वैयक्तिक सेवा कार्य के उपकरण - Tools Of Social Case Work.

5.0 इकाई की रुपरेखा
5.1 उद्देश्य
5.2 प्रस्तावना
5.3. उपकरण के रूप मे भ्रमण कार्य
5.4 उपकरण के रूप मे गृह भ्रमण
5.5 अवलोकन

5.6 घटना का अध्यन
5.7 बातों को ध्यान से सुनना
5.8 साक्षात्कार कुशलता
5.9 सम्बन्ध स्थापन
5.10 अभिलेखन
5.11 पर्यवेक्षण
5.12 रिपोर्ट लेखन
5.13 सारांश
5.14 बोध प्रश्न
5.15 कुछ उपयोगी पुस्तकें




5.1 उद्देश्य

v  उपकरण के रूप मे भ्रमण कार्य के माध्यम से कैसे वैयक्तिक कार्य करे.
v  उपकरण के रूप मे गृह भ्रमण के माध्यम से कैसे वैयक्तिक कार्य करे.
v  अवलोकन द्वारा तथ्यों को समझना.
v  घटना का अध्यन,अवलोकन के माध्यम से जानकारी एकत्रित करना.
v  बातों को ध्यान से सुनना,समझना
v  कुशलता से साक्षात्कार उपकरण का पर्योग करना.
v  भ्रमण,अवलोकन साक्षात्कार के दौरान बेहतर सम्बन्ध स्थापित करना.
v  अभिलेखन की सहायता से सेवार्थी को कैसे बेहतर तरीके से समझे.  
v  पर्यवेक्षण अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों प्रकार से कार्यकर्त्ता की क्षमता मे सुधर लाता है.

v  रिपोर्ट लेखन एक अभिन्न अंग है,जिसके माध्यम से समस्या से जुडी सारी बातें लिखी जाती है.

5.2 प्रस्तावना

मानव समाज मे समस्याए सदेव से विदमान रही है. उन समस्यायों को किस प्रकार ख़त्म किया जा सके. उसके लिए सारी तकनीक,प्रक्रिया का एक व्यावसायिक सामाजिक कार्यकर्त्ता समाज कार्य के उपकरणों के प्रयोग से कर करता है.
समाज कार्य एक उपचार की प्रक्रिया है. व्यावसायिक समाज कार्य मे हम उपचार के लिए कई सिद्धान्तों का प्रतिपादन करते है. जिससे की समस्याग्रस्त व्यक्ति जिसे हम सेवार्थी कहते है, व्यावसायिक समाज कार्य की भाषा मे उसकी समस्याओ का निदान हो सके.


5.3. उपकरण के रूप मे भ्रमण कार्य

वैक्तिक सेवा कार्य या समाज कार्य के किसी भी पद्धति मे भ्रमण कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
भ्रमण कार्य क्या है ?
समाज कार्य पाठ्यकर्म एक व्यावहारिक पाठ्यकर्म है. इस पाठ्यकर्म मे हम क्लासरूम मे जो कुछ भी सीखते है, उसे क्षेत्र कार्य करते समय व्यव्हार मे लाना अति आवश्यक है. जब हम किसी केस को स्टडी करते है.तब हमें सबसे पहले ये जरुरी होता है,की हम समस्याग्रस्त व्यक्ति से जुड़े सारे जगहों का एक बार या दो बार या जब तक सामाजिक कार्यकर्त्ता को भ्रमण कार्य के परिणाम से संतुष्टि न मिले. तब तक समस्या से जुड़े सारे जगहों पर आवश्यकता के अनुसार भ्रमण करे. इस उपकरण के माध्यम से समस्या से जुडी कई उपरी तथ्य सामने आते  है.
भ्रमण कार्य उपकरण एक बुनयादी नीव होती है, क्षेत्र कार्य के दौरान किसी भी व्यक्ति,समूह,समुदाय,की समस्याओ को नजदीक से देखा जा सकता है. भ्रमण कार्य के तहत संवाद स्थापित किया जाता है. जिससे उनके दिनचर्या,समस्या आदि का पता चल सके.


