प्राचीन काल में महिलाओं के समक्ष चुनौतियाँ - Challenges before women in ancient times

प्राचीन काल में महिलाओं के समक्ष चुनौतियाँ - Challenges before women in ancient times


हम देख सकते हैं कि प्राचीन काल में महिलाओं की स्वर्णिम स्थिति एक भ्रम से अधिक कुछ नहीं थी। अगर यह स्वर्णिम थी, भी तो समाज की किसी एक श्रेणी के लिए ही ज्यादातर महिलाएँ हाशिए पर ही थीं। उनके सामने शिक्षा की अनुपलब्धता, संपत्ति के अधिकार का अभाव, स्त्री धन में अचल संपत्ति का न होना, निजी एवं सार्वजनिक जीवन में हिंसा की बहुतायता, युद्ध में सबसे ज्यादा लूटपाट का शिकार होना, उन्हें वस्तु के सामान लिया और दिया जाना जैसी तमाम चुनौतियाँ थीं, जिनसे वे बहुत चाहकर भी निपट नहीं पा रहीं थीं। संपत्ति के संदर्भ में मंगल कनि (हल्दी के खेत) जैसी कुछ सीमित सुविधाएँ थीं, जो दक्षिण भारत के कुछ इलाकों में थीं,

बाकी स्त्रियाँ जमीन के अधिकार के बगैर ही थीं। संपत्ति में उनकी सीमित भागीदारी थी, जिसके कारण सती जैसी प्रथाओं को भी मजबूती मिली। घर परिवार के प्रमुख संस्कारों में भी उनकी दोयम दर्जे की ही स्थिति थी। लोगों की कामना पुत्र पैदा करने की ही होती थी, ताकि उसके हाथों अंतिम संस्कार कराके उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सके महिलाओं के पास ये विशेषाधिकार नहीं थे। यह तो उच्च वर्गीय उच्च जातीय स्त्रियों की स्थिति रही, निम्न जातीय स्त्रियाँ भी इन सारी चीज़ों से महरूम थीं। उनकी श्रम में बड़ी सहभागिता होती थी, पर उस श्रम की उपज पर उनका अधिकार नहीं हो पाता था। उन पर उच्च जातीय स्त्रियों की हिंसा भी होती थी। वे दोहरे शोषण का शिकार थी।

बौद्ध काल में कुछ उदाहरण मिलते हैं, जो उनके ज्ञान और अनुभव को सम्मान प्रदान करते हैं।


इस प्रकार संपत्ति, शिक्षा और सांस्कृतिक महत्ता के अभाव में महिलाएँ पुरुषों पर पूरी तरह निर्भर थीं। इसलिए वे हिंसा की भी ज्यादा शिकार थीं क्योंकि उनके पास खुद को सुरक्षित रख पाने या सम्मानजनित जीवन जीने के दूसरे विकल्पों का अभाव था। वे समुदाय का सामान थीं, अतः सबसे ज्यादा नियंत्रण और हिंसा उन्हीं पर की जाती थी।


प्राचीन काल में स्त्रियाँ


मध्यकाल एक ऐसा काल रहा, जिसमें हिंदू संस्कृति के साथ एक नयी मुग़ल संस्कृति जुडी | रजिया सुलतान, नूरजहाँ, मुमताज महल जैसे कुछ इने गिने नाम मध्यकालीन इतिहास में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं,

वो भी बहुत सीमित दायरे में। इन महिलाओं पर भी विस्तृत जानकारी या शोध का अभाव था । मध्यकाल को समझने के लिए स्त्रीवादी इतिहासकारों ने जहाँ मुगल महिलाओं के जीवन के आधार पर समझाने की शुरुआत की, वहीं भक्ति आंदोलन के माध्यम से भी पितृसत्ता के समक्ष स्त्रियों द्वारा खड़ी की गई चुनौतियों के अध्ययन के क्षेत्र में आगे बढ़े। मध्यकाल इसलिए ख़ास है, क्योंकि इस दौर में वर्चस्वशाली और शोषणकारी शक्तियों के खिलाफ साधारण जनता के विद्रोह के बड़े प्रमाण मिलते हैं। ये विद्रोह सामंतवादी मूल्यों, जाति प्रथा, और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के विरुद्ध किए गए। भक्ति आंदोलन ने इसमें अपनी अग्रणी भूमिका निभाई। इस दौर में महिलाओं की आवाज के सशक्त स्वर हमें सुनने को मिलते हैं। उन स्वरों की कुछ सीमाएँ भी रहीं हैं, लेकिन इस युग को सिर्फ महिलाओं के शोषण का काल ही नहीं बल्कि उसके प्रतिकार के प्रारंभ का काल भी माना जाना चाहिए।