ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में हिन्दी - Hindi during the rule of the East India Company
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में हिन्दी - Hindi during the rule of the East India Company
हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के सन्दर्भ में आधुनिक युग का आरम्भ सन् 1850 ई. के आसपास माना जाता है। यद्यपि इससे पहले लगभग एक सौ वर्ष पहले से ही ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में अंग्रेज विदेशियों ने अपनी भाषायी कूटनीति का जाल फैलाना आरम्भ कर दिया था तथापि अनेक वर्षों तक उनका षड्यन्त्र भारतीय जनता समझ नहीं पायी। इसका एक कारण यह भी था कि ब्रिटिश शासन ने भारत में अपने साम्राज्य की जड़ें मजबूत करने के लिए जो शिक्षा नीति और भाषा नीति अपनायी, उसमें हिन्दी को भी प्रमुख स्थान प्राप्त था, क्योंकि उसके बिना वे भारतीय जनता पर शासन नहीं कर सकते थे। ध्यातव्य है कि सन् 1800 ई. में कलकत्ता में जब फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की गई तो उसमें हिन्दी (जिसे वे 'हिन्दुस्तानी' कहते थे) विभाग भी खोला गया। यहीं भारत की बहुप्रचलित कौरवी बोली को खड़ीबोली हिन्दी के रूप में विकसित करने का अवसर मिला। कॉलेज की शिक्षा नीति के अन्तर्गत इस खड़ीबोली में अनेक पुस्तकें लिखवायी गई। धीरे-धीरे हिन्दी का यही रूप देश भर में, शिक्षा और साहित्य, बोलचाल और पत्र-व्यवहार, संवाद-संचार आदि में विकसित और प्रचलित होता गया। सन् 1801 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने यह घोषणा की कि प्रशासनिक सेवा में केवल उसी व्यक्ति को जिम्मेदार पद पर नियुक्त किया जाए जिसे गवर्नर जनरल द्वारा बनाए गए कानूनों को अमल में लाने के लिए 'हिन्दुस्तानी' का भी ज्ञान हो। इसलिए फ्रेडरिक जॉन शोर, मैटकॉफ, फ्रेडरिक पिन्कॉट आदि ने हिन्दी सीखी । स्मरणीय है कि यह सब काम भारत के एक अहिन्दीभाषी क्षेत्र कलकत्ता में हो रहा था। इस प्रकार आधुनिककाल की वास्तविक शुरुआत से पहले ही हिन्दी प्रकारान्तर से राष्ट्रभाषा के रूप में मान्य हो चुकी थी।
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