5.4 उपकरण के रूप मे गृह भ्रमण

गृह भ्रमण प्रणाली एक ऐसी उपकरण है, जिसके द्वारा सामाजिक कार्यकर्त्ता किस भी समस्याग्रस्त व्यक्ति की समस्याओ के बारे मे व्यक्ति और व्यक्ति से जुड़े सारे लोग जैसे- आस-पडोस, दोस्त, सगा सम्बन्धी इत्यादि के घर घर जाकर जानकारी एकत्रित करना ही गृह भ्रमण कहलाता है. इस उपकरण का प्रयोग भी अनिवार्य होता है.क्योकि किसी भी सेवार्थी के द्वारा बताई गई समस्यायों के आधार पर अगर कोई सामाजिक कार्यकर्त्ता उपचार करता है, तो परिणाम सही नहीं आएगा. क्योकि हर समस्या के पीछे जो सही कारण होता है,वो सेवार्थी नहीं समझ पता है.इसलिए अपनी समस्यायों से निजाद पाने की लिए वो किसी सामाजिक कार्यकर्त्ता के पास जाता है.
सेवार्थी की सारी बातों को ध्यान मे रखते हुए सामाजिक कार्यकर्त्ता को गृह भ्रमण उपकरण के प्रयोग से सेवार्थी जिस वातावरण मे रह रहा हो,उस वातावरण, वहां के लोगो की, उसके रिश्तेदार, दोस्त आदि से सेवार्थी के समस्याओ का पता करना चाहिए. गृह भ्रमण के बाद लोगो द्वारा सेवार्थी से जुडी समस्याए सामने आई हो. उन समस्याओ, तथ्यों मे जो कॉमन लगे उसकी सूचि बना के उनका मूल्यांकन करना चाहिए.

गृह भ्रमण तकनीक
सेवार्थी को सेवा प्रदान करते समय गृह भ्रमण के समय कुछ तकनीको के प्रयोग से सेवार्थी की क्षमताओ के विकास के लिए सामाजिक कार्यकर्त्ता को आवश्यकता अनुसार कुछ कोशिश करनी चाहिए.
1.     मोडलिंग
इस तकनीक का प्रयोग सामाजिक कार्यकर्त्ता को तब करना चाहिए जब सेवार्थी स्वम् से कोई निर्णय नहीं ले पा रहा हो. जब वो कोई फैसला लेने मे बिलकुल असमर्थ महसूस कर रहा हो.तब मोडलिंग तकनीक के माध्यम से सेवार्थी को प्रेरित करना चाहिए. ताकि निर्णय ले सके.

2.भूमिका निर्वाह तकनीक
इस तकनीक मे सामाजिक कार्यकर्त्ता सेवार्थी के अनुरूप भूमिका का निर्वाह करता है. जिससे सेवार्थी आसानी से किसी भी कठिन प्रस्थिति का सामना कर सके.इस तकनीक से सेवार्थी के आत्मविश्वास मे बढ़ोतरी होती है.

3.उदाहरण और तर्क का प्रयोग
सेवार्थी को सदेव हर बात उदहराण और तर्क के साथ बताना चाहिए. जिससे सेवर्थी को प्रेणना मिल सके.अपने जीवन मे आगे बढ़ने का और समस्या से मुक्त होने का. उदाहरण और तर्क के माध्यम से सेवार्थी के आत्मविश्वास को बढाने का कोशिश करे.
5.5 अवलोकन

