संघर्ष का अर्थ एवं परिभाषा, स्थितियाँ, स्वरूप - Meaning and Definition, Conditions, Nature Of Conflict.

संघर्ष का अर्थ एवं परिभाषा, स्थितियाँ, स्वरूप - Meaning and Definition, Conditions, Nature Of Conflict.




संघर्ष एक सामाजिक प्रक्रिया है जो सभी समाजों में पायी जाती है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति अथवा समूह किसी उददेश्य की प्राप्ति के लिए दूसरे व्यक्तियों अथवा समूहों को रोकने का प्रयत्न करते हैं।

1. परिभाषा - 

ग्रीन, ए0 डब्लू0: संघर्ष किसी अन्य व्यक्ति अथवा व्यक्तियों की इच्छा का जानबूझकर विरोध करने अथवा उसे शक्ति से पूर्ण कराने से सम्बन्धित प्रयत्न है।

गिलिन एण्ड गिलिन: संघर्ष सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अथवा समूह अपने उद्देश्य की प्राप्ति अपने विरोधी को हिंसा अथवा हिंसा के भय द्वारा प्रत्यक्ष चुनौती देकर करते हैं।       संघर्ष प्रतिकूलता के पश्चात प्रारम्भ होता है। स्वार्थपरता बढ़ने से व्यक्ति दूसरे को हानि पहुंचाने लगता है। इसके विरोध में दूसरा व्यक्ति अपनी रक्षा करने का प्रयत्न करता है और उसको हानि पहुंचाने से रोकता है। जिससे मनोवैज्ञानिक स्तर पर संघर्ष की रूपरेखा बनती है तथा अवसर आने पर प्रत्यक्ष संघर्ष होने लगता है।


संघर्ष की स्थितियाँ 

      संघर्ष के लिए निम्न परिस्थितियाँ आवश्यक हैं:

1. वैयक्तिक भिन्नता- मनोवैज्ञानिक स्तर पर विरोधाभास,  प्रतिस्पर्धा समझौता न होने की स्थिति क्रोध का संवेग नियंत्रण अप्रभवकारी


संघर्ष की प्रकृति

 संघर्ष एक चेतन एवं, निरन्तर चलने वाली तथा सार्वभौमिक प्रक्रिया है।

1. संघर्ष में द्वन्दियों का पूरा ज्ञान होता है।  उद्देश्य व लक्ष्य प्राप्त करने के साथ-साथ विरोधी का दमन भी करना होता है। शक्ति का अधिकाधिक उपयोग होता है।


 संवेग (क्रोध) तेज होते हैं। सतर्कता अधिक होती है।

स्थितियों का सूक्ष्म से सूक्ष्म विश्लेषण होता है।

व्यक्ति प्रधान होता है।

लक्ष्य विरोधी की ओर अग्रसित होते हैं।

 नियम व कानूनों का उल्लघन होता है।

 विरोधी का दमन होता है।

 शक्ति का हृास होता है।

 परिवर्तन की प्रक्रिया सदैव चलती रहती है अतः संघर्ष चलता रहता है।

संचय की प्रवृत्ति उत्पन्न करती है।


संघर्ष तथा प्रतिस्पर्धा में अंतर 

प्रतिस्पर्धा संघर्ष 

1. यह अवैयक्तिक प्रक्रिया है।

 1. संघर्ष चेतन होता है। 

2. यह अवैयक्तिक प्रक्रिया है।

2. यह वैयक्तिक प्रक्रिया है। 

3. यह निरन्तर होती है।

 3. संघर्ष कभी-कभी होता है।

 4. विरोधियों के प्रति कम द्वेष होता है।

4. विरोधियों को हानि पहुँचाना प्रमुख  उद्देश्य होता है।                   

5. उद्देश्य प्राप्त करना लक्ष्य होता है। 

5. स्वार्थ सिद्ध के साथ साथ विरोधी      को समाप्त करना भी उद्देश्य होता है। 

6. सामाजिक नियमों को कठोरता 

6. सामाजिक नियमों का पालन नहीं  से पालन किया जाता है।     

7. यह अहिंसा के सिद्धान्त पर आधारित है।

7. हिंसा का प्रयोग होता है। 

8. प्रतिस्पर्धा से दोनों पार्टियों को लाभ 

8. प्रायः दोनों विरोधियों को हानि होती है। 

9. यह न्यूनतम प्रथक करने वाली प्रक्रिया है

9. यह पूर्ण प्रथम करने वाली  प्रक्रिया है। 

10. यह वैयक्तिक गुणों तथा परिश्रम 

10. संघर्ष परिश्रम को प्रोत्साहित करती है।

 11. प्रतिस्पर्धा से उत्पादन बढ़ता है।

11. संघर्ष उत्पादन को कम करता है।


संघर्ष के प्रकार 

 संघर्ष के निम्न प्रमुख प्रकार है:

