इतिहास में स्त्री की दृश्यता और अदृश्यता पर बहस का प्रारंभ - Beginning of the debate on the visibility and invisibility of women in history

इतिहास में स्त्री की दृश्यता और अदृश्यता पर बहस का प्रारंभ - Beginning of the debate on the visibility and invisibility of women in history


इतिहास में स्त्रियों की उपस्थिति और अनुपस्थिति को लेकर स्त्रीवादी नजरिए से एक गंभीर बहस की शुरुआत भारत में 70 के दशक से प्रारंभ होती है। “समानता की ओर" रिपोर्ट के 1974 में आ जाने के बाद अकादमिक एवं आंदोलन दोनों ही स्थानों पर महिलाओं की दुःखद एवं सोचनीय स्थिति पर गंभीर चर्चाएँ होने लगीं।


यू.एन. की ओर से 1975-85 को “अंतरराष्ट्रीय महिला दशक घोषित कर देने के साथ ही महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने और उनकी समस्याओं के समाधान तलाशने के लिए अलग अलग शोधकर्ताओं ने महिला विषयक मुद्दों पर अध्ययन को प्राथमिकता दी। इसी क्रम में स्त्रीवादी इतिहासकारों ने इतिहास में महिलाओं की स्थिति को सामने लाने का प्रयास प्रारंभ किया, ताकि महिलाओं की पराधीनता और शोषण के कारणों की पड़ताल इतिहास की जड़ों में जाकर की जाए। यह जाना जाए कि जिस देश में महिलाओं को देवी मानकर पूजने की प्रथा की दुहाई हर कदम पर दी जाती है, उस देश में महिलाएँ इस रिपोर्ट में दर्ज हालातों तक कैसे पहुँच गई?