प्रबन्ध के विस्तार की आवश्यकता - Need for expansion of management

प्रबन्ध के विस्तार की आवश्यकता - Need for expansion of management


प्रबन्ध के विस्तार का विस्तृत अध्ययन करने से पहले यह जानने की जरुरत है कि ऐसे कौन से तत्व हैं जिनके कारण प्रबन्धकों की निरीक्षण करने की सीमा होती है। प्रबन्ध की निरीक्षण क्षमता के सीमित हाने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:


0 सीमित शक्ति: प्रत्येक प्रबन्धक की मानसिक एवं शारीरिक शक्ति सीमित होती है जिसके कारण वह एक सीमा से अधिक अधीनस्थों का निरीक्षण ठीक प्रकार से नहीं कर सकता।


(ii) सीमित समयः एक प्रबन्धक को एक नहीं बल्कि अनेक काम करने होते हैं जिसके कारण उसका समय बंट जाता है।

यदि इतने समय में उसे अधिक अधीनस्थों की देख-रेख भी करनी पड़ जाए तो कोई भी काम ठीक प्रकार से नहीं हो सकेगा।


(iii) सीमित ध्यान शक्तिः एक प्रबन्धक एक समय में केवल कुछ ही समस्याओं की ओर ध्यान केन्द्रित कर सकता है। अधीनस्थों की संख्या अनावश्यक रूप से बढ़ जाने के कारण वह उनकी सभी समस्याओं को नहीं सुलझा सकता।



एक उपयुक्त प्रबन्ध का विस्तार क्या है?


यह स्पष्ट कर लेने के बाद कि प्रबन्धक निश्चित सीमा में ही अधीनस्थों का निरीक्षण कर सकता है,

अब प्रश्न उठता है कि यह निश्चित सीमा क्या है? अर्थात एक प्रबन्धक कितने अधीनस्थों का निरीक्षण प्रभावपूर्ण ढंग से कर सकता है। इस संबंध में विभिन्न प्रबन्ध विशेषज्ञों में गहरा मतभेद है। विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रस्तुत किए गए विचारों को दो भागों में बांटा जा सकता है:


(i) परंपरावादी विचारधारा इस विचारधारा के मुख्य समर्थक सर हेमिलटन, उर्विक, अर्नस्ट डेल, जे.एच. हैली तथा वी.ए. ग्रेकुनाज हैं। सर हेमिल्टन के अनुसार, अधीनस्थों की आदर्श संख्या 3 से 6 तक होती है। उर्विक ने उच्च स्तर पर अधीनस्थों की संख्या 4 तथा निम्न स्तर पर 8 से 12 बताया है। अर्नेस्ट डेल ने उच्च स्तर पर प्रबन्ध के विस्तार को 8 से 9 तक बताया है।

जे.एच. हैली ने कहा है कि उच्च स्तर पर अधिनस्थों की संख्या 5 से अधिक नहीं होनी चाहिए और निम्न स्तर पर यह संख्या 7 या 8 होनी चाहिए। वी.ए. ग्रेकुनाज जोकि फ्रांसीसी प्रबन्ध विशेषज्ञ हैं, ने प्रबन्ध के विस्तार को स्पष्ट करने के लिए एक गणितीय सूत्र का आविष्कार किया है। जिसका वर्णन निम्न है:


प्रबन्ध के विस्तार के बारे में ग्रेकुनाज का विचारः इनके अनुसार, "अधीनस्थों की संख्या जैसे-जैसे अंकगणितिय रुप से बढ़ती है, वरिष्ठ एवं अधीनस्थों के मध्य संबंधो


की संख्या में लगभग रेखा गणितीय अनुपात में वृद्धि होती है।"

ग्रेकुनाज के अनुसार, प्रबन्धक एवं अधीनस्थों के मध्य तीन प्रकार के संबंध उत्पन्न


होते हैं:


(1)


प्रत्यक्ष संबंध


समूह संबंध


प्रति संबंध


ग्रेकुनाज ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि इन संबंधो की संख्या को ध्यान में रखकर ही प्रबन्ध के विस्तार को निश्चित करना चाहिए। ग्रेकुनाज की इस विचारधारा को निम्न उदाहरण से समझा जा सकता है:


ग्रेकुनाज के मतानुसार, एक प्रबन्धक 222 संबंधों अर्थात 6 अधीनस्थों का निरीक्षण प्रभावपूर्णा ढंग से कर सकता है। उन्होंने कहा कि उच्च स्तर पर 5 से 6 और निम्न स्तर पर 20 अधीनस्थों की एक आदर्श संख्या है।


(ख) आधुनिक विचारधारा: आधुनिक प्रबन्ध विशेषज्ञ परंपरावादी विचारधारा से सहमत नहीं है। ग्रेकुनाज के विचार का विरोध करते हुए कहा गया है कि इसके द्वारा किए गए सभी संबंध प्रतिदिन उत्पन्न नहीं होते और कुछ तो ऐसे हैं जो कभी भी उत्पन्न नहीं होते। इस प्रकार संबंधो की संख्या को अनावश्यक रुप से बढ़ाया गया है। आधुनिक विचारधारा के अनुसार प्रबन्धक की क्षमता निश्चित न होकर उसकी अपनी क्षमता पर निर्भर करती है। हो सकता है कि एक प्रबन्धक किसी विशेष परिस्थिति में अधिक लोगों का कुशलतापूर्वक निरीक्षण कर ले, जबकि दूसरा प्रबन्धक वैसी ही परिस्थितियों में कम लोगों का कुशलतापूर्वक निरीक्षण न कर सके। निष्कर्ष के रुप में कहा जा सकता है कि प्रबन्धक के व्यक्तिगत गुण व अनेक अन्य तत्व प्रबन्ध के विस्तार का निर्धारण करते हैं। प्रबन्ध के विस्तार का निर्धारण करने वाले तत्वों का वर्णन निम्नलिखित है।