इतिहास में महिलाओं की उपस्थिति की खोज एवं चुनौतियाँ - Discovery and Challenges of Women's Presence in History
इतिहास में महिलाओं की उपस्थिति की खोज एवं चुनौतियाँ - Discovery and Challenges of Women's Presence in History
महिलाओं के इतिहास लेखन में बड़ी भूमिका 70 के दशक के महिला आंदोलनों की रही है। सामाजिक ढाँचे में गहरे तक बसी पितृसत्ता ने किस प्रकार से समाज से ज्ञान की पूरी परंपरा को प्रभावित करके रखा है, को सामने लाने का प्रयास स्त्री अध्ययन एवं स्त्री आंदोलन दोनों के द्वारा किया गया। इतिहास की निर्मिति में व्याप्त पितृसत्ता के प्रभाव को सामने लाने के लिए जेंडर विश्लेषण को एक औजार के रूप में प्रयुक्त किया गया। इतिहास के हर दौर को जेंडर के लेंस के माध्यम से दुबारा जाँचा जाने लगा। इसके लिए नयी पद्धतियों और स्रोतों की आवश्यकता हुई क्योंकि पुरानी पद्धतियाँ और स्रोत उसी पितृसत्तात्मक ढाँचे की ही उपज थे।
पुराने स्रोत और पद्धतियाँ उनके लिए बड़ी चुनौती थे। पुराने ऐतिहासिक लेख, संस्कृत ग्रंथों को दुबारा से पढ़ा गया। जैसा कि हम इस बात पर चर्चा कर चुके हैं कि उनमें महिलाओं की उपस्थिति बहुत सीमित क्षेत्र में और एक वर्ग विशेष तक ही रही है। अतः उनमें अदृश्य महिलाओं को ढूंढने की कोशिश की गई। जिन स्थानों पर महिलाएँ खामोश हैं, उन स्थानों की खामोशी का विश्लेषण किया गया। संस्कृत पाठ के अतिरिक्त अन्य भाषाओं की रचनाओं को भी देखा गया। महिलाओं की लिखी डायरियों, पत्र, कवितायें, अन्य रचनाओं का भी खास कालखंड में महिलाओं के दृष्टिकोण को समझने के लिए उपयोग किया गया। लोक गीतों, कथाओं, कहावतों, लंबी बातचीत,
साक्षात्कारों जैसे मौखिक इतिहास के भी स्रोत प्रयोग में लाये गए। महिलाओं द्वारा की गई कलात्मक अभिव्यक्तियों को भी इस हेतु शामिल किया गया। महिलाओं की रचनाओं को एकत्र किया गया और लेख के माध्यम से भी इतिहास के दौर को समझने का प्रयास किया गया। सूजी थारू के दो वॉल्यूम “Women writing in India" "इस संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण कार्य है। ऐसे ही कई और महत्वपूर्ण कार्य स्त्रीवादी इतिहासकारों ने किए हैं, जिनके माध्यम से हम विभिन्न दौरों में महिलाओं के इतिहास को समझने का प्रयास करेंगे।
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