विदेश नीति, 1991 / भारत की नई विदेशी निवेश नीति - Foreign Policy, 1991 / New Foreign Investment Policy of India

विदेश नीति, 1991 / भारत की नई विदेशी निवेश नीति - Foreign Policy, 1991 / New Foreign Investment Policy of India


1991 की विदेशी पूंजी नीति या नई विदेशी निवेश को उदार बना दिया गया तथा विदेशी पूजी के अंतरप्रवाह लगे प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया गया। पहले विदेशी पूंजी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत तक सीमित थी, अब इसे बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया गया है। 1991 से पहले सभी विदेशी निवेशों तथा तकनीकी सहयोगों को पूर्व अनुमति लेनी होती थी पर नई निवेश नीति में इसे स्वतः स्वीकृति दे दी गई है। विदेशी निवेश की स्वत स्वीकृति में सरकार या रिजर्व बैंक से किसी पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं पड़ती। निवेशकों को केवल निवेश करने के 30 दिनों के बीच निवेश की सूचना, रिजर्व बैंक को देनी पड़ती है।

पहले विदेशी पूंजी का प्रयोग पूंजीगत वस्तुओं के निर्माण तथा उच्च प्राथमिकताओं वाले उद्योगों तक सीमित था लेकिन अब इसे लगभग हर तरह के उद्योगों के लिए खुली छूट दे दी गई है। इसके अलावा अधिक विदेशी पूंजी आकर्षित करने के लिए विदेशी पूजी को बहुत सी रियायतें तथा प्रोत्साहन दिए गए हैं। अब विदेशी निवेश नीति को अधिक व्यावहारिक और सरल बना दिया गया है। नई विदेश पूंजी नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है:


(1) उदारवादी दृष्टिकोण:- वर्तमान निवेश नीति से विदेशी पूंजी के अंतरप्रवाह को बढ़ावा दिया जाएगा। अब विदेशी पूंजी का प्रयोग हर तरह के उद्योगों के लिए खोल दिया गया है। इस निवेश नीति में विदेशी निवेशकों को निवेश करने के लिए स्वतः स्वीकृति दे दी गई हैं

अर्थात उन्हें निवेश करने से पहले अब सरकारी अनुमति नहीं लेनी पड़ती। विदेशी पूंजी की भागीदारी को भी बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया गया है अर्थात अब विदेशी निवेशक किसी इकाई के 100 प्रतिशत अंश खरीद सकते है। इन सभी प्रावधानों से स्पष्ट है कि नई निवेश नीति में सरकार का दृष्टिकोण काफी उदार है।


(2) विदेशी पूंजी के विभिन्न रूप पहले विदेशी पूंजी के मुख्य प्रारूप विदेशी सहायता और व्यापारिक ऋण थे, लेकिन अब इसके अनेक प्रारूप है, जैसे 


(क) विदेशी सहयोग-विदेशी सहयोग से हमारा अभिप्राय किसी इकाई को भारत में विदेशी कंपनियों तथा भारतीय उद्यमियों द्वारा मिलकर चलाने से है।


(ख) विदेशी समता हिस्सेदारी - विदेशी समता हिस्सेदारी में विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय उद्यमों के समता अशों में निवेश किया जाता है। इसमें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश तथा पोर्टफोलियो निवेश को शामिल किया जाता है।


(ग) विदेशी संस्थागत निवेशकों, अनिवासी भारतीयों तथा विदेशी निवेशकों द्वारा निवेश इन सभी को भारतीय पूजी बाजार से अंशों, ऋणपत्रों तथा बॉण्डों को खरीदने की अनुमति दे दी गई है। 


(घ) भारतीय निगम क्षेत्र द्वारा विदेशी बाजारों में प्रतिभूतियां जारी करना कुछ शर्तें पूरी करने पर भारतीय कंपनियों को विदेशी पूंजी बाजारों में जी.डी.आर., ए.डी.आर. तथा एफ.सी.सी.बी. जारी करने की अनुमति दे दी गई है। इस तरह की प्रतिभूतियों को निर्गमित करने से भारतीय निगम क्षेत्र, विदेशी पूंजी के अंतरप्रवाह में सहायक होता है।


(3) अनिवासी भारतीयों को कर में रियायतें नई विदेशी नीति में अनिवासी भारतीयों से अधिक धन भारत में आकर्षित करने के लिए उन्हें कर से रियायतें दी गई है, जैसे- कुछ क्षेत्रों में नई औद्योगिक इकाई लगाने पर उन्हें निश्चित अवधि के लिए कर मुक्त करना या कर की दर कम करना, पूंजी लाभ पर कर की दर कम करना इत्यादि ।


