राजभाषा हिन्दी की सांवैधानिक स्थिति - Constitutional status of official language Hindi
राजभाषा हिन्दी की सांवैधानिक स्थिति - Constitutional status of official language Hindi
राष्ट्रभाषा हिन्दी का विकास स्वतन्त्रता- पूर्व हुआ है तो राजभाषा हिन्दी की समूची अवधारणा स्वतन्त्रता- प्राप्ति के उपरान्त विकसित हुई है। भारतीय संविधान के भाग 5 ( संसद में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा), भाग - 6 (विधान मण्डल में प्रयोग की जाने वाली भाषा) और भाग 17 (संघ की भाषा) में राजभाषा सम्बन्धी प्रावधान - है। उल्लेखनीय है कि भाग 17 का शीर्षक 'राजभाषा' है। - -
संविधान की धारा 120 के अनुसार संसद का कार्य हिन्दी या अंगेजी भाषा में किया जाता है। परन्तु लोकसभा का अध्यक्ष या राज्यसभा का सभापति किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुमति दे सकता है। संसद विधि द्वारा उपबंध न करे तो पन्द्रह वर्ष की अवधि के उपरान्त ' या अंग्रेजी में' शब्दों का लोप किया जा सकेगा। इसी प्रकार का उपबंध संविधान की धारा 210 में राज्य के विधान मण्डलों के सम्बन्ध में है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 में कहा गया है कि संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी और अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा। शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग पन्द्रह वर्ष की अवधि के दौरान किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी के साथ हिन्दी भाषा का प्रयोग अधिकृत कर सकेगा। इसी अनुच्छेद के अन्तर्गत कहा गया है कि संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के बाद विधि द्वारा अंग्रेजी भाषा का या देवनागरी अंकों का प्रयोग किन्हीं प्रयोजनों के लिए उपबंध कर सकेगी। संविधान के अनुच्छेद 344 में राष्ट्रपति को एक आयोग गठित करने का अधिकार दिया गया है। यह आयोग प्रति पाँच वर्ष पर गठित किया जा सकेगा। इसमें यह स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि आयोग अपनी सिफारिशों से पूर्व भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोकसेवाओं के सम्बन्ध में अहिन्दीभाषी क्षेत्रों के न्यायसंगत दावों और हितों का पूरा-पूरा ध्यान रखेगा।
संविधान के अनुच्छेद 345 के अनुसार किसी राज्य का विधान मण्डल, विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली या किसी अन्य भाषाओं को या हिन्दी को शासकीय प्रयोजनों के लिए स्वीकार कर सकेगा। यदि राज्य का विधान मण्डल ऐसा नहीं कर सकेगा तो अंग्रेजी भाषा का प्रयोग यथावत किया जाता रहेगा।
संविधान के अनुच्छेद 346 में विभिन्न राज्यों एवं राज्य-संघ के बीच पत्रादि राजभाषा का प्रावधान मिलता है जबकि अनुच्छेद 347 में राज्य की जनसंख्या के किसी भाग को माँग के आधार पर राजभाषा के सम्बन्ध में विशेष उपबंध किया गया है। संविधान का अनुच्छेद 348 न्यायालयों की भाषा से सम्बन्धित है।
अनुच्छेद 349 में भाषा से सम्बन्धित कुछ विधियाँ अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया का प्रावधान है। अनुच्छेद 350 में आयोगों में प्रयोग की जाने वाली भाषा का प्रावधान है।
संविधान के अनुच्छेद 351 के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार बढ़ाए और उसका विकास करे ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्त्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किये बिना हिन्दुस्तानी के और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्टि भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो, वहाँ उसके शब्द भण्डार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।
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