विचार अभिव्यक्ति और माध्यम की प्रकार्यात्मक भूमिका - Expression of ideas and functional role of media
विचार अभिव्यक्ति और माध्यम की प्रकार्यात्मक भूमिका - Expression of ideas and functional role of media
पूर्व मुद्दे में हमने किसी भाव की उत्पत्ति से उसकी अभिव्यक्ति तक की प्रक्रिया को एक उदाहरण के आधार पर परिचयात्मक रूप में जाना। आपको यह एक सामान्य बात / प्रक्रिया लगी होगी। परन्तु ऐसा है नहीं वास्तव में यह एक तकनीकी / पेचीदा प्रक्रिया है। क्योंकि इसमें शरीर के अंग /गों से लेकर कई अन्य पारम्परिक / वैज्ञानिक-तकनीकी माध्यमों / साधनों जैसे भाषा (पारम्परिक) / दृश्य-श्रव्य आदि के एकल अथवा सामासिक कार्य (Functions) भी जुड़े हुए हैं। आइए, इसे प्रस्तुत मुद्दों के आधार पर ध्यान में रखें ....
(1) भाव / विचारोत्पत्ति और उनकी अभिव्यक्ति प्रक्रिया का सम्बन्ध मस्तिष्क (Brain) से है। मस्तिष्क का एक मुख्यांश है- प्रमस्तिष्क (Cerebrum) जो दो गोलाद्धों (Hemispheres), वामांग-दक्षिणांग (Left-Right) में बॅटा हुआ है। वैसे तो प्राचीन जीव वैज्ञानिकों ने इन दो हिस्सों के अलग-अलग प्रकार्य बताए हैं, मसलन, वामांग भाषा / विचार प्रकार्यों से जुड़ा हुआ है, परन्तु, आधुनिक चिकित्सा शोध इसे नकार देते हैं। क्योंकि ऐसा देखा गया है कि जब वामांग क्षतिग्रस्त हो जाता है तो, दक्षिणांग उसका स्थान लेकर उसके प्रकार्य सम्पन्न करने लगता है, अर्थात् दोनों अंग एक-दूसरे का काम कर सकते हैं; यथा- "Studies of left hemispherectomy in severely brain-damaged patients have shown interesting, often puzzling, recovery of language functioning and linguistic memory which was not evident when the damaged hemisphere was in situ... / This shows / ... each hemisphere is capable of taking over functions of the other ..." - (A student's Dictionary of Psychology, by Peter Stratton & Nicky Hayes Reprint- 1996, Universal Book Stall, NewDelhi-11002 pg. 79) 2.pg. मेडिकल कोश भी बताता है "... the main part of the brain is the cerebrum, formed of two sections or hemispheres, which relate to thought and to sensations from either side of the body" – ( Medical Dictionary; Ed. by P. H. Collin, 1992, Universal Book Stall, New Delhi-11002 pg.
1.) इस विवरण से हमें मस्तिष्क में, भाव / विचारोत्पत्ति और उनकी अभिव्यक्ति / सन्देश / आशय स्थापना प्रक्रिया के अन्तस्सम्बन्धों का पता चलता है।
(2) जाहिर है, भाव / विचारोत्पत्ति / उनकी अभिव्यक्ति / सन्देश स्थापना के लिए हमें किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। इसी सन्दर्भ में हम, माध्यम और उनकी प्रकार्यात्मक भूमिका की ओर अग्रसर होंगे ... आज हमारे पास अपने भावों / विचारों को अभिव्यक्त करने के एक, दो या अनेक / बहु (Multi) माध्यम हैं जो इन्हें सामूहिकता में लेकर, तीव्रगतिशील माध्यमों (Hyper- Media) के रूप में काम करते हैं। इनमें, जहाँ एक ओर पारम्परिक दृश्य-श्रव्य माध्यम जैसे हाव-भाव, ध्वनियाँ, रंग, चित्रांकन, शिल्प (वास्तु / मूर्ति), बोली, भाषा, आदि हैं, जो, शारीरिक क्रियाओं, रंगों, शिलाओं, लकड़ी / धातुओं आदि के रूप में रहे हैं तो, दूसरी ओर आधुनिक / अत्याधुनिक विज्ञान के माध्यम कागज़ / पर्चे-पुस्तकों के साथ, विज्ञान और तकनीक के मेलजोल से यान्त्रिक दृश्य-श्रव्य माध्यम (टेलीफोन / माइक रेडियो / सिनेमा / टेलीविज़न / कंप्यूटर / मोबाइल आदि) हैं। इन सभी के प्रकार्य, विचार, अभिव्यक्ति और सन्देश स्थापना (किसी न किसी पारम्परिक भाषा (मातृभाषा / प्रथम भाषा) के उपकरणात्मक (Instrumental) के सहारे) के स्तर पर, एकल, बहु क्षेत्रों (व्यक्ति -> परिवार समाज - > राष्ट्र -> विश्व) में सीमित / लघु / विस्तृत रूप में, ज्ञान की अनेक विधाओं (मनोवैज्ञानिक / सामाजिक / धार्मिक / कला-सांस्कृतिक / ऐतिहासिक / राजनैतिक / वैज्ञानिक-चैकित्सिक / वाणिज्यिक आदि) से जुड़े हुए हैं। इसी आलोक में हम, विभिन्न माध्यमों, विचार सम्प्रेषण और तदनुसार, अन्ततोगत्वा सन्देश स्थापना के अन्तरसम्बन्धों पर चर्चा करेंगे....
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