समाज कार्य क्षेत्रीय कार्य मे भ्रमण कार्य, गृह भ्रमण, साक्षात्कार करते समय सामाजिक कार्यकर्त्ता को हर तथ्यों का अवलोकन करते रहना चाहिए. अवलोकन एक ऐसी प्रणाली जिसे मनुष्य अपने जीवन मे निरंतर करते रहता है. मनुष्य अपनी ज्ञाननिन्द्रियो के माध्यम से किसी भी कार्य करते वक्त अवलोकन करता है.
जैसे- किसी पदार्थ की सुगंध से मनुष्य ये अनुमान लगा लेता है की वो क्या हो सकता है. यहाँ नाक के माध्यम से अवलोकन हुआ. उसी प्रकार कान,चमड़ी, आँख,मुह के माध्यम से भी अवलोकन किया जाता है.  आँखों से कई चीज़ देखकर, कानों से सुनकर, जिह्वा से स्वाद लेकर, चमड़ी के माध्यम से महसूस करकर. मनुष्य अवलोकन ही करता है. ये सारी परिक्रियाए अवलोकन के दायरे मे         आती है.
इसलिए वैयक्तिक सेवा कार्य मे अवलोकन के माध्यम से सामाजिक कार्यकर्त्ता को सेवार्थी से जुडी तथ्यों को एकजुट कर लेना चाहिए. जिससे समस्यायों का समाधान बेहतर तरीके से हो पाए.  

अवलोकन प्रक्रिया का प्रयोग वैयक्तिक सेवा  कार्य के सारे उपकरणों के प्रयोग के दौरान ही किया  जा सकता है. जिन तथ्यों की आवश्यकता हो, उसे अवलोकन के माध्यम से पूरी करने की कोशिश होनी चाहिए. 

5.6 घटना का अध्यन

किसी भी घटना का अध्यन समाज कार्य मे कर्मबद्ध तरीके और वैज्ञानिक ज्ञान के अनुसार किया जाता जाता है. घटना का अध्यन करते वक्त सामाजिक कार्यकर्त्ता को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए.

1.      जिस घटना का आप अध्यन कर रहे हो,क्या उससे जुडी सारी बातों की जानकारी, समझ आपके पास है.
2.क्या इस तरह के घटनाओ के बारे मे आपने पहले कही पढ़ा है.
3.जिस घटना का अध्यन करने आप जा रहे हो, क्या आप वहा संवाद स्थापित करने मे सक्षम हो.

किसी भी घटना का अध्यन करने के लिए जरुरी होता है,की जिस क्षेत्र की घटना का अध्यन हम करते है – वहां की भाषा, बोली, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, परंपरा आदि की समझ सामाजिक कार्यकर्त्ता को  विकसित करनी चाहिए. एक बार क्षेत्रीय संस्कृति की समझ विकसित हो गई तो फिर घटना से संबधित तथ्यों को जुटाने मे आसानी होगी.

घटना स्थल से जुडी संस्कृति की जानकारी के आधार पर-
1.      संवाद स्थापित होता है.
2.      व्यक्ति, समूह, समुदाय की स्वीकृति मिल जाती है.
3.      उनके भाषा मे बात करने से अपनत्व की भावना उत्पन्न होती है.


5.7 बातों को ध्यान से सुनना

समाज कार्य के किसी भी प्रणाली मे देखे चाहे वो वैयक्तिक सेवा कार्य हो या समूह कार्य या सामुदायिक कार्य हो. सामाजिक कार्यकर्त्ता के पास सुनने की कला का होना अति आवश्यक है. हर प्रस्थिति मे चाहे एक बात कई बार सुनना पड़े. धैर्य के साथ सामने वाले की पूरी बात को सुनना चाहिए. क्योकि हम जब समस्या से जुडी बातों को सुनेगे, जानेगे,समझेगे तभी तो जान पाएंगे समस्या क्या है ? और उसका निदान कैसे किया जाये.

भ्रमण कार्य, गृह भ्रमण, साक्षात्कार आदि प्रणालियों के उपयोग के समय सामाजिक कार्यकर्त्ता को ज्यादा से ज्यादा सेवार्थी, उनके परिजन, दोस्त, घरवालो के द्वारा सारी बातें सुननी चाहिए. क्योकि सुनना एक ऐसी क्रिया है. जिसके माध्यम से कई समस्याए आसानी से हल हो जाते है.
क्षेत्र कार्य के दौरान सामने वालो की बातों को ज्यादा से ज्यादा सुनये. और अपना निर्णय, अपनी बात कम से कम व्यक्त कीजिये. आवश्यकता अनुसार ही अपनी बातें  व्यक्त करे. उनसे समस्या के बारे मे जानकारी लेने के दौरान कई बार सेवार्थी को प्रेरित कने की आवश्यकता भी होती है. उसे आत्मविश्वास दिलाना पड़ता है,की कुछ गलत नहीं है.अगर कुछ हैतो वो सब ठीक हो जायेगा.
इसलिए बातों को ज्यादा सुने और वैयक्तिक सेवा कार्य को सही तरीके से करे.



