श्रम एवं इसका उपयोग - Labour and its Utilization
श्रम एवं इसका उपयोग - Labour and its Utilization
अन्य उत्पादन साधनों के समान श्रम-साधन भी अनेक प्रकार से उत्पादकता को प्रभावित करता है। एक उपयुक्त स्वास्थ्य वाला तथा चतुर श्रम फर्म की एक सम्पत्ति है अतः उसे कार्य पर उसकी अभिरूचि के अनुसार ही लगाना चाहिये, जो कि एक उचित निर्णय भी है। यह एक ही सही बात है कि एक कारखाने में पुनरावृत्ति वाले कार्य जोखिमदार कार्य तथा पर्यवेक्षण सम्बन्धी कार्य होते हैं। यदि इन कार्यों के भार को उस कार्य के करने की प्रकृति वाले व्यक्ति को सुपुर्द किया गया तो इसका प्रतिफल बहुत अच्छा मिलता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में इस (Placement ) पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है।
वहाँ अनेक जाँच परीक्षायें तथा व्यापक साक्षात्कारो का आयोजन किया जाता है। प्रशिक्षण उन्मुख कार्यक्रमों (Training-oriented Programmes ) तथा रिफ्रेशर पाठ्कमों की आवश्यकता, श्रम को कार्यकुशल बनाने के लिये होती है और आगे वाले वर्शो में इस पर और भी अधिक बल दिया जावेगा। इससे उपक्रम में वांछनीय कुशलता आ जाती है। सोवियत रूस में कुछ उद्योगों के अध्ययन करने पर गलेन्सन ( Galenson ) तथा अन्य विचारकों ने महसूस किया कि वहाँ पर उद्योगों में कुशल श्रमिकों का अभाव है तथा स्टाफ भी अतिरिक्त (Surplus) में है ।
एक उपक्रम की उत्पादकता श्रमिक की मनोविचारधारा पर भी निर्भर होती है। उसकी मजदूरी और कार्य, असके पर्यवेक्षकों का व्यवहार (क्या वे अधिक उदार हैं या सख्त भी हैं, तथा तंग करने वाले हैं) उसके मजदूरी दर का ढाँचा, साथ ही साथ जाँच की अन्य श्रेणियों, उसकी उन्नति का भविष्य तथा अच्छे प्रयास हेतु उसे हतोत्साहित करते हैं। यह बिल्कुल यथार्थ है कि जहाँ वरिष्ठता ही क्रमोन्नति का आधार हो तथा जहाँ अकुशलता को भी बर्दाश्त कर लिया जाता हो तो वहाँ अत्यधिक कुशल से कुशल व्यक्ति भी अपने प्रयासों को समाप्त कर देगा तथा अपने अच्छे प्रयासों को भी नहीं करेगा। श्रमिकों की विचारधारा का मनोदशा किस प्रकार महत्वपूर्ण है इस को दुर्गापूर इस्पात संयन्त्र के उदाहरण द्वारा आंका जा सकता है। असन्तुष्ट तथा हताश श्रम-शक्ति कार्य की गति को कम करती है। इसके विपरीत टिस्को में कोई श्रम समस्या नहीं है, जो कि इसके लिए एक नमूना है।
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