( 4 ) तकनीकी सहयोग:- तकनीक के अंतरप्रवाह को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी सहयोग को विभिन्न रियायतें दी गई है। नई नीति के अनुसार विदेशी तकनीकी विशेषज्ञ नियुक्त करने अथवा देश में विकसित तकनीकों का विदेशों में परीक्षण कराने के लिए विदेशी मुद्रा भुगतान की इजाजत लेने की आवश्यकता समाप्त कर दी गई है।


(5) बोडों का गठन- इस नीति में यह प्रावधान भी किया गया है कि चुनिंदा क्षेत्रों में सीधे विदेशी पूंजी निवेश के लिए विशेषाधिकार प्राप्त बोडों का गठन किया जाएगा जो भारत में उपक्रम लगाने के बारे में बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ सारी बातें तय करेगा। यह एक विशेष कार्यक्रम के अंतर्गत किया जाएगा, ताकि भारी मात्रा में विदेशी पूंजी निवेश को आकर्षित किया जा सके तथा आधुनिकतम तकनीक प्राप्त की जा सके।


(6) लघु उद्योगों में विदेशी निवेश:- नई लघु औद्योगिक नीति के अनुसार विदेशी उद्यमकर्ता बिना किसी इजाजत के लघु उद्योगों में उनकी कुल पूंजी का 24 प्रतिशत तक निवेश कर सकते हैं। 


(7) संयुक्त उद्यम - एक जनवरी सन 1997 से भारतीय तथा विदेशी उद्योगपतियों द्वारा आरंभ किए जाने वाले संयुक्त उद्यमों की शर्तों को अधिक सरल तथा उदारवादी बना दिया गया है। विदेशी उद्योगपति अब संयुक्त उद्यमों में 51 प्रतिशत से अधिक शेयरों का स्वामित्व प्राप्त कर सकते हैं।


(8) पूर्ण स्वामित्व वाले विदेशी उद्यम नई विदेशी पूंजी नीति के अनुसार यदि विदेशी कंपनिया भारत में स्थित संयुक्त उद्यमों का पूर्ण स्वामित्व प्राप्त करना चाहती है या पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनिया स्थापित करना चाहती हैं तो उन्हें इसके लिए पूर्ण स्वतंत्रता होगी।


(9) अधोसंरचना के विकास के लिए विदेशी पूंजी - देश में अधोसंरचना, जैसे- सड़कें, बिजली, टेलीकम्यूनिकेशन्स, बंदरगाहों आदि के विकास के लिए सरकार ने विदेशी पूंजी को नई रियायतें प्रदान की है। इन क्षेत्रों में विदेशी पूंजी निवेशकर्ताओं को कई सुविधाएं प्रदान की जाएगी। उन्हें अपनी आय विदेशों में विदेशी मुद्रा के रूप में हस्तांतरित करने की पूर्ण स्वतंत्रता होगी। आधारभूत अधोसंरचना के विकास के लिए विदेशी पूंजी की सहायता से संयुक्त उद्यम भी लगाए जा सकते हैं। इनके लिए विदेशी पूंजी की अधिकतम सीमा निर्धारित कर दी गई है। उदाहरण के लिए ऊर्जा, तेल निकालना, तेल का साफ करना, सड़कों, बंदरगाहों, हवाईअड्डों में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दे दी गई है। बैंकिंग तथा दूरसंचार क्षेत्र में 74 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दे दी गई है।


(10) विदेशी निवेश लागूकरण प्राधिकरण- इस प्राधिकरण की स्थापना अगस्त 1999 में उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत की गई। यह प्राधिकरण इस बात पर ध्यान देगा कि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के अनुमोदनों को शीघ्रता से वास्तविक अंतरप्रवाह में बदला जाए।

इसके लिए विदेशी विनियोग संवर्धन बोर्ड की स्थापना की गई है। यह प्राधिकरण विदेशी निवेशकों की समस्याओं का समाधान करता है। इनका कार्य अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करना है।


(11) उच्च तकनीक तथा उच्च प्राथमिकता वाले उद्योग:-इन क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा देने के लिए स्वतः स्वीकृति को अपनाया गया है। अर्थात उच्च तकनीक एवं उच्च प्राथमिकता क्षेत्रों में निवेश करने समय सरकार से अलग अनुमति लेना आवश्यक नहीं है। इनमें विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 100 प्रतिशत तक हो सकती है तथा विदेशी निवेशकों को कभी भी पूजी और लाभ वापिस ले जाने की अनुमति होगी। ये क्षेत्र है-ऊर्जा, फार्मास्यूटिकल, एयरपोर्ट, पोर्ट, सर्विस प्रोवाइडर इत्यादि


