सामाजिक दृष्टि से बीमा का महत्व - importance of insurance from social point of view

सामाजिक दृष्टि से बीमा का महत्व - importance of insurance from social point of view

समाज में स्थायित्व व सामाजिक समस्याओं के निवारण हेतु बीमा एक महत्वपूर्ण औजार है। समाज को बीमा से अनेक लाभ है जो इस प्रकार है


1. सामाजिक सुरक्षा का साधन बीमा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है। बीमा करा कर व्यक्ति अपनी चिन्ताओं से मुक्त हो जाता है। जीवन बीमा के द्वारा वृद्धावस्था, अपंगता, बीमारी व मृत्यु होने पर आश्रितों को सामाजिक सुरक्षा प्राप्त होती है। अग्नि बीमा से बहुमूल्य सम्पत्तियों, औद्योगिक संस्थाओं की सुरक्षा, तो सामुद्रिक बीमा से मार्ग की कठिनाईयों व माल को होने वाली क्षति से सुरक्षा प्राप्त कर सकता है। इन सुरक्षा तत्वों के कारण बीमा समाज के प्रत्येक क्षेत्र में महत्वपूर्ण बनता जा रहा है।


2. जोखिमों का अन्तरण बीमा के द्वारा बीमित एक व्यक्ति की जोखिमों को अनेक व्यक्तियों के समूह में बाँट दिया जाता है। क्षति का दायित्व बीमित पर या किसी एक व्यक्ति पर नहीं रह कर सम्पूर्ण समूह को (बीमाकर्ता ) वितरित हो जाता है जो पूरे समाज के लिए हितकर होता हैं।


3. पारिवारिक जीवन में स्थायित्वता बीमे के द्वारा परिवार में स्थायिता लायी जा सकती है। परिवार के मुखिया की मृत्यु होने पर पूरा पारिवारिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। किन्तु जीवन बीमा के द्वारा व्यक्ति मृत्यु के पश्चात् भी परिवार को स्थायित्व प्रदान कर सकता है।


4. पारिवारिक विघटन से सुरक्षा संयुक्त परिवार तो स्वयं बीमे के समान सुरक्षा प्रदान करता है परन्तु एकल परिवारों में यदि मुखिया की मृत्यु हो जाये तो उसकी विधवा पत्नी एवं बच्चों पर ही परिवार का पूरा दायित्व आ जाता है। ऐसी स्थिति में सभी पारिवारिक सम्बन्धों को बनाये रखने पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते हैं। कई बार तो माँ की व्यस्तता व शोकाकुलता के कारण बच्चे गलत राह पर भी अग्रसर हो जाते हैं। परन्तु जीवन बीमा से बीमा राशि समय पर उपलब्ध होने से परिवार का पूर्व नियोजित तरीके से विकास में योगदान मिलता है।


5. सामाजिक सन्तोष बीमा से समाज के सभी वर्गों को लाभ पहुSI चता है अत: समाज में सामाजिक सन्तोष की भावना पनपती है व सामाजिक सन्तुष्टि रहती हैं।


6. सामाजिक प्रतिष्ठा का द्योतक बीमा आज के युग में सामाजिक प्रतिष्ठा का द्योतक भी माना जाता है। जो


व्यक्ति अपने जीवन व सम्पतियों का जितना अधिक व उपयुक्त बीमा करवाता है वह उतना ही प्रतिष्ठित माना जाता


है। समाज शिक्षित व उन्नत होता है। 7. सामाजिक बुराइयों की रोकथाम - बीमा के द्वारा व्यक्तियों के जीवन में आर्थिक निश्चितता आती है, जिससे व्यक्ति की मृत्यु पर भी आश्रित बेसहारा नहीं होते हैं। इसी प्रकार अन्य क्षतिपूरक बीमों से भी व्यक्ति की सम्पतियां सुरक्षित हो जाती है। अत: जोखिम उत्पन्न होने पर उसकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति खराब नही होती है तथा सामाजिक बुराइयां जन्म भी नहीं ले ती है।


