वर्धा में JNU के प्रो. सुबोध नारायण मालाकार का "समकालीन अफ्रीका में गांधी का अभिग्रहण" पर विशेष व्याख्यान.



वर्धा, 6 अक्टूबर 2018। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती व्याख्यान श्रृंखला के तहत गाँधी एवं शांति अध्ययन विभाग एवं महात्मा गाँधी फ्यूजी गुरुजी समाज कार्य अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वधान में कस्तूरबा कक्ष में ‘समकालीन अफ्रीका मे गाँधी अभिग्रहण’ विषय पर जेएनयू के प्रोफ़ेसर सुबोध नारायण मालाकार ने व्याख्यान दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. आनंदवर्धन शर्मा ने किया जबकि संचालन गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राकेश मिश्र ने किया। स्वागत वक्तव्य गाँधी एवं शांति अध्ययन विभाग के विभागयाध्यक्ष प्रो. नृपेन्द्र प्रसाद मोदी ने दिया। उक्त अवसर पर मुख्य वक्ता प्रो. सुबोध नारायण मालाकार ने कहा कि, गांधीजी से अफ्रीका सहित पूरी दुनिया के लोग प्रभावित हैं। हालांकि उपनिवेशवादी इतिहासकार और लेखक अफ्रीका को ‘डार्क कंटीनेंट’ करार देकर उसे हीन ठहराते हैं। अफ्रीका से भारत का नजदीक का रिश्ता रहा है। ईसा से पूर्व भी अफ्रीका से भारत का व्यापारिक संबंध था। दिल्ली सल्तनत की महिला शासिका रज़िया सुल्तान की सेना मे दस हजार इथोपियन सैनिक शामिल थे। इथोपिया में अकाल की वजह से ये घुड़सवार सैनिक पलायन कर भारत आ गए थे। इससे पूर्व भारत में आर्य, शक, कुषाण, हूण, यूनानी और अफ्रीकन सभी आए हैं। भारत की साझी संस्कृति रही है। बाहर से आए लोग भी यहाँ की संस्कृति में घुल- मिल गए। उन लोगों ने भारत के बदलाव-विकास में बहुत योगदान दिया है। आज भारत में वे शिद्दी जाति कहलाते हैं।
उन्होंने भारत और अफ्रीका के ऐतिहासिक संबंधों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालते हुए कहा कि अफ्रीका में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता रही है। औद्योगिक क्रांति के बाद यूरोपियन देशों के लोग कच्चे माल की आपूर्ति के लिए अफ्रीका पहुंचे। फ्रांस ने अफ्रीका के 25 देशों को कब्जे मे ले लिया था और उसमें प्राकृतिक संसाधनों की तलाश शुरू कर दी। 14 देश ब्रिटेन ने और बाकी स्पेन व बेल्जियम ने भी अफ्रीकी देशों पर कब्जा कर लिया। फिर बाद में साम्राज्यवादी देशों में इन देशों पर कब्जे को लेकर आपसी झगड़े होने लगे, इससे निबटने के लिए 1885 में बर्लिन कान्फ्रेंस में अफ्रीका का आपसी सहमति से साम्राज्यवादी देशों के बीच बंटवारा हुआ। किन्तु आपसी झगड़े रुके नहीं और अंतत: प्रथम विश्व युद्ध हुआ। उन्होंने कहा कि पूंजीवाद युद्धों के बिना जीवित नहीं रह सकता है। प्रथम विश्वयुद्ध का अंत वारसाय की संधि से हुआ। आगे उन्होंने कहा कि इस उपनिवेशवादी दौर में अफ्रीकी देशों की जनता पर बर्बर अत्याचार हुआ। ब्रिटिश कालीन भारत में गरीब मजदूरों को एक एग्रीमेंट के तहत अफ्रीका ले जाया गया। उन्हें प्रलोभन देकर ले जाया गया। किन्तु वहां उनका भयावह शोषण प्रारम्भ हो गया। महात्मा गाँधी गुजरात के एक मुस्लिम व्यापारी के वकील बनकर अफ्रीका गए थे। किन्तु वहाँ रंगभेद के वजह से गांधीजी को भी बहुत अपमानित किया गया। अंग्रेज़ दक्षिण अफ्रीका के काले लोगों के साथ-साथ भारत के लोगों के साथ भी काफी