इंडेंचर की प्रकृति - nature of indenture
इंडेंचर की प्रकृति - nature of indenture
19वीं शताब्दी के बागान
गिरमिटिया वे लोग कहलाते थे, जो पाँच वर्ष के एग्रीमेंट पर विभिन्न श्रम आपूर्ति प्रणाली में इंडेंचर औपनिवेशिक देशों में मजदूर के रूप में भेजे जाते थे। गिरमिट' एग्रीमेंट का बिगड़ा हुआ प्रचलित रूप है। एग्रीमेंट या इंडेचर एक प्रकार का लिखित विशेष स्थान था। इस व्यवस्था में अनुबंध था, जिसमें प्रवासन यात्रा पर स्वयं कोई खर्च किए बिना निर्धारित 'इंडेचर' शब्द से अभिप्राय किसी शर्तों के अधीन उपनिवेशों में जाकर निश्चित समय तक मजदूरी करने से व्यक्ति द्वारा किसी अन्य दूसरे संबंधित था। सन् 1834 में ब्रिटिश साम्राज्य से गुलामी प्रथा के उन्मूलन के व्यक्ति अथवा संस्था के लिए पश्चात मॉरीशस में गन्ने की खेती हेतु सस्ते,
बहुतायत और मेहनती मजदूरों निर्धारित अवधि तक कार्य करने के की आपूर्ति के लिए 'महान प्रयोग' का प्रारंभ किया गया, जिसे क्रमशः अन्य लिए एक लिखित संविदा को सभी औपनिवेशिक क्षेत्रों में भी अपनाया गया। इस प्रणाली को गुलामी की स्वीकार कर लेने से है। कार्टर के एक नई व्यवस्था के रूप में भी जाना जाता है। गिरमिटिया प्रथा के अंतर्गत भारत से बड़े पैमाने पर समुद्रपारीय प्रवासन हुआ। प्रवासन की यह प्रक्रिया वर्ष 1834 से वर्ष 1920 तक चली।
सिस्टम या शर्तबंदी व्यवस्था का अनुसार 'इंडेंचर श्रमिक वह व्यक्ति था, जिसके द्वारा गंतव्य तक पहुँचने का मार्ग व्यय स्वयं न वहन किया हो,
बल्कि उसने निश्चित अवधि तक पूर्व निर्धारित वेतन पर कार्य करने एवं वापसी की शर्त के साथ अनुबंध कर किसी उपनिवेश तक जाने में यातायात सहायता प्राप्त की हो। बागान जीवन की यह अनिवार्यता थी कि इंडेचर अनुबंध श्रमिकों को रोजगार प्रदान करने की शर्तें नियंत्रित की जाती थी और साथ ही पारिश्रमिक दर, कार्य के घंटे कार्य की प्रवृत्ति, रसद, आवास एवं चिकित्सा सहायता आदि जीवन दशा के सामान्य मानकों को निर्धारित भी करती थी।
यद्यपि इंडेंचर व्यवस्था श्रमिक एवं रोजगार प्रदाता के बीच एक संविदात्मक समझौते पर आधारित थी, फिर भी यह 17-18वीं शताब्दी के संविदात्मक श्रम के प्रचलित तरीकों से अलग प्रकृति की थी।
अनुबंधित श्रमिक से संबंधित मालिक (Masters) एवं कार्मिकों (Servants) के बीच के संबंध विभिन्न उपनिवेशों में लागू विभिन अधिनियमों से शक्ति प्राप्त करती थी। इनमें पारस्परिक अधिकार एवं कर्तव्यों से जुड़े प्रावधान निहित थे। लेकिन वास्तविकता में इनके अंदर श्रमिकों द्वारा संविदा शर्तों को तोड़ने पर आपराधिक दंड देने का प्रावधान भी सम्मिलित कर दिया गया था। उदाहरण के लिए मॉरीशस में 1835 ई. के आर्डिनेंस संख्या 16 को अप्रेंटिस लोगों की 'कामचोरी' से निबटने एवं अनुबंधित श्रमिकों को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया था।
संविदा के उल्लंघन को दंडनीय बनाया गया था इसके तहत किसी कार्मिक द्वारा बिना किसी उचित कारण के
क. कार्य पर उपस्थित होने से इनकार करने या ध्यान न देने।
ख. अनुपस्थित, आदेशों की अवज्ञा, अन्यमनस्कता, कर्तव्यों का उल्लंघन या सेवादाता के प्रति दुर्व्यवहार करने का दोषी पाए जाने।
ग. संविदा समाप्त होने के पूर्व सेवा छोड़ने पर पारिश्रमिक जब्त किए जाने के साथ सश्रम कारावास का प्रावधान था।
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