8. शिक्षा को प्रोत्साहन बीमा के द्वारा शिक्षा को भी प्रोत्साहित किया जाता है। शिक्षा बीमापत्र क्रय करके माता-पिता बच्चों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था कर सकते हैं। 9. सतर्कता को प्रोत्साहन बीमा समाज में लोगों को सतर्कता हेतु भी प्रोत्साहित करता है। बीमा कम्पनियां उन सम्पत्तियों के बीमा प्रीमियम राशि में छूट देती है जो सतर्कता उपायों को अपनाती है व सामान्य औसत से कम दावा राशि प्रस्तुत करती है। बीमा कम्पनी स्वयं भी समय-समय पर सतर्कता उपायों से अवगत कराती रहती हैं।


10. सभ्यता और संस्कृति का विकास कोई भी समाज कितना सभ्य, सुसंस्कृत और विकसित है इसकी कसौटी वहाँ की बीमा प्रणाली है। जिस देश में बीमा का विकास नहीं उसे पिछड़ा ही माना जाता है।

सामाजिक परिसम्पत्तियों की सुरक्षा के साथ बीमा समाज की मानवीय व मौलिक सम्पत्तियों की सुरक्षा करता हैं। बीमा अनुबन्ध में वर्णित शर्तों के अनुसार इन संसाधनों की सुरक्षा की व्यवस्था बीमित को करनी होती है। इसके अतिरिक्त बीमा कम्पनियां बीमित विषय-वस्तु की सुरक्षा के बारे में जनशिक्षण भी दे ती है। परिणाम स्वरूप बीमा के द्वारा सामाजिक परिसम्पत्तियों की सुरक्षा होती है।


11. रोजगार अवसरों का विकास- बीमा से समाज में रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है। बीमा कम्पनियों में कई हजार कर्मचारी विभिन्न पदों पर व कई बीमा एजे ण्ट भी कार्यरत है।

एक अनुमान के अनुसार सामान्य बीमा निगम व उसकी सहायक कम्पनियों में लगभग 85000 तथा जीवन बीमा निगम में लगभग सवा लाख कर्मचारी कार्य रत है। इतना ही नहीं, जीवन बीमा निगम के ही पाँच लाख से अधिक एजे ण्ट भी कार्यरत है।


12. सामाजिक उत्थान कार्यों में योगदान देश का विकास सामाजिक उत्थान के बिना अधूरा ही है। सामाजिक उत्थान हेतु गरीबी एवं आर्थिक असमानता का निवारण करना होता है। बीमा कम्पनी सामाजिक क्षेत्र में असंगठित लोगों जैसे श्रमिक, खाती, मोची, लौहार आदि, आर्थिक रूप से गरीब पिछड़े लोगों,

अनौपचारिक क्षेत्र के लोगों जैसे स्वयं नियोजित व्यक्ति फुटकर व्यापारी नल- बिजली का कार्य करने वाले व्यक्ति आदि का बीमा करती है। बीमा कम्पनी इन व्यक्तियों का बीमा स्वयं की ओर से व केन्द्रीय व राज्य सरकार के सहयोग से भी करती हैं जैसे - जनश्री बीमा योजना। "बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण ने भी सभी बीमाकर्ताओं के लिए सामाजिक क्षेत्र के पिछड़े लोगों का बीमा करना अनिवार्य कर दिया है। प्राधिकरण के नियमानुसार प्रत्येक नये बीमाकर्ता के लिए प्रथम वर्ष ऐसे 5000 जीवन व पाँच वर्षों में यह संख्या 20,000 तक पहुS 1 च नी होती है।


13. नागरिक दायित्वों से सुरक्षा कई औद्योगिक संस्थाओं में कई खतरनाक रसायनों व गैसों का उपयोग करना होता है,

खतरनाक अपशिष्ट भी निकलते है, औद्योगिक निर्माण प्रक्रिया भी आसपड़ौस के लोगों के लिए खतरनाक हो सकती है। ऐसी संस्थाएँ अपना नागरिक दायित्व बीमा करवा लेती है और जोखिम के प्रभावों से बच जाती है।