5.8 साक्षात्कार कुशलता

वैयक्तिक कार्य  मे साक्षात्कार कौशल का प्रयोग बहुत  ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. सामाजिक कार्यकर्ता भी सेवार्थी को सेवा प्रदान करने की प्रक्रिया मे शुरू से अंत तक साक्षात्कार करता.है और इस प्रकार वैयक्तिक सेवा कार्य कार्यकर्ता के लिये साक्षात्कार एक कला तथा विज्ञान है जिसके सिद्धान्तों की जानकारी,तथा समझ सामाजिक कार्यकर्त्ता को होना चाहिए. तथा प्रविधियों का व्यवहारिक ज्ञान भी आवश्यकता अनुसार जरुरी है।


साक्षात्कार कौशल एवं कला

1.      साक्षात्कार करते वक्त कार्यकर्त्ता को सेवार्थी के हर क्रिया का अवलोकन करते रहना चाहिए.
2.      बातों को सुनने था समझने की कला. क्योकि जो सेवार्थी बताने की कोशिश करता है अगर वो कार्यकर्त्ता नही समझेगा. तो संवाद स्थापित नहीं हो पायेगा.
3.      सवाल जवाब की निरंतरता को बरकरार रखने की कला. क्योकि तरह तरह से सवाल से सेवार्थी के अंदर समस्या से जुडी सारी बातों को निकाला जा सकता है.
4.      मार्गदर्शक तथा निर्देशन कौशल साक्षात्कार के दरमियाँ कई बार सेवार्थी हतास, निराश हो जाता है. उस वक्त कार्यकर्त्ता को जरुरी है की एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाए. और सेवर्थी को प्रेरित करे.

साक्षात्कार प्रक्रिया

आरंभिक प्रक्रिया – आरंभिक प्रक्रिया मे कार्यकर्त्ता सेवार्थी को विश्वास दिलाता है की जो हो रहा है वो सही है. आप किसी भी बात को छिपाए नहीं. हर छोटी से छोटी बात साँझा करे. सेवार्थी को पूरी आजादी के साथ आराम से सोचने का समय देता है. फिर कार्यकर्त्ता साक्षात्कार की शुरुआत करता है.

मध्य की प्रक्रिया – कार्यकर्त्ता सेवार्थी से कई सवाल करता है. जिससे समस्याए सामने आ सके. सेवार्थी की बातों को ध्यान से सुनता है. और अगर कभी कभी बातें दिशाहीन होने लगे तो कार्यकर्त्ता पुनः सेवार्थी को उद्देश्यों की और लाने की कोशीश करता है.

अंतिम प्रक्रिया – इस अवस्था मे साक्षात्कार के सारे उद्देश्यो की पूर्ति हो जाती है. और कार्यकर्त्ता साक्षात्कार के दौरान हुई बातों के अनुसार सेवार्थी का मार्गदर्शन करता है. उसे कई सरे दिशाए दिखता है. जिससे की वो समस्याओ से छुटकारा पा सके.



