माँग की लोच महत्व - Importance of the Elasticity of Demand

माँग की लोच महत्व - Importance of the Elasticity of Demand


माँग की लोच के महत्व का अध्ययन सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों रूपों में किया जा सकता है। आगे दोन रूपों के अन्तर्गत अध्ययन किया जा रहा है: 


(प) सैद्धान्तिक महत्व - सामान्यतया यह कहा जाता है कि माँग की लोच बहुतायत के बीच निर्धनता की व्याख्या करती है। यदि किसी वर्ष मानसून अच्छा होने से कृषि उत्पादन अच्छा होने की सम्भावना होती है तो यह कहा जाता है कि किसानों को लाभ होगा। लेकिन ऐसा होता नहीं हैं क्योंकि फसल की माँग बेलोचदार होती है तो उस अनाज के मूल्यों में भारी कमी होगी। ऐसी स्थिति में कृशकों को अच्छी कीमतें नहीं मिलेंगी और ऐसी सम्भावना हो सकती है कि कृशकों को अनाज की उत्पादन लागत भी प्राप्त नहीं हो इसके विपरीत यदि किसी वर्ष फसल खराब होने से उत्पादन कम हो जाता है उस फसल की माँग की लोच बेलोच होने पर कृशकों को अच्छी आय प्राप्त होगी।


(पप) व्यापारिक महत्व ( Practical Importance ) - माँग की लोच के व्यावहारिक महत्व का अध्ययन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है-


(1) वित्त मंत्री के लिए महत्व - वित्त मंत्री की लोच का प्रयोग निम्न दो स्थानों पर करता है


(अ) करारोपण के समय वित्त मंत्री की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसे अपने अनुमानानुसार आय प्राप्त होती है अथव नहीं । अतः वित्त मंत्री करारोपण करते समय वस्तुओं की माँग की लोच को मध्य नजर रखता है। यही कारण है कि एक वित्त मंत्री बेलोच मॉंग वाली वस्तुओं पर कर लगाता है। ऐसी वस्तुओं पर कर लगाने से इसकी माँग पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है तथा उसे अनुमानित आय भी आसानी से प्राप्त हो जाती है। यदि लोचदार माँग वाली वस्तुओं पर कारारोपण किया जाता है

तो इनकी माँग भी घटेगी तथा सरकार को अनुमानित आय भी प्राप्त नहीं हो सकेगी। अतः लोचदार माँग वाली वस्तुओं पर कम कर लगाये जाने चाहिए।


(ब) करारोपण का भार - वित्त मंत्री को करारोपण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कर भार समाज के किस वर्ग पर पड़ेगा कर लगाते समय जिन लोगों पर कर भार पड़ने का अनुमान लगाया था वास्तव में उन्हीं लोगों पर कर भार पड़ता है अथवा अन्य पर सामान्यतः कर उत्पादकों पर लगाये जाते हैं और कर भार उपभोक्ताओं का वहन करना पड़ता है जो सरकारी अनुमान के विपरीत स्थिति को स्पष्टकरता है। अतः कर भार के समान वितरण हेतू माँग की लोच का ध्यान रखना आवश्यक है। यदि किसी वस्तु की माँग की लोच बेलोच है तो उत्पादक कर लगाये गये कर का शत-प्रतिशत भाग उपभोक्ता पर डाला जावेगा और इससे वस्तु की कीमत बढ़ जायेगी। इसके विपरीत यदि वस्तु की माँग की लोच लोचदार है तो उत्पादक कर उपभोक्ता पर नहीं डाल सकता है क्योंकि कीमत वृद्धि से वस्तु की माँग घट जावेगी।

इसके परिणामस्वरूप कर भार उत्पादक द्वारा ही वही किया जायेगा। अतः यह कहा जा सकता है कि बेलोच मॉंग वाली वस्तुओं पर लगाये गये कर का भार उपभोक्ता को वहन करना पड़ेगा तथा लोचदार माँग वाली वस्तुओं पर लगाये गये कर का भार उत्पादक को स्वयं को वहन करना पड़ेगा।