भेदभाव और शोषण करते रहे। दक्षिण अफ्रीका का भारतीयों को इस शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए सत्याग्रह की शुरुआत की। वहाँ गांधीजी ने अन्य नेताओं के साथ मिलकर नेशनल इंडियन कांग्रेस की भी स्थापना की। फिर वहां लम्बा सत्याग्रह चला। वर्ष 1914 के अंत में गांधीजी वहाँ से वापस भारत के लिए निकल पड़े थे। गाँधी ने जब भारत में सत्याग्रह प्रारम्भ किया तो इस संदेश सभी अफ्रीकी देशों में जादू जैसा असर हुआ। अफ्रीकी देशों की पीड़ित जनता ने गाँधी से प्रेरणा ग्रहण किया था। आज भी अफ्रीकी देशों के लोग गांधीजी को अत्यंत ही श्रद्धा के साथ याद करते हैं। भारत आने के बाद गांधीजी ने अफ्रीका के संघर्ष को लेकर तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नीति को काफी प्रभावित किया था। आज भी अफ्रीकी देशों में गाँधी के नाम पर कई संस्थाएं और गाँधी की मूर्ति लगी हुई है।
आगे उन्होंने कहा कि आज एक बार फिर अफ्रीकी देश दयनीय स्थिति में पहुँच रहे हैं। वहां के तेल और अन्य खनिज पर विकसित एवं विकासशील देशों की लुटेरी नज़र है। नाइजीरिया के तेल खनिज पर अमेरिका का कब्जा हो गया। भूमंडलीकरण के मौजूदा दौर में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि के जरिये अफ्रीकी देशों पर खतरनाक नियम सौंप दिये गए हैं। 1954 में सभी 54 अफ्रीकी देशों ने अपना यूनियन बनाया था। भारत का लगभग इन सभी देशों के साथ अच्छा संबंध कायम हुआ है। इस संबंध की बुनियाद में महात्मा गाँधी की प्रेरणा ही है। विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. के.के. सिंह ने उक्त अवसर पर कहा कि समकालीन अफ्रीकी देशों में गांधीजी की स्मृति और प्रेरणा मौजूद है और भारत से उन देशों के साथ संबंधों के पीछे गाँधी का प्रभाव है, यह हमारे लिए गर्व का विषय है।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रतिकुलपति प्रो. आनंदवर्धन शर्मा ने कहा कि अफ्रीकी देशों के विद्यार्थी बड़ी तादाद में भारत के विश्वविद्यालयों में अध्ययन के लिए आते हैं। अफ्रीका को शैक्षणिक व्यवस्था सुदृढ़ बनाने के लिए इस रूप में भारत का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में गोरे-काले के बीच भेदभाव व्याप्त है। इसे दूर करने की दृष्टि से गाँधी का वैश्वविक प्रभाव महत्वपूर्ण रहा है। गाँधी ने वैश्विक राजनीति को प्रभावित किया है। उपनिवेशवाद से मुक्ति का गाँधी ने जो रास्ता दिखाया वह भारत और अफ्रीकी देशों सहित पूरी दुनिया के लिए आज भी बहुत उपयोगी है। उपभोक्तावाद और आवश्यकताओं को निरंतर बढ़ाते जाने से देश-दुनिया में संकट गहराता जा रहा है। इससे उबरने की प्रेरणा गांधी से ग्रहण की जा सकती है। आभार ज्ञापन महात्मा गाँधी फ्यूजी गुरुजी समाज कार्य अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. मनोज कुमार ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के प्राध्यापक क्रमश: डॉ. सुरजीत कुमार सिंह, डॉ. शैलेश मरजी कदम, डॉ. बीरेंद्र यादव, डॉ. मुन्नालाल गुप्ता, शरद जायसवाल, रवि कुमार, डॉ. शिवसिंह बघेल, डॉ. सत्यम सिंह,
गजानन एस. निलामे, डॉ.मुकेश कुमार सहित दर्जनों छात्र-छात्राएँ एवं शोधार्थीगण उपस्थित थे।



रिपोर्ट - डॉ. मुकेश कुमार, माधुरी श्रीवास्तव एवं खुशबू साहू