5.9 सम्बन्ध स्थापन

सम्बन्ध स्थापन प्रक्रिया की शुरुआत कार्यकर्त्ता के द्वारा सेवार्थी को प्रदान की जाने वाली सेवाओ की शुरआती दौर से ही शरू हो जाती थी. कार्यकर्त्ता के साथ सेवार्थी का सम्बन्ध दीर्घकालिक या लघुकालिक रहेगा. ये निर्णय कार्यकर्त्ता और सेवार्थी के सम्बन्ध पर निर्भर होता है.
सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य में सम्बन्ध स्थापित करना ही सेवा प्रदान करने का प्रमुख आधार होता है क्योंकि सम्बन्धों को स्थापित करके वैयक्तिक कार्यकर्ता किसी व्यक्ति व समस्या को समझ सकता है. और उस समस्या का  समाधान खोजने की कोशिश करता है. और व्यक्ति के आत्मविश्वास एवं दृढ इच्छाशक्ति को विकसित करते हुए समस्या सुलझाने का प्रयास करता है।
 सेवार्थी के साथ स्थापित सम्बन्ध वह उपकरण है जिसके माध्यम से कार्यकर्ता सेवार्थी की समस्या का उपचार करता है। कार्यकर्त्ता सेवार्थी की समस्या का उचित एवं सही ज्ञान तभी प्राप्त कर सकता है जब सेवार्थी के साथ सम्बन्ध,व्यव्हार एवं सम्पर्क मे घनिष्ठता हो। शनै – शनै सेवार्थी के साथ सम्बन्ध जैसे जैसे घनिष्त होता है वैसे वैसे सेवार्थी अपनी सारी बातें कार्यकर्त्ता के साथ साँझा करता है. अतः सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य प्रक्रिया के दौरान उपचार का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सेवार्थी और कार्यकर्त्ता के बीच सम्बन्ध विश्वनीय,घनिष्ट होना चाहिए.

सम्बन्ध स्थापन के तरीके
लिखित – किसी भी सुचना, जानकारी, संदेंश सेवार्थी को लिखित रूप मे लिख कर संचारित करना भी एक सम्बन्ध स्थापित करने का माध्यम है. ये तरीका ज्यादातार तब प्रयोग किया जाता है.जब सेवार्थी अपनी बातों को कहने मे संकोच करता है.या सेवार्थी बोलने मे असमर्थ हो.
मौखिक – अपने विचारो का आदान प्रदान मौखिक रूप से करकर ज्यादातर सम्बन्ध स्थापित किया जाता है. कार्यकर्त्ता सेवार्थी से सारी बातें समस्या से जुडी मौखिक रूप मे सुनता है.और बातों को भी भी सेवार्थी के समक्ष रखता है. जिससे सेवार्थी प्रेरित हो सके.  




5.10 अभिलेखन

अभिलेखन प्रक्रिया सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य मे बहुत ही महत्वपूर्ण है. क्योकि सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य मे सेवार्थी को सटीक सेवा प्रदान करने के लिए अभिलेख बहुत ही फायेदेमंद साबित होता है. अभिलेख के माध्यम से साक्षात्कार,गृह भ्रमण आदि सभी को सुरक्षित रखा जाता है.अभिलेखन प्रक्रिया का प्रयोग करके कई उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है.

1.      सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य करते समय सारे गतिविधियों को रिकॉर्ड करके अंत मे मूल्यान्कन किया जाता है. और  निष्कर्ष तक पंहुचा जाता है.
2.      अभिलेखन के माध्यम से सेवार्थी को सेवा प्रदान करने की प्रक्रिया मे निरंतरता बनी रहती है.
3.      लिखित अभीलेखो के माध्यम से गुणवत्ता की जांच की जाती है. जिससे अगर कुछ त्रुटी या गलती होती है तो सही कि जाती है.
4.      अभिलेखो का प्रयोग प्रशिक्षण एवं अनुसन्धान के लिए भी किया जाता है.जिसके माध्यम से एक तरह की समस्याओ के बारे मे शोध किया जा सके.
5.      एक चिकित्सकीय उपकरण के रूप मे भी अभीलेख काम करता है.जिससे उपचार प्रक्रिया मे आसानी होती है.




5.11 पर्यवेक्षण

सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य  मे सेवार्थी को प्रदान की गयी सेवा की निरंतरता, गुणवत्ता आदि मे पर्यवेक्षण के माध्यम से सामाजिक कार्यकर्त्ता के व्यावसायिक विकास, कार्य- संतुष्टि निश्चित करने मे सामाजिक कार्यकर्त्ता के लिए पर्यवेक्षण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
पर्यवेक्षण से जुड़े तथ्य सबसे पहले उन्नीसवी शताब्दी मे चैरिटी आर्गेनाईजेशन सोसाइटी आन्दोलन मे प्राप्त होता है.

