बैंकों की सेवायें - services of banks
बैंकों की सेवायें - services of banks
आधुनिक बैंकों के कार्य
जिस प्रकार बैंकों का विकास धीरे-धीरे हुआ है, उनके कार्यों का विस्तार धीरे-धीरे ही होता रहा है। प्राचीन काल में बैंकर आरम्भ में केवल मुद्राओं का अदल बदल ही करते थे, बाद में वे लोगों से ब्याज पर ऋण भी स्वीकार करने लगे। उनके पास अधिक धन जमा हो जाने पर उन्होंने इस धन में से ऋण देना भी आरम्भ कर दिया। धीरे-धीरे चैक का प्रयोग आरम्भ हुआ तथा अन्य साख पत्रों का विकास हुआ। सन् 1708 तक नोटों के निर्गमित करने का अधिकार या तो सरकार के हाथों में था या केंद्रीय बैंक के हाथ में संयुक्त पूँजी वाले बैंकों का उदय होने पर ये संस्थाएँ विविध प्रकार के एजेंसी कार्य भी करने लगी। आधुनिक बैंक अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। उनके प्रमुख कार्य निम्नलिखित है
(1) जमा स्वीकार करना:- बैंकों द्वारा जनता से धन मुख्यतः दो प्रकार से प्राप्त किया जाता है- अपने शेयर बेचकर तथा जनता से जमा स्वीकार करके शेयरों की बिक्री से प्राप्त पूँजी बैंक के व्यवसाय के लिए पर्याप्त नहीं होती है, इसलिए बैंकों को जनता से उनकी जमाराशियों के रूप में ऋण लेना पड़ता है। लोग अपनी बचते बैंकों में जमा कर देते हैं जिन पर उन्हें ब्याज मिलती है तथा उनका धन सुरक्षित रहता है। बड़े व्यापारियों को अपना धन बैंक के पास रखने में भुगतानों में बड़ी सुविधा होती है।
बैंक में रकम करने के लिए प्रायः पाँच प्रकार के खातों की व्यवस्था होती है, जिनमें से प्रथम तीन प्रकार के खाते तो सभी बैंकों में होते है, परंतु अंतिम तीन प्रकार के खातों की व्यवस्था केवल कुछ ही बैंकों में होती है। ये विभिन्न खाते निम्नलिखित है:
(क) निश्चितकालीन जमा खाता:- इस प्रकार के खाते में रकम एक निश्चित अवधि के लिए जमा की जाती है जो प्रायः 3 माह से 5 वर्ष तक के लिए होती है। जमाकर्ता को जमा की रसीद दे दी जाती है, जिसमें जमाकर्ता का नाम, जमा की राशि ब्याज की दर तथा जमा की अवधि लिखी रहती है। यह रसीद हस्तान्तरणीय नहीं होती और अवधि की समाप्ति पर रकम वसूल करते समय यह रसीद बैंक को लौटा देनी होती है। यदि जमाकर्ता को अपनी रकम की आवश्यकता अवधि पूर्ण होने से पहले पड़ जाती है तो कुछ कटौती काट कर बैंक उसे रकम लौटा देता है। निश्चितकालीन जमा पर बैंक अधिक ब्याज देता है। अवधि जितनी ही लंबी हो ब्याज दर उतनी ही ऊँची होती है क्योंकि बैंक को यह विश्वास रहता है कि वह इस रकम को लंबे समय तक प्रयोग कर सकता है तथा ऋण देकर ब्याज कमा सकता है। इस प्रकार की जमाराशि को बैंक की काल देनदारी कहा जाता है। (ख) चालू खाता: - इस प्रकार के खाते में जमाकर्ता दिन में जितनी बार चाहे रूपया जमा करा सकता है और निकाल सकता है।
जमाराशि प्रायः चैक द्वारा निकाली जाती है। व्यापारियों तथा बड़ी-बड़ी संस्थाओं के लिए चालू खाते बहुत उपयोगी होते है क्योंकि उन्हें दिन में कई भुगतान प्राप्त होते है और अनेक भुगतान करने होते है। चालू खाता खोलने पर बैंक द्वारा एक पास बुक जिसमें लेन देन का विवरण होता है, एक चैक बुक तथा रकम जमा कराने के फार्म दिए जाते है। साधारणतया चालू खाते में जमाराशि पर बैंक ब्याज नहीं देते बल्कि कुछ बैंक तो जमाकर्ता से कुछ सेवा व्यय भी वसूल करते हैं। जमाराशि के न्यूनतम रकम के कम होने पर दोनों के अंतर पर जमाकर्ता से ब्याज ले ली जाती है। चालू खाते में जमाराशि को बैंक की माँग देनदारी कहा जाता है। अमेरिका में चालू खाते को चैक खाता कहते हैं।
