राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (राष्ट्रीय आयोग) - National Consumer Disputes Redressal Commission (National Commission)

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (राष्ट्रीय आयोग) - National Consumer Disputes Redressal Commission (National Commission)


पूरे देश में उपभोक्ता विवादों के मामलों को निपटाने हेतु सी.पी.ए. 1986 द्वारा सर्वोच्च इकाई के रूप में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की अवधारणा विकसित की गई और एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना दिल्ली में की गई। इसके एक अध्यक्ष तथा चार अन्य सदस्य होते हैं जिसमें एक महिला का होना अनिवार्य है। अध्यक्ष पद पर वही व्यक्ति नियुक्त हो सकेगा जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए अर्ह होगा तथा अन्य सदस्यों के लिए राज्य आयोग के सदस्य की तरह अर्थशास्त्र, विधि, उद्योग, प्रशासन आदि क्षेत्र में अनुभव होना आवश्यक है। राज्य आयोग की ही तरह राष्ट्रीय आयोग के अधिकार क्षेत्र तीन प्रकार के हैं - वास्तविक, अपीलीय तथा निरीक्षणीय। वास्तविक अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत राष्ट्रीय आयोग उन्हीं मामलों की सुनवाई कर सकता है

जिसमें वस्तु या सेवा का मूल्य एवं मुआवजा की राशि एक करोड़ रूपये से अधिक हो। अपीलीय अधिकार के अंतर्गत किसी भी राज्य आयोग के निर्देश के खिलाफ अपील की सुनवाई राष्ट्रीय आयोग कर सकता है। निरीक्षणीय अधिकार के अंतर्गत राष्ट्रीय आयोग किसी भी रिकार्ड की मांग कर सकता है और उपभोक्ता विवाद के मामले में उपयुक्त निर्णय भी दे सकता है जो किसी भी राज्य आयोग में निर्णय आने की प्रतीक्षा में लंबित पड़ा हो। राष्ट्रीय आयोग द्वारा ऐसी शकित का प्रयोग तब किया जाता है जब कमीशन पाता है कि राज्य आयोग ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम किया है या अपने न्यायिक क्षेत्र का पालन करने में असफल हुआ हो या गैरकानूनी ढंग से मामले को निपटाया हो । राष्ट्रीय आयोग किसी भी शिकायतकर्ता के आवेदन पर या स्वयं ऐसा पाने पर किसी भी लंबित मामले को एक राज्य के जिला फोरम से दूसरे राज्य के जिला फोरम में भेज सकता है, यदि आयोग को लगता है कि ऐसा करने से प्राकृतिक न्याय मिल सकेगा।


राष्ट्रीय आयोग उपभोक्ता विवाद निवारण के लिए सर्वोच्च संस्था के रूप में काम करता है और इसके द्वारा दिए गए निर्णय अधिनस्थ एजेंसियों के लिए आदर्श साबित होते हैं। यह अभिलेख न्यायालय और न्याय के सिद्धांत की तरह काम करता है तथा इसके द्वारा लागू किए गए आदेश अन्य प्राधिकरणों के लिए मानना आवश्यक होता है। उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2002 के अनुसार राष्ट्रीय आयोग को अपने ही आदेश की समीक्षा करने की शक्ति मिल गई है। किसी भी मामले में कोई भी पक्ष अगर राष्ट्रीय आयोग के फैसले से संतुष्ट नहीं हो तो वे इस फैसले के खिलाफ तीस दिनों के भीतर सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। सामान्यतः सर्वोच्च न्यायालय में उन्हीं मामलों को लिया जाता है जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने कानून का महत्वपूर्ण प्रश्न माना हो ।


देश के विभिन्न स्तरों पर विवाद निवारण प्रणाली के महत्वपूर्ण कार्यों की व्याख्या सी.पी.ए. 1986 के विभिन्न प्रावधानों के अंतर्गत भी गई है। धारा 24 के अंतर्गत कहा गया है

कि किस मामले में अपील को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है। जिला फोरम, राज्य आयोग एवं राष्ट्रीय आयोग के आदेश अंतिम होते हैं। विभिन्न फोरमों में शिकायत दर्ज कराने हेतु एक निशिचत अवधि का वर्णन किया गया है। जैसे कि, किसी भी शिकायत के प्रश्न उठने की तिथि से दो वर्ष के अंदर ही किसी भी विवाद निवारण एजेंसी के पास शिकायत दर्ज कराना आवश्यक होगा। इस मामले में देरी होने पर संबंधित पक्ष को उपयुक्त निवारण एजेंसी के पास पर्याप्त कारणों सहित लिखित आवेदन देना होगा। विवाद निवारण एजेंसी को उन शिकायतों को खारिज करने की भी शकित है जो उसे मूर्खतापूर्ण या अव्यवहारिक मामला लगे। इन मामलों में दूसरी पार्टी को मुआवजा के रूप में उचित राशि दिलाया जा सकता है, मगर यह राशि दस हजार रूपये से अधिक नहीं होगा।


शिकायतकर्ता एक उपभोक्ता है या नहीं, के निर्णय हेतु उपभोक्ता फोरम की स्थापना की गई तथा उसे इस मामले से संबंधित शक्तियां भी दी गई हैं। उपभोक्ता एजेंसी को शिकायत मिलने के बाद व्यापारी या किसी व्यक्ति को दंड देने की शक्ति प्राप्त है। इस दंड के अंतर्गत न्यूनतम एक महिने तथा अधिकतम तीन वर्ष का कारावास या दो हजार रूपये से लेकर दस हजार रूपये तक दंड या दोनों का प्रावधान हैं। अन्य कानूनों के अंतर्गत उपचार के न रहने से सी.पी.ए. 1986 पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। धारा 3 यह सुनिशिचत करती है कि अधिनियम के प्रावधान तत्कालीन अन्य कानूनों के प्रावधानों से तालमेल बिठाकर कार्य करें। परिणामतः शिकायतकर्ता के पास इस बात का पूरा अवसर होता है कि वे अपनी शिकायतों के निवारण के लिए या तो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम या अन्य कानूनी प्रावधानों के अंतर्गत उपचार मांग करे।