पर्यवेक्षण कार्य
सामजिक कार्य के इतिहास से ये पता चलता है,की सामाजिक कार्य पर्यवेक्षण की शुरुआत प्रशासनिक रूप मे हुआ है. इतिहास के पन्नो मे देखा जाये तो इसकी प्रशासनिक कार्यप्रणाली सन 1878 मे चैरिटी आर्गेनाईजेशन आन्दोलन मे आरम्भ हुआ. और पर्यवेक्षण को सन 1911 मे औपचारिक रूप मे शैक्षणिक उद्देश्य प्राप्त हुआ. सबसे पहले जब मैरी रिचमंड द्वारा पर्यवेक्षण मे पहले पाठ्यकर्म की शुरुआत की और उन्होंने फिर अवलोकन किया की सहानभूति प्रदान करने की प्रक्रिया सामाजिक कार्य पर्यवेक्षण का तीसरा कार्य है. कार्यो को कर्मबद्ध तरीके से करना सामाजिक कार्य पर्यवेक्षण को अद्वितीय एवं मानवीय बनाता है.

पर्यवेक्षण की क्रिया
लघुकालिक और दीर्घकालिक दोनों प्रकार के होते है.
लघुकालिक पर्यवेक्षण- अल्पकालिक पर्यवेक्षण के द्वारा कार्यकर्त्ता अपनी कार्य करने की क्षमता, कार्य करने के तरीके आदि मे सुधार करता है.यह कार्यकर्त्ता की कुशलता को पूर्ण रूप से विकसित करने मे सहायता करता है.
 दीर्घकालिक पर्यवेक्षण – ऊपर दिय गए तथ्य जो की लघुकालिक उद्देश्यों की पूर्ति करता है. वही दीर्घकालिक उद्देश्यों के पाने के उपाय भी है. जो सेवार्थी को बेहतर तथा प्रभावी सेवाओ मे कारगर साबित होता है. इस क्रिया मे पर्यवेक्षक प्रशासनिक रूप से कुशल तरीके से एकत्रित तथा समन्वित कार्य करता है.


5.12 रिपोर्ट लेखन

रिपोर्ट लेखन क्रिया की भी शुरुआत से अंत तक चलता है. सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य करते वक्त हर भ्रमण कार्य के बाद जितने कार्य आपने किये. उन सब बातों को रिपोर्ट के रूप मे लिखकर सहेज कर रखना चाहिए. गृह भ्रमण के दौरान परिजनों से जितनी बातें हुई वो सारी भी रिपोर्ट मे लिखना चाहिए. सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य  मे सेवार्थी के किये गए साक्षात्कार की रिपोर्ट बनाने से अतीत और वर्तमान की बातों को तुलनात्मक तरीके से देखा जा सकता है.इससे सेवा प्रदान करने के लिए क्या क्या किया है, और आगे क्या क्या करना है. ये समझने करने मे आसानी होती है. रिपोर्ट लेखन के द्वारा कार्यात्मक गुणवत्ता, निरंतरता बनी रहती है.

रिपोर्ट लेखन के प्रकार
वर्णात्मक लेखन- वर्णात्मक लेखन मे सारे तथ्यों को विस्तार से लिखा जाता है. तथा हर घटना और स्थिति का स्पष्ट चित्रण किया जाता है.
संक्षिप्त लेखन- इस प्रकार के लेखन मे विषय के आधार पर सम्पूर्ण इतिहास को कई भागो मे विभाजित कर दिया जाता है. जैसे- अभिज्ञान आकडे, स्वास्थ्य,. वैवाहिक जीवन, कार्यस्थल प्रमुख समस्याए.