(ग) बचत खाता:- छोटी बचत वाले लोगों के लिए बचत खाते अधिक उपयुक्त होते हैं। इस प्रकार के खाते में सप्ताह में कई बार रकम जमा की जा सकती है परंतु एक या दो बार से अधिक निकाली नहीं जा सकती। कुछ बैंकों में रकम निकालने की सुविधा या आधार साप्ताहिक न होकर वार्षिक होता है
अर्थात् एक वर्ष में 100 बार के लगभग रकम निकाली जा सकती है एक बार मे एक निर्धारित सीमा से अधिक रूपया निकालने के लिए बैंक पहले से सूचना देने की शर्त रख सकता है। इन खातों से रूपया निकालने की दो प्रणालियाँ है । एक तो रूपया निकालने समय पास बुक प्रस्तुत करनी होती है और रूपया निकालने का फार्म भरकर रूपया निकाला जाता है। दूसरा तरीका चैक द्वारा रूपया निकालने का है। एक निश्चित रकम से कम जमाराशि न होने पर बैंक चैकों द्वारा निकालने की सुविधा देते है
(घ) आवर्ती जमा खाता:- एक निर्धारित अवधि के लिए जमाकर्ता मासिक आधार पर रकम जमा करता है जिसे बैंक द्वारा अवधि पूर्ण होने पर लौटाया जाता है। कुछ बैंक दैनिक आधार पर भी जमा स्वीकार करते है। आवर्ती खातों में प्रायः छोटी बचत वाले लोग ही रकम जमा करते हैं। इन पर बैंक ब्याज देता है जोकि मूल धन के साथ जुड़ती रहती है। सामान्यतया अवधि पूर्ण होने से पहले रकम नहीं निकाली जा सकती है। यदि इसके लिए बैंक अनुमति देता है तो ब्याज में कटौती की जाती है।
(ङ) गृह बचत खाता:- कुछ बैंकों द्वारा छोटी बचतों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से ग्राहकों को घर ले जाने के लिए गुल्लक दी जाती है जिसमें वे समय-समय पर अपनी बचत डालते रहते है। गुल्लक की चाबी बैंक के पास रहती है। कुछ समय बाद गुल्लक बैंक में लाने पर उससे रकम निकाल ली जाती है और जमाकर्ता के खाते में जमा हो जाती है। इस प्रकार की जमा पर ब्याज की दर प्रायः कम होती है।
(च) अनिश्चितकालीन जमा खाता:- इस खाते के अंतर्गत अनिश्चित काल के लिए रकम जमा करायी जाती है जिसे कुछ विशेष दशाओं में ही निकाला जा सकता है। जमाकर्ता केवल ब्याज की रकम निकाल सकता है। इस खाते में जमा रकम पर ब्याज दर काफी ऊँची होती है परंतु ऐसे खाते हमारे देश में विशेष प्रचलित नहीं है।
इस प्रकार बैंक अपना व्यवसाय चलाने के लिए अंश पूँजी के अतिरिक्त जनता से उपर्युक्त खातों के अंतर्गत जमा प्राप्त करता है। इस पर भी यदि बैंक पर्याप्त साधन जुटा पाता हो वह अन्य बैंकों से अथवा केंद्रीय बैंक से ऋण लेता है। केंद्रीय बैंक अन्य सभी बैंकों की स्थिति का ध्यान रखता है।
(2) ऋण देना:- आधुनिक बैंकों का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य ऋण देना है। जमाकर्ताओं की रकम बैंक के पास जमा रखी नहीं रहती। कुछ नकद कोष रखने के पश्चात् बैंक बाकी रकम ज़रूरतमंद व्यवसायियों को ऋण के रूप में दे देता है। बैंक जमा पर दी जाने वाली ब्याज की अपेक्षा ऋणों पर अधिक ब्याज लेता है और इन दोनों की दरों के अंतर से बैंक को लाभ होता है। बैंकों को ऋण देने का कार्य काफी सतर्कता से करना होता है क्योंकि असावधानी का परिणाम बैंक के लिए हानिकारक हो सकता है।
