“हर स्टोरी" के निर्माण की आवश्यकता - The need to build "Every Story"

“हर स्टोरी" के निर्माण की आवश्यकता - The need to build "Every Story"


जैसा कि हम ऊपर अध्ययन कर चुके हैं कि औपनिवेशिक इतिहास में महिलाएँ लगभग अदृश्य रहीं हैं। उन्हें सीमित दायरों में ही प्रस्तुत किया गया है। उसके बाद लिखे गए राष्ट्रीय इतिहास में आजादी के आंदोलन और उसके जांबाज़ सिपाहियों नेताओं की कथाएँ राजनैतिक संस्थाओं की निर्मिति और सांस्कृतिक मंच संस्थाओं के निर्माण, समाज सुधार आंदोलन जैसे सामाजिक राजनैतिक मुद्दों की ही अधिकता रही। इस प्रकार सामाजिक इतिहास का निर्माण हुआ। लेकिन यहाँ भी महिलाओं की राष्ट्रीय आंदोलनों में सहभागिता, विभिन्न राजनैतिक, सांस्कृतिक संस्थाओं में उनकी उपस्थिति योगदानों को शामिल नहीं किया गया।

विभाजन का इतिहास लिखा गया लेकिन उसमें महिलाओं के ऊपर इसके पड़े प्रभावों और हिंसा के बारे में बहुत छुटपुट जानकारी ही शामिल की गई। मार्क्सवादी इतिहास लेखन के माध्यम से सामाजिक निर्माण के इतिहास लेखन का प्रारंभ हुआ। इसमें डी.डी. कोसांबी अग्रणी इतिहासकार रहे। इतिहास को वर्गीय दृष्टि से देखने की शुरुआत की गई। खासतौर पर उन्होंने भारत की पुरानी प्रसिद्ध महागाथाओं में वर्णित राजनैतिक, सामाजिक, संस्थाओं का उस समय के उत्पादन के संसाधनों से क्या संबंधबनता है और वह किस प्रकार के समाज और जेंडर संबंधों का निर्माण करता है को इतिहास के केंद्र में रखा। उर्वशी पुरुरवा इस संदर्भ में उनका महत्वपूर्ण आलेख है।

(D.D. Kosambi, 1999)। इसके बाद का इतिहास लेखन जो कि सामंतवाद और उसके प्रभाव उत्पादन के संबंधों आदि को ध्यान में रखकर लिखा जा रहा था, में भी महिलाओं का उत्पादन में स्थान या सामाजिक पुनरुत्पादन में महिलाओं की भूमिका को शामिल नहीं किया गया। बाद में आए निम्नवर्गीय इतिहास ( Subaltern studies) में आदिवासी, किसान, गरीबों के जीवन, उनके अनुभव, उनके छोटे बड़े प्रयासों को शामिल करके इतिहास को उच्चवर्गीय ढाँचे से निकालने के प्रयास किए। पर यह भी मार्क्सवादी इतिहास की तरह ही वर्ग और जेंडर के संबंधों को सामने नहीं रख पाया (Chakravarty, Reinscribing the past inserting women into Indian history ) । इसमें भी महिलाओं के इतिहास का अभाव मिला रणजीत गुहा के आलेख "चंद्रा की मौत" या पार्थ चटर्जी के आलेख राष्ट्र और उसकी महिलाएँ” को शामिल किया गया (देखें निम्नवर्गीय प्रसंग भाग 1),

बहुत महत्वपूर्ण आलेख होने के बाद भी यह स्त्रियों के इतिहास लेखन की ओर सीमित प्रयास ही प्रदर्शित करते दिखाई देते।


माना गया कि जो इतिहास पुरुषों का है, वही महिलाओं का भी है। उत्पादन के संबंधों को समझने की कोशिश तो की गई, लेकिन पुनरुत्पादन के इतिहास पर बात नहीं हुई। उसके जाति या जेंडर से क्या संबंधबनते हैं, वह चर्चा का मुद्दा नहीं बन पाया हाशिए के तबके की बात तो की गई, लेकिन उस हाशिए का भी कोई हाशिया हो सकता है, जो अभी भी अंधेरे में है, वह चर्चा का हिस्सा नहीं बना। इस कमी की पूर्ति स्त्रीवादी इतिहासकारों ने की हर स्टोरी का निर्माण करके कहा कि History सिर्फ His • Story है। अतः Her Story के निर्माण की आवश्यकता है।