संस्थागत घटक - Institutional Factors
संस्थागत घटक - Institutional Factors
संस्थागत घटक भी उस संरचना के लिए उपयुक्त होते हैं, जिसमें एक कारखाना या उद्योग कार्य करता है। इनका भी उत्पादकता से महत्वपूर्ण सम्बन्ध होता है। इस शीर्शक के अन्तर्गत तीन सहायक संकेत सम्मिलित किये जा सकते हैं:
(अ) करारोपण अथवा आर्थिक सहायता आदि के सम्बन्ध में सरकारी नीतियाँ
(ब) उपक्रम द्वारा अवलोकित प्रतियोगिता का स्तर ।
(स) पूँजी की उपलब्धता तथा अन्य बहि मितव्ययितायें ।
सरकारी करों का भी लागतों के बढ़ने से उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
कर एक देश या क्षेत्र में भारी हो सकते हैं जबकि दूसरे में नहीं भी हो सकते। तथापि अन्य बातों के यथावत् होने पर, भारी करारोपण वाले क्षेत्र में, उत्पादन की लागत, गैर-करारोपण वाले क्षेत्र की तुलना में अधिक होगी। इससे निवेशों (Inputs )] उपकरण तथा ईंधन इत्यादि की भी लागत बढ़ सकती है सन्तुलित क्षेत्रीय विकास करने तथा आयात प्रतिस्थापन को उन्नत करने के लिए भारत सरकार को करो और आर्थिक अनुदानों का प्रचुरता से उपयोग करना चाहिए। मूल्य नियन्त्रण एवं नियमनों का भी निरन्तर उपयोग किया जाना चाहिए। इन सबका विशेषकर भारत में, लागतों और उत्पादकता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ेगा। यह भी बहुताय से महसूस किया गया है कि प्रतियोगिता की श्रेणी या स्तर भी उत्पादकता को बढ़ाता है, क्योंकि उस स्थिति में प्रबन्ध अधिक देख-रेख करता है
तथा बरबादियों ( wastage) की सम्भावनाओं को रोकने के लिए जागरूक हो जाता है। फिर भी उत्पादक संघों, मिल-जुल कर मूल्य निर्धारण करना तथा अनुपात निश्चित करता आदि अनेक प्रकार से संरक्षण उपकरण हैं जो उत्पादकता में कुशलता लाते हैं ।
ये शर्तें जिन पर पूँजी तथा अन्य सुविधाएँ बैंकों, गृह, परिवहन, बीमा इत्यादि उपलब्ध होती हैं, भी उत्पादकता को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण घटक होते हैं। संयन्त्र को जब उस स्थान पर स्थापित किया जाता है जहाँ कि हर सुविधा को क्रमबार जुटाया जाता है तो लागतें उस स्थान के संयन्त्र से अधिक होंगी, जहाँ कि सभी सुविधाये संयन्त्र की रचना के समय ही उपलब्ध थीं। यह हमारे अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के संयन्त्रों के लिये ठीक ही सिद्ध होता है।
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