आधुनिक बैंक प्रायः उत्पादन कार्यों के लिए ही ऋण देते हैं तथा उचित जमानत या धरोहर की माँग करते हैं। अधिकांश बैंक ऐसी धरोहर पर ऋण देते हैं जिसे आसानी से बाजार में बेचा जा सके। ऋण की रकम प्रायः धरोहर मूल्य से कम होती है, क्योंकि मूल्य में परिवर्तन की संभावना के कारण कुछ अंतर रखना आवश्यक होता है। कभी-कभी बैंक द्वारा व्यक्तिगत जमानत पर दो या दो से अधिक व्यक्तियों की सम्मिलित जमानत पर या चल एवं अचल संपत्ति की गिरवीं पर भी ऋण दिया जाता है। बैंक सामान्यतः निम्नलिखित चार प्रकार के ऋण प्रदान करते हैं:
(क) ऋण तथा अग्रिम धनः- एक निश्चित रकम के निश्चित समय के लिए दिए गए ऋण जिनका भुगतान पूर्णतया हो जाने पर ही ऋण का अंत होता है, ऋण अथवा अग्रिम धन कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में, ऋणी बैंक से जो संपूर्ण राशि ऋण के रूप में प्राप्त करता है
उनका कुछ अंश लौटा देने पर ऋणी पुनः उसी ऋण के अंतर्गत उसे प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होता। बैंक उसे अलग से दूसरा ऋण दे सकता है। इस प्रकार ऋण कभी चालू नहीं रहता। यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि जब कभी इस प्रकार का ऋण दिया जाता है तो ऋण लेने वाले के नाम एक खाता खोलकर ऋण की राशि उसमें लिख दी जाती है। ऋण लेने वाला आवश्यकतानुसार चैक द्वारा समय-समय पर रकम निकालता रहता है। ऋण की पूरी रकम पर तत्काल ब्याज लगना आरम्भ हो जाता है, चाहे उस रकम का केवल एक भाग ही निकाला जाय। ऋण प्रायः यथेष्ट जमानत पर आधारित होता है तथा इसकी अवधि निश्चित होती है। ब्याज की दर का ग्राहक की साख ऋण के उद्देश्य, अवधि तथा धरोहर की किस्म आदि पर निर्भर करता है।
(ख) नकद साख: - इस व्यवस्था के अंतर्गत बैंक एक निश्चित सीमा तक ऋण प्राप्त करने का अधिकार दे देता है। इस सीमा के अंदर ऋणी अपनी आवश्यकतानुसार बैंक से रकम लेता रहता है
और जमा भी करता रहता है। ब्याज उसी रकम पर वसूल किया जाता है, जो वास्तव में ऋणी के पास रहती है परंतु कभी-कभी बैंक नकद साख की कुल रकम पर ही ऋणी से ब्याज लेता है। ऋण के लिए व्यापारिक माल, बॉण्ड अथवा स्वीकृति प्रतिभूतियों की जमानत ली जाती है। यह प्रणाली स्कॉटलैंड में आरंभ हुई थी और आज सभी देशों में प्रचलित है।
(ग) अधिकवर्षः - बैंक में चालू खाता अथवा बचत खाता रखने वाले ग्राहक बैंक से एक समझौते के अंतर्गत अपनी जमा की राशि से अधिक रकम निकालने की अनुमति ले लेते हैं। निकाली गई अतिरिक्त रकम को ही अधिकवर्ष कहा जाता है। इस प्रकार की सुविधा बैंक द्वारा अल्प समय के लिए ही दी जाती है। यह उचित जमानत देने पर केवल विश्वसनीय ग्राहकों को ही मिलती है। अधिकवर्ष पर ब्याज भी अधिक ली जाती है। यह सुविधा उन्हीं
खातों पर दी जाती है जिनमें चैक के द्वारा रकम निकाली जा सकती है।
