सर्वोदय का सिद्धांत और महात्मा गांधी का आश्रमी प्रयोग - Principle of Sarvodaya and Ashram experiment of Mahatma Gandhi

सर्वोदय का सिद्धांत और महात्मा गांधी का आश्रमी प्रयोग - Principle of Sarvodaya and Ashram experiment of Mahatma Gandhi


1904 ई. जोहान्सबर्ग से नटाल के लिए जाते समय गांधी जी हेनरी पोलक द्वारा दी गई रस्किन की पुस्तक 'अण्टु दिस लास्ट पढ़ी। गांधी जी को इस पुस्तक ने गहरे रूप से प्रभावित किया और गांधी ने इस पुस्तक का अनुवाद गुजराती में 'सर्वोदय' नाम से किया। गांधी जी के शब्दों में मैं सर्वोदय के सिद्धांतों को इस प्रकार समझता हूँ:


1. सबकी भलाई में हमारी भलाई निहित है।


2. वकील और नाई दोनों के काम की कीमत एक सी होनी चाहिए, क्योंकि आजीविका का अधिकार सबको एक समान है।


3. सादा मेहनत मजदूरी का किसान का जीवन ही सच्चा जीवन है। पहली चीज मैं जानता था। दूसरी को मैं धुंधले रूप में देखता था। तीसरी का मैंने कभी विचार ही नहीं किया था। 'सर्वोदय' ने मुझे दिये की तरह दिखा दिया कि पहली चीज में दूसरी दोनों चीजें समाई हुई हैं। सवेरा हुआ और मैं इन सिद्धांतों पर अमल करने के प्रयत्न में लग गया। इसी प्रयत्न के फलस्वरूप फीनिक्स फार्म (1904) की स्थापना हुई।


फीनिक्स फार्म से ही 1904 ई. में 'इंडियन ओपीनियन' नामक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया, जो पूर्णत: सहकारिता एवं श्रमदान के नियम पर संचालित होता था। उसी वर्ष गांधी जी ने आहारविज्ञान पर अनेक लेख गुजराती में लिखे, जो हिंदी में 'आरोग्य दर्शन' नामक पुस्तक में संकलित व प्रकाशित हुए। 1906 ई. में गांधी जी ने जुलू विद्रोह के समय 'इंडियन स्ट्रेचर बेअरर कोर' की स्थापना की। उसी जोहान्सबर्ग के लॉ कार्यालय में, एम. के. गांधी (मध्य में), हेनरी पोलक (बाँए, गांधी के सहयोगी), सोजना श्लेसिन (दाँए, गांधी के सहयोगी) व अन्य 3.2.6.3. दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी का सत्याग्रह (निष्क्रिय प्रतिरोध)


जोहान्सबर्ग में ट्रांसवाल एशियाटिक ला अमेन्डमेन्ट ओर्डिनेन्स के विरोध में भारतीयों की विशाल सभा आयोजित कर गांधी जी ने उनसे इस काले कानून के विरुद्ध निष्क्रिय प्रतिरोध करने की शपथ • दिलवाई। इस काले कानून को समाप्त करवाने से संबंधित वार्ता के लिए वे प्रतिनिधि मंडल लेकर इंग्लैंड भी गए और उपनिवेश मंत्री के सामने प्रवासी भारतीयों के साथ किए गए अन्याय का विवरण प्रस्तुत किया। सरकार द्वारा बात नहीं मानने के कारण 1907 ई. में उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोध आंदोलन चलाया और सार्वजनिक सेवा के लिए अपना जीवन अर्पित करते हुए वकालत छोड़ दी। सत्याग्रह आंदोलन के कारण उन्हें 10 जनवरी, 1908 ई. को दो महीने के कारावास की सजा दी गई।

जनरल स्मट्स (सरकार (द्वारा) समझौता वार्ता के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया तथा समझौता होने पर गांधी जी को जेल से मुक्त कर दिया गया, किंतु प्रवासी भारतीय पठानों ने इस समझौते को भारतीय हितों के विरुद्ध विश्वासघात माना और उन्होंने गांधी जी पर प्राणघातक हमला किया। भाग्य से गांधी जी बच गए फिर भी उन्होंने हमलावरों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही नहीं की। जनरल स्मट्स द्वारा समझौते की शर्तों के साथ विश्वासघात करने के कारण गांधी जी ने पुनः सत्याग्रह प्रारंभ किया। उन्हें दो महीने का कठोर कारावास दिया गया। कारावास की अवधि पूरी करने के एक माह के अंदर सत्याग्रह करने पर पुनः गिरफ्तार किया गया। इस बार गांधी जी को तीन माह की सजा दी गई।


1909 में गांधी जी पुनः शिष्टमंडल लेकर इंग्लैंड गए और वहाँ से दक्षिण अफ्रीका लौटते समय हिंसक अराजकतावादियों के शंका समाधान और अपने दृष्टि को स्पष्ट करने के लिए प्रश्नोत्तर के स्वरूप में जहाज में 'हिंद स्वराज' की रचना की। 1910 में उन्होंने जोहान्सबर्ग के निकट सत्याग्रह के दौरान सत्याग्रहियों तथा उनके परिवारों को रखने के लिए टालस्टाय फार्म' की स्थापना की। 'टालस्टाय फार्म के लिए भूमि गांधी के जर्मन मूल के अफ्रीकी मित्र कोलेनवेक द्वारा उपलब्ध करवाई गई थी। नवंबर 1913 ई. में दक्षिण अफ्रीका की संघीय सरकार द्वारा तीन पौंड के पोल-टैक्स को निरस्त न करने के विरोध में सत्याग्रह किया। गांधी जी ने 2023 पुरूषों,

127 स्त्रियों तथा 57 बालकों के जुलूस का नेतृत्व करते हुए ट्रांसवाल में प्रवेश किया। उन्हें गिरफ्तार कर जमानत पर रिहा किया गया। सरकार ने समझौता वार्ता के लिए उन्हें 18 दिसंबर को बिना शर्त रिहा कर दिया। जनरल स्मट्स के साथ हुए समझौते के कारण गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन समाप्त कर दिया। वे इंग्लैंड गए और प्रथम विश्वयुद्ध के समय उन्होंने लंदन में इंडियन एम्बुलेंस कोर को संगठित किया।


9 जनवरी, 1915 ई. को गांधी जी सपरिवार एवं कुछ सत्याग्रहियों के साथ दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। गांधी जी के स्वदेश लौटने की याद में ही भारत सरकार ने 2003 से प्रति वर्ष 9 जनवरी को 'प्रवासी भारतीय दिवस' मनाना प्रारंभ किया है।