भारतीय साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ : चारण काव्य

भारतीय साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ : चारण काव्य

दूसरी आरम्भिक प्रवृत्ति है चारण काव्य। यह भी अधिकांश भाषाओं में प्रायः समान है। अपनी प्राचीनता के अनुरूप ही तमिल में चारण काव्य संगम काल (ई. पू० ५००-२०० ) के आरम्भ से ही मिलता है। पतुप्पाट्टू (द लघु-वर्णनिकाओ) में से कई में चारण काव्य के उत्कृष्ट उदाहरण मिलते हैं। पोरुनरात्रुप्पदइ अर्थात् 'सेनापति की बात' करइकल के राजा की स्तुति में लिखी गई है। कवि ने यहाँ सतत प्रवाहमान कावेरी के कारण चोल राज्य की उर्वरता, कृषि तथा उद्योग-वैभव और चोलराज के विवेक एवं प्रताप का यशोगान किया है। चौथी लघु-वर्णनिका पेरुम्मनात्रुपदड़ में कांची के शासक की प्रशंसा है। पद्रिटुप्पात में विभिन्न कवियों द्वारा चेर राजवंश के राजाओं का गुण-कीर्तन किया गया है। संगम युग का प्रसिद्ध महाकाव्य सिलप्पदिकारम भी एक प्रकार से चारण काव्य ही है। इसका कवि चेर-सम्राट का पुत्र था जो बाद में तपस्वी हो गया था। तेलुगु में श्रीनाथ का लोकप्रिय काव्य पलनाटिवीरचरित्रम् इस वर्ग का अत्यन्त श्रेष्ठ काव्य है। जनभाषा में रचित काव्य पलनाडु (गुंटूर) के योद्धाओं के शौर्य और साहस का अत्यन्त ओजोदीप्त वर्णन प्रस्तुत करता है। मलयालम के आदिम काव्य संग्रह 'पझय पाट्ट्कल' में अनेक चरित्र-गीत हैं। उधर पर्सी मैक्वीन ने बड़ी संख्या में मलयालम चारण गीतों का संकलन किया हैं। मराठी के मध्ययुगीन वीराख्यान अथवा वीरगीत रूप पवाड़े चारणकाव्य के ही अन्तर्गत आते हैं। इनमें चारण कवियों ने अपने आश्रयदाता राजाओं और वीरों के शौर्य और प्रताप का यशोगान किया है। गुजराती साहित्य में श्रीधर रचित 'रणमल्ल छन्द' और पद्राभ का 'कान्हड्डे प्रबन्ध' आदि अनेक वीर रस प्रधान काव्य भारतीय चारण काव्य परम्परा की अमूल्य विभूतियाँ हैं। पंजाबी में गुरु गोबिंद सिंह ने वीर रसपूर्ण अमर काव्य की रचना की है। किन्तु उनका चण्डी काव्य चारणकाव्य नहीं है । बाद में सिख वीरों की प्रशस्ति में कुछ पंजाबी कवियों ने चारणगीतों की रचना की है जो इधर-उधर बिखरी पड़ी है। हिन्दी के आदि युग को तो इतिहासकारों ने वीरगाथाकाल नाम ही दे दिया है। हिन्दी में आदिकाल में ही नहीं मध्यकाल में भी निरन्तर चारणकाव्य की रचना होती रही। आरम्भ में पृथ्वीराज रासो तथा उसके पूर्ववर्ती परवर्ती अनेक रासो ग्रन्थ और उधर आल्हखण्ड प्रभृति वीररसपरक आख्यान - गीत तथा मध्ययुग में भूषण सूदन, आदि की रचनाएँ चारणकाव्य के इतिहास में अक्षय गौरव की अधिकारिणी हैं।