1. वैयक्तिक संघर्ष -   निजी स्वार्थों के कारण यह संघर्ष होता है। इससे समूह को कोई लाभ नहीं होता अतः हर सम्भव प्रयत्न संघर्ष रोकने के लिए किया जाता है।

2. प्रजाति संघर्ष :विभिन्न प्रजातियों में यह संघर्ष होता है। जैसे हिंदू-मुस्लिम संघर्ष, हिन्दू सिख संघर्ष, सिया-सुननी संघर्ष, आदि।

2. वर्ग संघर्ष:वर्तमान समय में वर्ग संघर्ष प्रमुख स्थान लेता जा रहा है। आज ऐसा कोई दिन नहीं होता जब समाचार पत्र में यह संघर्ष न पढ़ने को मिलता हो।

 3. राजनैतिक संघर्ष:यह दो प्रकार का होता है। देश के अन्दर तथा अंतर्राष्ट्रीय। पहला संघर्ष देश में विभिन्न दलों के मध्य होता है तथा दूसरा संघर्ष युद्ध होता है।

 संघर्ष का परिणाम - समाज पर संघर्ष के निम्न प्रभाव होते है:

1. स्व समूह में एकरूपता

  समूहों में संगठन

 आन्तरिक विवादों तथा मतभेदों का अंत

 कार्यों एवं विश्वासों में एकरूपता

2. समूह में एकता की कमी

 जब समूह में संघर्ष होता है तो उसमें एकता समाप्त हो जाती है।

 मतभेद बढ़ जाते है। ऽ नियंत्रण कमजोर हो जाता है।

3. व्यक्तित्व में परिवर्तन

 समूह संघर्ष अथवा समूह से प्रथम संघर्ष दोनों ही स्थितियों में कुछ लोग अवश्य ऐसे होते हैं जो दोनों पक्षों से सम्बन्ध रखते हैं ऐसे व्यक्तियों के आदर्श, उद्देश्य, मूल्य दो में विभक्त हो जाते है।

 तनावपूर्ण विघटन होता है।

 सांवेगिक विघटन होता है।

 दृष्टिकोण सीमित हो जाता है।

 घृणा का वीभत्स रूप देखने को मिलता है।

4. खून खराबा तथा आर्थिक हानि

 संघर्ष में जन तथा धन दोनों की हानि होती है।

 यदि दोनों पार्टियाँ समान शक्तिशाली होती है तो व्यवस्थापन होता है अन्यथा आधिपत्य का परिणाम होता है।


 संघर्ष के स्वरूप 

 संघर्ष के प्रायः दो स्वरूप होते हैं:-

 1. उद्देश्य के आधार पर संघर्ष-युद्ध, कलह, प्रतिद्वंदिता, मुकदमेबाजी, आदि।

2. समूह भागीकरण के आधार पर संघर्ष-प्रजातीय-संघर्ष, सांस्कृतिक संघर्ष, राजनैतिक संघर्ष, धार्मिक संघर्ष, औद्योगिक संघर्ष, आदि। संघर्ष का समाजशास्त्री महत्व

 संघर्ष जहाँ एक ओर विघटन उत्पन्न करता है वहीं दूसरी ओर अनेक आवश्यक गुणों का विकास भी करता है। ये निम्न गुण हैंः

1. चेतनता का विकास 

- सदैव सतर्क रहते हैं।

-अवसर का उपयोग करते हैं।

-स्थिति का निरीक्षण एवं परीक्षण करते हैं

2. सहयोग में वृद्धि 

-पारस्परिक सहयोग बढ़ जाता है।   

 -सामूहिक एकरुपता बढ़ जाती है।

3. परिश्रम में वृद्धि 

-व्यक्ति अधिक से अधिक परिश्रम करता है।   

-नवीन ज्ञान अर्जित करता है।

4. शक्ति का ज्ञान  -समस्त श्रोतों का ज्ञान होता हे।   

-क्षमता का ज्ञान होता है।   

-साधनों का ज्ञान होता है।

 5. आत्म चेतना विकास

-ज्ञान एवं बुद्धि का विकास होता है।         

-निर्णय क्रिया एवं प्रत्यक्षीकरण में सूक्षमता आती है।

6. सामूहिक भावना का

-समूह हित की भावना बढ़ती है। 

  विकास 

-नये समूह निर्मित होते हैं।

7. चरित्र निर्माण

 -गुणों का प्रकटन होता है।   

-आत्म स्थापन की इच्छा पूरी होती है।

इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि संघर्ष का होना भी समाज के हित में है परन्तु अधिक संघर्ष हानि पहंुचाने लगता है। इसीलिए संघर्ष को टालने के सदैव प्रयत्न किये जाते हैं।