रामायण, महाभारत की महिलाएँ - Women of Ramayana, Mahabharata

रामायण, महाभारत की महिलाएँ - Women of Ramayana, Mahabharata


रामायण और महाभारत प्राचीन भारत के दो बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ रहे हैं। इनमें वर्णित पात्रों और घटनाओं की धार्मिक महत्ता बहुत ज्यादा है। इन ग्रंथों के माध्यम से हम उस समय की सामाजिक व्यवस्था और महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया जान सकते हैं। रामायण के प्रमुख स्त्री पात्रों में सीता, मंथरा, कैकेयी, कौशल्या, उर्मिला, सूर्पनखा, मंदोदरी, ताड़का आदि महिलाएँ अपने जीवन में किसी न किसी रूप में पुरुषों की हिंसा का सामना करती हैं। यही हाल महाभारत की महिलाओं का भी है। अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका, कुंती, गांधारी द्रौपदी के अतिरिक्त अन्य कथाओं में आई शकुंतला,

माधवी, दमयंती आदि भी निजी और सार्वजनिक हिंसा से बच नहीं सकी हैं। इन दोनों ही कथाओं में हमारा सामना पितृसत्ता, जातीय एवं वर्गीय प्रभावों से होता है, जो हमें बताता है कि वर्ग और जाति का पितृसत्ता के साथ गठजोड़ कैसे होता है। ये महिलाएं लगातार किसी न किसी स्तर पर सत्ता व्यवस्था से संघर्ष करते रहीं, उससे टकराती रहीं। महिलाओं के साथ छेड़छाड़, उनका अपहरण, सती होना, घरेलू हिंसा, महिलाओं का वस्तुकरण, पति द्वारा त्याग, जबरन नियोग, यौन हिंसा, समाज में दोयम दर्जे का स्थान ऐसे बहुत सारी घटनाओं के प्रमाण हमें इन महिलाओं के जीवन में मिलते हैं।

इन घटनाओं को देखते हुए यह कहना बहुत मुश्किल है कि इस दौर की महिलाओं की स्थिति बड़ी बेहतर होगी। जिस समाज में महिलाओं पर इतने अलग अलग प्रकार की हिंसा हो, उसे महिलाओं की दृष्टि से बेहतर कहना उचित नहीं होगा। नवनीता देवसेन की "सीता से शुरू", Satyavati : The Matriarch, Amba, भीष्म साहनी की माधवी, रोमिला थापर की पुस्तक शकुंतला आदि में इन चरित्रों को उनके सामाजिक, आर्थिक परिवेश से जोड़कर उनके जीवन में आयी शोषण और अधीनता की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।