(घ) विनिमय बिलों का भुनाना:- मुद्दती बिलों की मुद्दत अथवा अवधि पूर्ण होने के पूर्व यदि बिल का भुगतान प्राप्त करने वाला भुगतान चाहता है तो वह बैंक से बिल भुना लेता है। भुगतान के बाकी समय की ब्याज की कटौती करके बैंक तत्काल भुगतान कर देता है। इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाता है कि इस प्रकार के बिल व्यापारिक बिल ही हों। बिल की कटौती अथवा बट्टा तीन बातों पर निर्भर करता है-बिल की अवधि, बिल की रकम तथा बिल की जोखिम बिलों के आधार पर दिए गए ऋण बैंक के लिए लाभदायक होते हैं क्योंकि 1. बिल का भुगतान के लिए जिम्मेदारी बिल के दोनों पक्षों, अर्थात् बिल के लिखने वाले तथा स्वीकार करने वाले की होती है, इसलिए बैंक को दोहरा संरक्षण रहता है. 2. आवश्यकता पड़ने पर बैंक इन बिलों को केंद्रीय बैंक से पुनः भुना सकता है, 3. यह ऋण अल्पकालीन होता है, 4. बिलों को मूल्य स्थिर रहता है क्योंकि इनकी रकम निश्चित होती है। इनसे देश के व्यापार को भी लाभ पहुँचता है।
(3) अभिकर्ता संबंधी कार्य:- बैंक अपने ग्राहकों के लिए एजेण्ट अथवा प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करते है। ऐसे कार्यों के लिए ग्राहक स्वयं अपने बैंक को लिखित अनुमति देते है। इनमें से कुछ कार्य निशुल्क किए जाते है तथा कुछ के लिए निश्चित शुल्क प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार के प्रमुख कार्य निम्नलिखित है:
• ग्राहकों द्वारा भेजे गए चैक, विनिमय बिल आदि साख पत्रों का भुगतान एकत्र करने का कार्य बैंक करते हैं।
• बैंक अपने ग्राहकों द्वारा लिखे गए चैकों का भुगतान करते हैं तथा कभी-कभी ग्राहकों
के बिल भी स्वीकार करते हैं, जिनका भुगतान निश्चित तिथि पर कर दिया जाता है। • ग्राहकों के आदेशानुसार बैंक अपने बीमे के प्रीमियम कर, व्याज चंदे, ऋण की किस्त आदि के भुगतान करने का कार्य करते हैं।
• अपने ग्राहकों की ओर से बैंक लाभांशों, ब्याज, किराया ऋण की किस्त आदि वसूल भी करते हैं।
• बैंक अपने ग्राहकों के लिए सरकारी प्रतिभूतियों, कंपनियों के शेयर्स तथा ऋणपत्रों आदि के क्रय विक्रय का कार्य भी करते हैं।
• बैंकों द्वारा अपने ग्राहकों की सुविधा के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान को रकम भेजने की व्यवस्था की जाती हैं।
• बैंक अपने ग्राहकों की संपति के प्रबंधक, ट्रस्टी अथवा व्यवस्थापक का कार्य भी करते हैं।
• ग्राहकों के लिए बैंक पासपोर्ट तथा यात्रा संबंधी विदेशी विनिमय एवं अन्य सुविधाओं के लिए भी पत्र व्यवहार करते हैं।
(4) विदेशी विनिमय का क्रय विक्रयः-अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास के लिए बैंक विदेशी विनिमय का क्रय विक्रय करते हैं। यद्यपि यह कार्य मुख्य रूप से विदेशी विनिमय बिलों का है,
परंतु साधारण वाणिज्यिक बैंक भी यह कार्य करते है। जिन देशों में विदेशी विनिमय का क्रय विक्रय नियंत्रित होता है, यह कार्य केंद्रीय बैंक अथवा उससे अनुमति प्राप्त किसी अन्य बैंक द्वारा ही किया जाता है।
(5) विविध उपयोगी सेवाएं:- ऊपर बताए गए अनेक कार्यों के अतिरिक्त आधुनिक बैंक निम्नलिखित कुछ सामान्य उपयोगी कार्य भी करते है जैसे • बैंक अपने ग्राहकों की बहुमूल्य वस्तुओं जैसे जेवर, कानूनी पत्र, दस्तावेज़ आदि को
सुरक्षित रखने के लिए विशेष प्रकार की छोटी तिजोरियाँ अपने पास रखते हैं। • बैंक अपने ग्राहकों के लिए यात्री चैक तथा साख प्रमाण पत्र देते है जिससे उन्हें
यात्रा करते समय नकद मुद्रा साथ नहीं ले जाती पड़ती।