14. जीवनस्तर में सुधार - बीमा लोगों को बचत करने व जोखिमों को बीमा कम्पनी को अन्तरित करने का अवसर देती है। इससे लोगों की आर्थिक स्थिति सन्तुलित होती है व जीवन स्तर के सुधार हेतु अतिरिक्त साधनों का उपयोग किया जा सकता है।


15. परोपकारी कार्यों को प्रोत्साहन - व्यक्ति अपनी वृद्धावस्था में अथवा मृत्यु के पश्चात् किसी संस्था को दान दे ना चाहते हैं

परन्तु जीवित रहते हुए स्वयं की आर्थि क सुरक्षा भी चाहते है ऐसे में वे बीमापत्र क्रय कर के उसका नामांकन उस संस्था के नाम कर दे ते हैं जिसको दान दिया जाना है। बीमित की मृत्यु पर नामांकित को उस बीमापत्र का भुगतान हो जाता है।


16. स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बीमा कम्पनियां बीमा करते समय भी कई प्रकार की जांच करवाती है जिससे कई बीमारियों की जानकारी हो जाती है। अच्छे स्वास्थ्य को बनाये रखने हेतु शिक्षाप्रद सामग्री का भी वितरण करती है। इन सभी उपायों से लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता उत्पन्न होती है। राष्ट्रीय दृष्टि से उपादेयता


बीमा से केवल व्यक्ति को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र को लाभ होता है। जिसका विवरण इस प्रकार है

1. राष्ट्रीय बचत में वृद्धि - बीमा करवाने हेतु प्रत्येक व्यक्ति बचत करता है। ये छोटी-छोटी बचतें कुल राष्ट्रीय बचत में वृद्धि करती है।


2. मुद्रा बाजार के विकास में योगदान बीमा प्रीमियमों की बड़ी राशि से देश के मुद्रा बाजार के विकास में भी योगदान मिलता है। फलत: अल्पकालीन व दीर्घकालीन प्रतिभूतियों का ले नदे न आसान हो जाता है। सरकारी बैंक तथा कम्पनियां, सभी अपनी आवश्यकतानुसार मुद्रा तत्काल प्राप्त व विनियोग भी कर सकती है। 


3. प्राकृतिक जोखिमों से सुरक्षा बीमा सुविधा से ही अर्थव्यवस्था के सभी घटकों को विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक जोखिमों से सुरक्षा उपलब्ध हो रही हैं। बीमा कम्पनियां अग्नि,

अतिवृष्टि, समुद्री मार्ग की जोखिमों, तटीय क्षेत्रों की जोखिमों आदि का बीमा करती है और उन लोगों को राष्ट्रीय सुरक्षा प्रदान करती है और राष्ट्र के आर्थिक विकास की गति को आगे बढ़ाने में योगदान दे ती है।


4. मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण - बीमा प्रीमियम के रूप में एकत्रित धन बाजार में मुद्रा प्रसार को रोकता है, बाद में इसी धन का उद्योगों के विकास में उपयोग किया जाता है। भारत में कुल प्रचलित मुद्रा का लगभग 5 प्रतिशत भाग बीमा प्रीमियम के रूप में एकत्रित होता है।


5. विनियोग को प्रोत्साहन बीमा के द्वारा व्यक्ति छोटी-छोटी बचतें एकत्रित कर के विभिन्न प्रकार के बीमापत्रों को खरीदता है उस प्रीमियम राशि का निश्चित प्रतिशत भाग उद्योगों में विनियोजित किया जाता है।


6. विदेशी मुद्रा कोष में योगदान - बीमा संस्थाओं द्वारा विदेश में भी बीमा व्यवसाय किया जाता है। विदेशों में बीमा व्यवसाय से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।