( 12 ) निर्यात संवर्धन-निर्यात क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ाने के लिए इनमें 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दी गई है तथा कर में भी इस निवेश पर बहुत सी रियायतें दी गई है। निर्यात क्षेत्र में निर्यात प्रेरक इकाइयां, निर्यात गृहाँ, स्टार व्यापार गृहों को शामिल किया गया है। 


(13) विदेशी निवेशकों द्वारा विनिवेश नई नीति से पहले विदेशी निवेशकों द्वारा भारत में किए गए निवेश को रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित मूल्य पर बेचना पड़ता था, लेकिन अब नई नीति में विदेशी निवेशकों को अपना निवेश शेयर बाजार में बाजार मूल्य पर बेचने की अनुमति दे दी गई है और ये निवेशक अपने धन का वापिस ले जा सकते हैं।


(14) विदेशी संस्थागत निवेशक पोर्टफोलियो विनियोग में विदेशी संस्थागत निवेशकों को अधिक निवेश के लिए रियायतें दी गई है।

पहले ये निवेशक 24 प्रतिशत से अधिक निवेश नहीं कर सकते थे पर अब कंपनी के अंशधारियों के विशेष प्रस्ताव द्वारा अनुमति देने पर ये निवेशक किसी कंपनी में इस उद्योग के लिए निर्धारित वैधानिक ऊपरी सीमा तक निवेश कर सकते हैं। लेकिन एक अकेला विदेशी संस्थागत निवेशक किसी कंपनी की कुल प्रदत पूजी का 10 प्रतिशत से अधिक निवेश नहीं कर सकता। वर्ष 2006-07 में विदेशी संस्थागत निवेशकों की पंजीकरण फीस को 5,000 डालर से बढ़ाकर 10,000 डालर कर दिया गया है। वर्ष 2011 के अंत तक भारत में पंजीकृत एफ. एल एल की संख्या बढ़कर 1767 हो गई।


(15) निवेश आयोग:-भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अंतरप्रवाह को बढ़ावा देने के लिए दिसंबर 2004 में निवेश आयोग की स्थापना की गई है। यह आयोग विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए प्रेरित करता है तथा उन्हें निवेश करने से संबंधित आवश्यक सहयोग देता है। यह आयोग विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में प्रस्तावों में सरकार की तरफ से लगने वाली देरी को भी कम करने का प्रयास करता है।


(16) विदेशी निवेश के साथ उचित व्यवहार सरकार ने नई नीति में स्पष्ट किया कि विदेशी निवेश के साथ कोई भेदभावपूर्ण नीति नहीं अपनाई जाएगी और उन्हें घरेलू निवेशों पर दी जाने वाली सभी रियायतें उपलब्ध होगी।


(17) धन वापिस ले जाने की सुविधा:-विदेशी निवेशक अपनी पूंजी लाभांश, रॉयल्टी तकनीकी सेवाओं की फीस आदि अपने देश में लेकर जा सकते हैं। इससे विदेशी निवेश में काफी तेजी आई है।


(18) विदेशी निवेश के लिए स्वीकृति-यदि किसी परियोजना में 1200 करोड रू. तक के विदेशी निवेश लगाए जाने हैं, तो इसकी स्वीकृति वित मंत्रालय के अंदर कार्यरत विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड से लेनी होगी। यदि विदेशी निवेश की राशि 1200 करोड़ रु से अधिक है तो इसके लिए आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी से स्वीकृति लेनी पडती है। वर्ष 2007 में सरकार ने विदेशी पेंशन फंडों, चेरिटेबल संस्थाओं तथा विश्वविद्यालय फंडों को भारत में एफ आइ आइ के रूप में पंजीकरण की अनुमति दे दी है।


संक्षेप में, भारतीय नई निवेश नीति काफी उदार है तथा विदेशी निवेशकों के पक्ष में है। इससे भारत में निवेश को बढ़ावा मिला है, लेकिन अभी भी भारत में विदेशी निवेश काफी कम है। विदेशी निवेशकों का विश्वास प्राप्त करने के लिए विदेशी निवेश नीति को और भी सरल, स्पष्ट तथा उदार बनाना चाहिए।