सीमावर्ती लागत पद्धति व अवशोषण लागत पद्धति में अन्तर - Difference between Marginal Costing and Absorption Costing
सीमावर्ती लागत पद्धति व अवशोषण लागत पद्धति में अन्तर - Difference between Marginal Costing and Absorption Costing
(i) अवशोषण लागत पद्धति के अन्तर्गत अवधि (Period) महत्वपूर्ण होती है और एक अवधि में किये गये सभी खर्चे कुल लागत के रूप में माने जाते हैं। सीमावर्ती लागत पद्धति में उत्पाद (Product) महत्वपूर्ण माना जाता है एक अवधि में किये गये खर्च जिनका उत्पादन से कोई सम्बन्ध नहीं होता, ध्यान में नहीं रखे जाते हैं। इस प्रकार अवशोषण लागत पद्धति में स्थिर व्यय को कुछ लागत का अंग मानते हैं, परन्तु सीमावर्ती लागत पद्धति में उन्हें उत्पादन लागत के अंग नहीं मानते हैं। लाभ-निर्धारण करते समय स्थिर व्यय की कम या अधिक पुनः प्राप्ति (under or over recovery) को अवशोषण लागत पद्धति में लाभ-हानि खाता से चार्ज किया जाता है, जबकि सीमावर्ती लागत पद्धति में ऐसा नहीं किया जाता है।
(ii) अवशोषण लागत पद्धति में स्कन्ध के मूल्य में स्थिर व्यय का भी कुछ अंश शामिल होता है और इस प्रकार चालू वर्ष का स्थिर व्यय का कुछ भाग अगले वर्ष में और गत वर्ष के स्थिर व्यय का कुछ भाग चालू वर्ष में ले जाया जाता है।
सीमावर्ती लागत पद्धति में स्कन्ध के मूल्य में स्थिर व्यय का कुछ भी अंश शामिल नहीं होता है, सम्पूर्ण स्थिर व्यय को चालू वर्ष के दत्तांश में से ही पूरा कर लिया जाता है।
(iv) यदि उत्पादन व बिक्रीत मात्राएं एक समान न हों तो उक्त (ii) के कारण दोनों पद्धतियों के अन्तर्गत लाभ की रकम एक समान नहीं होगी। यदि किसी अवधि में उत्पादन हो परन्तु बिक्री न हो तो सम्पूर्ण उत्पादन को स्कन्ध के रूप में अगली अवधि में ले जाया जायेगा और किसी भी प्रकार का लाभ-हानि अवशोषण लागत पद्धति के अन्तर्गत नहीं होगा, परन्तु सीमावर्ती लागत पद्धति के अन्तर्गत हानि स्थिर व्यय के बराबर होगी।
(v) अवशोषण लागत पद्धति का प्रयोग दीर्घकालीन लागत व कीमत निर्धारण में अधिक उपयुक्त माना जाता है, सीमावर्ती लागत पद्धति विभिन्न प्रकार की प्रबन्धकीय समस्याओं के निराकरण, निर्णयन, नियोजन व नियन्त्रण में अधिक सहायक होती है।
वार्तालाप में शामिल हों