( 2 ) मूल्य निर्धारण में महत्व - मूल्य निर्धारण में माँग की लोच का प्रभाव पड़ता है। सामान्यतया किसी वस्तु के मूल्य निर्धारण में माँग एवं पूर्ति की अधिक शक्तियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। किसी वस्तु की पूर्ति में वृद्धि या कमी के प्रभाव से उसकी कीमत कितनी बढ़ती या घटती है, यह उस वस्तु की माँग की लोच पर निर्भर करती है। यदि किसी वस्तु की माँग की लोच बेलोच हुई तो पूर्ति में वृद्धि या कमी वस्तु के मूल्य को लगभग उसी अनुपात में वृद्धि या कमी करती है। यदि माँग की लोच लोचदार हो तो पूर्ति के परिवर्तन का प्रभाव कम पड़ेगा तथा यदि माँग की लोच अधिक लोचदार हुई तो मूल्य का प्रभाव और भी कम पड़ेगा।


( 3 ) एकाधिकारी के लिए महत्व (Importance of Monopoly ) - माँग की लोच का महत्व एकाधिकारी के लिए भी है। एकाधिकारी वस्तु के मूल्य निर्धारण करते समय वस्तु की माँग की लोच को ध्यान में रखता है जिससे वह अपने अधिकतम लाभ प्राप्ति के उद्देश्य को प्राप्त कर सके। सामान्यतया जिन वस्तुओं की माँग की लोच बेलोच होती है, एकाधिकार उनकी कीमत ऊँची रखता है क्योंकि मूल्य वृद्धि होने से उनकी माँग पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः वह मनमाना मूल्य वसूल करके अपने लाभ को अधिकतम करने में सफल हो जाता है। इसके विपरीत जिन वस्तुओं की माँग की लोच लोचदार होती है उनकी कीमत में थोड़ी सी वृद्धि उनकी माँग में अधिक कमी कर देती है और एकाधिकारी की वस्तुएँ बिक जाती है। अतः एकाधिकारी जिन वस्तुओं की माँग लोचदार होती है उनकी कीमत में वृद्धि नहीं करेगा और जिन वस्तुओं की माँग की लोच बेलोच होगी उनमें कीमत वृद्धि करेगा तथा अपने अधिकतम लाभ के उद्देश्य की पूर्ति कर सकेगा।


( 4 ) कीमत विभेद में महत्व (Importance in Price Discrimination) कीमत विभेद के अन्तर्गत भी एकाधिकारी माँग की लोच को ध्यान में रखता है एकाधिकारी एक ही वस्तु की विभिन्न उपभोक्ताओं से अलगा -अलग कीमतें वसूल करके विभेदात्मक नीति अपनाता है। कीमत विभेद के उद्देश्य की पूर्ति तभी की जा सकती है जबकि एकाधिकारी को भिन्न भिन्न केताओं की भिन्न-भिन्न बाजारों में माँग की लोच की जानकारी हो। जिस बाजार में वस्तुओं की मांग की लोच बेलोचदार होती होगी वहाँ वस्तुओं की कीमत एकाधिकारी ऊँची रखेगा तथा इसके विपरीत वस्तु की माँग की लोच लोचदार होगी वहाँ वस्तुओं की कीमत रखी जायेगी। इस प्रकार भिन्न-भिन्न बाजारों में वस्तुओं की भिन्न-भिन्न माँग की लोच में भिन्न-भिन्न कीमतें निर्धारित करके एकाधिकारी अपने लाभ को अधिकतम करेगा।


(5) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्व (Importance in International Trade) - माँग की लोच का महत्व न केवल आन्तरिक व्यापा में ही है बल्कि इसका महत्व अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भी है। यदि देश में विदेशों को होने वाले निर्यातों की माँग की लोच बेलोच होती है तो विदेशों में ऐसी वस्तुओं को ऊँची कीमतों पर बेचा जा सकेगा। स्वदेश के लिए आयातों की माँग बेलोचदार होने पर विदेशी वस्तुओं को ऊँचे दामों पर भी क्रय किया जायेगा। अतः विदेशी व्यापार संचालन में भी एक देश दूसरे देश की माँग की लोच की जानकारी ज्ञात करके ही अधिकाधिक लाभ प्राप्त कर सकता है।


(6) वितरण में महत्व (Importance)- माँग की लोच का महत्व अर्थशास्त्र के वितरण क्षेत्र में दिनो-दिन बढ़ता ही जा रहा है, उत्पादन विभिन्न उत्पादन के साधनों के संयुक्त प्रयास का परिणाम है। इसमें उत्पादन के साधनों को मिलने वाले हिस्से का निर्धारण करते समय उनकी माँग की लोच को ध्यान में रखना पड़ता है। उत्पादक के लिए जिन साधनों की माँग बेलोच होती है उनको ऊँचा पारिश्रमिक दिया जावेगा और जिन साधनों की माँग की लोच लोचदार होगी उन्हें पारिश्रमिक कम दिया जायेगा।