारणतया लोचदार होती है क्योंकि इन वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन इनकी माँग को अधिक प्रभावित करता है। विलासिताओं (Luxurie) की माँग की लोच अत्यधिक लोचदार होती है। इनकी कीमत में थोड़ा सा परिवर्तन भी वस्तु की माँग को बहुत अधिक प्रभावित करता है। अतः हम कह सकते हैं कि माँग की लोच को वस्तु के गुण भी प्रभावित करते हैं।


(2) वस्तु के उपयोग ( Use of Commodity) - जिन वस्तुओं के एक से अधिक उपयोग किये जा सकते हैं उनकी माँग की लोच अधिक लोचदार होती है। उदाहरणार्थ बिजली घरेलू एवं औद्योगिक उपयोगो में काम में आती है। यदि इसकी दरों में कमी कर दी जाती है तो कई घरेलू उपयोगों में इसका प्रयोग बढ़ने से इसकी माँग बढ़ेगी तथा इसके विपरीत बिजली की दरों में वृद्धि होने पर इसके कई उपयोग कम कर दिये जायेंगे एवं इनकी माँग में कमी आ जायेंगी। अतः जिस वस्तु के अनेकानेक प्रयोग होते हैं उसकी माँग की लोच लोचदार होती है तथा जितने कम प्रयोग होते हैं वस्तु की माँग उतनी ही बेलोचदार होगी।


(3) वस्तु की कीमत (Price of Commodity ) - वस्तु की कीमत का प्रभाव भी माँग की लोच को प्रभावित करता है।

प्रो मार्शल के अनुसार, "ऊँची कीमत पर माँग की लोच अधिक होती है मध्य कीमतों के लिए पर्याप्त होती है तथा ज्योज्यो कीमतें घटती है त्यो त्यो माँग की लोच भी घटती जाती है तथा कीमतें इतनी गिर जायें कि तृप्ति की सीमा आ जाय तो लोच धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है।

लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं। उदाहरणार्थ धनी वर्ग के लिए ऊँची कीमतों वाली बहुमूल्य वस्तुएँ हीरे, जवाहरात आदि भी बेलोच माँग की लोच के अन्तर्गत आती हैं। इन वस्तुओं के मूल्यों में कमी - वृद्धि होने पर भी माँग पर उतना अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है।


( 4 ) धन के वितरण का स्वरूप धन का वितरण समाज में कैसा है का भी माँग की लोच पर प्रभाव पड़ता है। समाज मे धन के वितरण की समानता होने पर माँग की लोच लोचदार होती है।

इसके विपरीत जब धन का असमान वितरण होता है तब माँग की लोच बेलाच होती है। कीमत में थोड़ी सी वृद्धि या कमी धनी वर्ग की माँग पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं डालती है। जबकि निर्धन वर्ग के लिए लोच सामान्यतया बेलोचदार ही रहती है क्योंकि वे केवल आवश्यकता की वस्तुएँ ही खरीदते है परन्तु धन के समान वितरण से लगभग सभी व्यक्तियों की कय शक्ति ठीक होती हैं और कीमतो में वृद्धि या कमी का सब लोगों पर प्रभाव पड़ता है अतः माँग लोचदार हो जाती है। 


(5) आय स्तर आय स्तर से भी माँग की लोच प्रभावित होती है। आय के स्तर में वृद्धि के साथ-साथ माँग की लोच बेलोच हो जाती हैं। धनी वर्ग के लिए वस्तुओं की माँग की लोच बेलोच होती है जबकि निर्धन वर्ग के लिए माँग की लोच बेलोचदार होती है क्योंकि इस वर्ग की माँग पर कीमतों के परिवर्तनों का काफी प्रभाव पड़ता है।


(6) संयुक्त माँग कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनकी माँग उनके साथ-साथ की जाती है। उदाहरणार्थ चीनी व चाय, सिगरेट व माचिस, स्याही व पैन, मक्खन व डबल रोटी। यदि इन वस्तुओं में एक की कीमत में कमी तथा दूसरी वस्तु की कीमत में वृद्धि हो जाती है तो ऐसी स्थिति में दूसरी वस्तु की माँग बेलोचदार हो जाती है। उदाहरणार्थ यदि क्रिकेट के बल्ले का मूल्य पूर्ववत् रहे परन्तु क्रिकेट बॉल का मूल्य बढ़ जाती है। तो ऊँचे मूल्यों पर भी क्रिकेट बल्ले को क्रय कर लिया जायेगा । यहाँ क्रिकेट के बॉल की माँग की लोच बेलोच होगी।


(7) व्यक्ति का व्यवहार - व्यक्ति का व्यवहार या प्रकृति भी वस्तु की माँग की लोच को प्रभावित करती है।

व्यक्ति का स्वभाव यदि किसी एक वस्तु के उपभोग करने का आदी हो जाता है तो इस वस्तु की माँग की लोच बेलोचदार होगी। इसके विपरीत जिन वस्तुओं का उपभोग यदा-कदा करता है उनकी माँग की लोच लोचदार होती है


(8) समय का प्रभाव - माँग की लोच समय तत्व से भी प्रभावित होती है। जब कभी किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन होता है तो उसकी माँग पर उसका तुरन्त प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि इसका प्रभाव कुछ समय पश्चात पड़ता है। सामान्यतया समयावधि जितनी कम होगी वस्तु की माँग की लोच में वृद्धि होती जाएगी। समयावधि लम्बी होने पर उपभोक्ता स्थानापन्न वस्तुओं को ढूँढ लेता है तथा अन्य वस्तुओं का उत्पादन भी बढ़ जाता है।