रिपोर्ट लेखन के सिधांत
1.      समस्या का स्पष्ट चित्रण- सेवार्थी की समस्या क्या है. किस प्रकार की समस्या है. प्रमुख समस्या क्या है. समस्याओ से सम्बंधित समस्याए क्या है. ये सब का सही चित्रण किया जाता है.
2.      सेवार्थी की भावनाओ तथा विचारो का स्पष्टीकरण -  समस्या के बारे मे सेवार्थी क्या सोचता है. और किस प्रकार समस्या को विश्लेषित करता है. समस्या के लिए अपना  कितना दोष मानता है. अपनी क्षमताओं और अक्षमताओ को किस प्रकार आकता है. आदि पूर्ण रूप से लिखा होना चाहिए.
3.      समस्या के समाधान के पूर्व प्रयास- सेवार्थी समस्या को लेकर कहाँ कहाँ गया है.तथा किस प्रकार की सहायता प्राप्त की है.सहायता से स्थिति मे क्या परिवर्तन आया और क्या विघटन आया है.वर्तमान स्थिति मे अपने पूर्व अनुभव का किस प्रकार प्रयोग कर रहा है.
4.      कार्यकर्त्ता का समस्या के प्रति स्पष्ट दृष्टिकोण- जिस प्रकार सेवार्थी का समस्या के प्रति दृष्टिकोण का ज्ञान महत्वपूर्ण है,उसी प्रकार कार्यकर्त्ता का भी दृष्टिकोण महत्वपूर्ण स्थान रखता है.वह समस्या का क्या रूप समझता है. कौन कौन से कारण समझाता है. समस्या का समाधान किन किन प्रविधियो से संभव है. आदि ये सब लेखन के रूप मे महत्वपूर्ण रखता है.
5.      समस्या समाधान के लिए विभिन्न प्रयासों का चित्रण- कार्यकर्त्ता सेवार्थी को किस प्रकार की सुविधाए दे रहा है, क्या क्या व्यवस्था तथा सुझाव दे रहा है. अदि को लिखना चाहिए

सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य से जुडी प्रक्रिया, विधि आदि का आरम्भ से अंत तक का विवरण रिपोर्ट लेखन के रूप मे लिखा जाता है.


5.13 सारांश

मानव समाज में आरम्भ में वैयक्तिक आधार पर सेवा करने की परम्परा रही है। यहाँ पर निर्धनों को भिक्षा देने,  असहायों की सहायता करने,  निराश्रितों की सहायता करने,  वृद्धों की देखभाल करने आदि कार्य किये जाते रहे हैं, जिन्हें समाज सेवा का नाम दिया जाता रहा है। ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाये तो हम निश्चित रूप से यह कह सकते हैं कि भारत में भी अमेरिका, इंग्लैण्ड की भाँति शोषण का सरलतापूर्वक शिकार बनने वाले वर्गों की सहायता का प्रावधान प्राचीन काल से चला आ रहा है। पहले इस सहायता को समाज सेवा के रूप में देखा जाता रहा है, लेकिन धीरे-धीरे इसने अपना स्वरूप बदल लिया और उन्नीसवीं शताब्दी में समाज कार्य के रूप में सामने आयी।
वैयक्तिक समाज कार्य में व्यक्ति से तात्पर्य ऐसे सेवार्थी से है जो मनोसामाजिक समस्याओं से ग्रसित है, यह व्यक्ति एक पुरूष, स्त्री, बच्चा अथवा वृद्ध कोई भी हो सकता है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जो भी व्यक्ति सहायता चाहता है,  वैयक्तिक समाज कार्य उसको सहायता उपलब्ध कराता है। कोई भी समस्या व्यक्ति के सामाजिक समायोजन को प्रभावित करती है इसका स्वरूप कैसा भी क्यों न हो। समस्या शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक या मनोवैज्ञानिक इत्यादि प्रकृति की हो सकती है.



सन्दर्भ सूचि

1. डा. प्रयाग दीन मिश्रः सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य, उत्तर प्रदेश हिन्द
संस्थान लखनऊ।
2. डा. कृपाल सिंह सुदनः समाज कार्य सिद्धान्त एवं अभ्यास, नव ज्योति सिमरन
पटिलकेशन्स, लखनऊ।
3. समाज कार्य : तेजस्कर पाण्डेय और ओजस्कर पाण्डेय