7. स्कन्ध विनियम केन्द्रों का विकास- बीमा कम्पनी अपने संचय कोषों का एक भाग स्कन्ध विनिमय केन्द्रों मैं भी विनियोग करती है व निरन्तर सक्रियता से अंश विनिमय व्यवसाय में हिस्सा ले ती है अतः स्कन्ध विनियम केन्द्रों का भी विकास होता है।


8. वृहत पैमाने के उद्योगों को पूंजी की उपलब्धता बीमा कम्पनियां अपने संचय कोषों से उद्योगों के अंश व ऋणपत्रों को क्रय करती है जिससे इन उद्योगों को भारी मात्रा में दीर्घकालीन व अल्पकालीन दोनों ही प्रकार की अंशपूंजी प्राप्त होती है।


9. सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश द्वारा आर्थिक परियोजनाओं में योगदान बीमा संस्थाओं ने केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों की प्रतिभूतियों तथा इनके द्वारा गारन्टी युक्त अन्य प्रतिभूतियों में निवेश कर देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन प्रतिभूतियों में निवेशित राशि देश की आर्थिक परियोजनाओं


को पूरा करने में व्यय की जाती है। जिससे देश का आर्थिक विकास होता है।


10. मध्यम व लघु व्यवसायों को प्रोत्साहन ये संस्थाएं सम्पूर्ण व्यवसाय का बीमा करवा कर व्यवसाय के कुशल संचालन पर पूर्ण ध्यान दे सकती है।

बैंक व वित्तीय संस्थाएं भी बीमा के आधार पर ऋण उपलब्ध करवाती है। ये लघु व मध्यम व्यवसायी देशी व विदेशी व्यापार को योगदान के साथ ही कुल राष्ट्रीय उत्पादन व आय में वृद्धि भी करते हैं।


11. देश में रोजगार को बढ़ावा बीमा कम्पनी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से देश में रोजगार को बढ़ावा देती है। वह स्वयं कई व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करती है व इनके द्वारा बीमित संस्थाएं भी रोजगार का सृजन कर कुल राष्ट्रीय आय में वृद्धि कर रही है। 12. राष्ट्रीय महत्व के जोखिम युक्त कार्यों को प्रोत्साहन - बीमा ने ऐसे कई कार्यों को करने के लिए प्रोत्साहन


दिया है जिनमें बहुत अधिक जोखिम विद्यमान होती है। उदाहरण विश्वस्तरीय खेलकू द प्रतियोगिताओं,


आधुनिक सैनिक उपकरणों का परीक्षण, अन्तरिक्ष यान एवं प्रयोगशालाएं आदि जोखिमयुक्त कार्यों में बीमा


सहयोग कर रहा है।


13. राष्ट्रीय आय व उत्पादन में भी निरन्तरता राष्ट्रीय आय की निरन्तरता को बनाये रखने में भी बीमा का योगदान है। अनेक प्राकृतिक व मनुष्यकृत कारणों से प्रतिवर्ष कई उद्योगों व्यवसाय, जहाज आदि नष्ट होते हे जिनसे सरकार को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों की प्राप्ति होती है,

लाखों लोगों को रोजगार व करोडों रूपये के माल व से वाओं का उत्पादन होता है. यदि इनका बीमा न हो तो इनमें से अधिकांश इकाईयां पुनःस्थापित नहीं हो सकेगी व बेरोजगारी फैल जायेगी। परन्तु बीमा के कारण ये उद्योग पुन: स्थापित हो जाते है व राष्ट्रीय आय व उत्पादन में निरन्तरता बनी रहती है।


14. सम्पूर्ण राष्ट्रीय विकास में योगदान उद्योगों के विकास, रोजगार अवसरों के विकास, अधिक बचत व पूंजी निर्माण आदि सभी घट क सम्पूर्ण राष्ट्रीय विकास में योगदान करते हैं। बीमा के उपरोक्त लाभों व महत्व को दे खकर हम कह सकते हैं कि- बीमा में दया समान गुण होते हैं। इसमें बीमाकर्ता व बीमित दोनों सौभाग्यशाली होते हैं तथा बीमा जन्म से ले कर मृत्यु तक सहायक सिद्ध होता है। "