• बैंकों द्वारा क्रेडिट कार्ड तथा डेबिट कार्ड जारी किए जाते है, जिनके माध्यम से इनके धारक अनेक प्रकार के भुगतान कर सकते है। इन्हें प्लास्टिक मनी की संज्ञा दी जाती है। क्रेडिट कार्ड का धारक इसका प्रयोग करने पर बैंक का ऋणी हो जाता है। एक निर्धारित अवधि के पश्चात् रकम वसूल न होने पर बैंक ब्याज लेता है। डेबिट कार्ड का प्रयोग करने पर धारक के बैंक खाते में जमा राशि से स्वतः की विक्रेता को भुगतान प्राप्त हो जाता है। बैंकों का कंप्यूटरीकरण होने के पश्चात् ए.टी. एम जारी किए गए है जिनका प्रयोग करके बैंक बिना काउन्टर पर गए नकदी प्राप्त कर सकते है। कुछ बैंकों के ए.टी.एम का प्रयोग डेबिट कार्ड के रूप में भी किया जा सकता है।
• बैंक अपने ग्राहकों की आर्थिक स्थिति की सूचना अन्य व्यापारियों को देते है और पूछे जाने पर अन्य व्यापारियों की आर्थिक स्थिति की जांच पड़ताल करके अपने ग्राहकों को सूचित करते हैं।
• कुछ बड़े बैंक देश के व्यापार तथा उद्योग से संबंधित आँकड़े एकत्र करते हैं तथा सूचनाएँ प्रकाशित करते हैं।
• बैंक कंपनियों के शेयर्स तथा ऋणपत्रों के अभिगोपन का कार्य करते हैं, जिससे कंपनियों को पूँजी प्राप्त करने में सुविधा होती है। यह शेयर्स जनता द्वारा न खरीदे जाने पर बचे हुए शेयर्स बैंक स्वयं खरीद लेता है।
• सरकार द्वारा जारी किए गए ऋणों की बिक्री की व्यवस्था बैंकों द्वारा की जाती है।
बाढ़ पीडितों का कोष, सुरक्षा कोष आदि राष्ट्रीय चंदे संग्रह करने का कार्य भी बैंकों
द्वारा किया जाता है।
देश के प्रमुख बैंक स्टॉक एक्सचेंज में समाशोधन गृह का कार्य भी करते हैं तथा सौदों के भुगतान में सहायक होते हैं।
• बैंक अपने ग्राहकों की उपभोग की महंगी वस्तुओं, जैसे मोटर स्कूटर, रेफ्रिजरेटर
आदि की उपलब्धि ऋण पर करा देते हैं।
• बैंक एक विशेषज्ञ के समान अपने ग्राहकों को उनके धन तथा निवेश संबंधी मामलों
में सलाह देते हैं।
(6) इलेक्ट्रॉनिक आधारित बैंकिग कारोबार:- देश के भीतर और विभिन्न देशों में आर्थिक एकीकरण, विनियमन, दूरसंचार की उन्नति और इन्टरनेट एवं बेतार सूचना, प्रौद्योगिकी की वृद्धि से वितीय सेवाओं के स्वरूप और प्रकृति में नाटकीय परिवर्तन हो रहा है। इलेक्ट्रॉनिक संचार के उपयोग में वृद्धि तथा कागज आधारित लिखितों के अतिरिक्त अन्य तरीकों के आधार पर निधि अंतरण के आविर्भाव के कारण इलेक्ट्रॉनिक आधारित बैंकिंग कारोबार में वृद्धि हुई है।
कागज रहित प्रणाली के संबंध में ई-मनी को अपनाया जा सकता है। पूर्ण इलेक्ट्रॉनिक कारोबारी सिस्टम से मुक्त इन्टरनेट बैंकिंग शुरू करने के लिए कंप्यूटरीकरण, नेटवर्किंग और सुरक्षा अंतर बैंक भुगतान गेटवे और विविध ढाँचे से मुक्त प्रौद्योगिकी की दृष्टि से बुनियादी आवश्यकताएँ शामिल रहती हैं।
(7) साख निर्माण का कार्य:-अधिक लाभ कमाने के लिए आधुनिक बैंक अपनी अंश पूँजी तथा जमा राशि की कुल मात्रा से अधिक ऋण देते हैं जो उनके द्वारा साख का निर्माण करने पर संभव होता है। वास्तव में, आधुनिक बैंक व्यवस्था का विकास बहुत कुछ बैंकों की साख निर्माण की शक्ति द्वारा ही संभव हुआ है। बैंकों के साख निर्माण कार्य का विस्तृत वर्णन अगले अध्याय में अलग से किया गया है।
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