महात्मा गांधी के अनुयायी भवानी दयाल संन्यसी दक्षिण अफ्रीका में - Bhavani Dayal Sanyasi, a follower of Mahatma Gandhi, in South Africa

महात्मा गांधी के अनुयायी भवानी दयाल संन्यसी दक्षिण अफ्रीका में - Bhavani Dayal Sanyasi, a follower of Mahatma Gandhi, in South Africa


वी.डी संन्यासी, ट्रांसवाल इंडियन एसोसिएशन के भूतपूर्व अध्यक्ष जरियाम सिंह के पुत्र थे।


भवानी दयाल की प्रारंभिक शिक्षा जोहान्सबर्ग के संत साई पिरियन स्कूल और वेसलेमान मेथोडिस्ट स्कूल में हुई। 1904 ई. में वे आगे की शिक्षा के लिए बिहार आ गए, जहाँ शिक्षा के बाद 1910 ई. में इनकी शादी जगरानी देवी के साथ हुई। 1912 ई. में दयाल अपनी पत्नी और एक पुत्र रामदत्त के साथ पुनः दक्षिण अफ्रीका पहुँचे। एक साल के बाद मात्र 21 वर्ष के उम्र में जर्मीस्टन स्थित 'यंग मेन्स इंडिया एसोसिएशन' के अध्यक्ष चुने गए।

1893 ई. में महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीयों के द्वारा न्यूकेसल में हड़ताल का आयोजन किया गया था। हड़ताल के कई संगठनकर्ताओं में भवानी दयाल भी एक थे। यह हड़ताल गांधी जी द्वारा चलाए गए विशाल सत्याग्रह के आंदोलन का एक हिस्सा के रूप में था। इस हड़ताल के दौरान भवानी दयाल, उनकी पत्नी जगरानी देवी और दो वर्षीय पुत्र रामदत्त को भी जेल हुई।


भवानी दयाल हिंदी भाषा में प्रवीण थे। उन्होंने अपने अल्पायु से ही पत्रकारिता का कार्य प्रारंभ किया था।

1914 में दयाल ने 'इंडियन ओपिनियन के हिंदी संस्करण का संपादन किया जो गांधी जी द्वारा दक्षिण अफ्रीका के फीनिक्स आश्रम में प्रारंभ की गई पत्रिका थी। 1917-18 में 'धरम वीर पत्र का संपादन किया। उन्होंने 1916 ई. और 1917 ई. में प्रथम और द्वितीय 'दक्षिण अफ्रीकन हिंदी लिटरेसी कॉन्फेरेन्स' लेडीस्मिथ और पिट्सवर्ग में सफलतापूर्वक आयोजित किया। 1922 में, डरबन में 'जगरानी प्रेस' की स्थापना की, जहाँ से साप्ताहिक पत्रिका हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रकाशित होती थी। भवानी दयाल ने दक्षिण अफ्रीकन इंडियन कॉन्फरेन्स (SAJC) के प्रतिनिधि के तौर पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों में 1919 ई. में अमृतसर और 1922 ई. में गया में भाग लिया।

भवानी दयाल बाद के दिनों में आर्य समाज से जुड़ गए आर्यसमाज के माध्यम से दक्षिण अफ्रीका में बसे गिरमिटिया मजदूरों, छोटे भारतीय व्यापारियों, दुकानदारों को भारतीय संस्कृति, भाषा के माध्यम से आत्मसम्मान के साथ जीने के लिए प्रेरित किया, जिसका प्रभाव दक्षिण अफ्रीका में आज भी देखा जा सकता है भवानी दयाल ने गिरमिटिया मजदूरों को भारत की संस्कृति से जोड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका का हिंदी रूप तथा भारतीयों के लिए लिंगुआ फ्रैंक के रूप में हिंदी को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया दक्षिण अफ्रीका में विकसित इसी हिंदी को बाद में नटाली हिंदी या कलकतिया बात भी कहा गया। भारतीयों के बच्चों को शिक्षित करने के लिए कई विद्यालयों की स्थापना की तथा कई विद्यालयों की स्थापना के लिए प्रेरणा बने ।

मानवता की सेवा के लिए दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने 1927 में भवानी दयाल को संन्यासी नाम से नवाजा |


1929 में दयाल ने भारत में निवास के लिए दक्षिण अफ्रीका को छोड़ा। दयाल ने कई पत्रिकाएँ. पुस्तकें लिखीं, जिनमें प्रमुख हैं: History of Passive Resistance in South Africa, My Experiences of South Africa, Story of my Prison-life, Biography of Mahatma Gandhi, Indian in Transvaal, Natalia Hindi, Vedic Religion and Aryan Culture, Education and Cultivator, The Vedic Prayer. 1932 में डरबन सरकार द्वारा एक सड़क का नाम दयाल सड़क रखकर संन्यासी भवानी दयाल को सम्मानित किया।