सामुदायिक संगठन - Community Organization


     सामुदायिक संगठन का तात्पर्य किसी विशेष क्षेत्र में वहाँ की आवश्यकताओं का पता लगाकर तथा साधनों की खोज करके उसमें सामंजस्य स्थापित करना होता है। इस प्रक्रिया के मध्य जो कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं उनको कार्यकर्ता दूर करने का प्रयास करता है, जिसके परिणामस्वरूप समुदाय अपनी समस्याओं एवं आवश्यकताओं को समझने में पूर्ण समर्थ होता है तथा समस्या का समाधान करने का प्रयास करता है। सामुदायिक कार्यकर्ता का उद्देश्य चेतन या अर्धचेतन समस्याओं को प्रकाश में लाना, लोगों का ध्यान उस ओर आकर्षित करना, समस्या के समाधान के उपाय सोचना , उन पर वाद विवाद करना, कार्यक्रम नियोजित करना, लोगों को उसमें भाग लेने के लिए प्रेरित करना तथा सहयोग प्राप्त करना होता है।      

 सामुदाय में सदैव ऐसे कारक मौजूद रहते है जो संगठन को कमजोर बनाने की सदैव सोचा करते हैं और समय आने पर कमजोर कर देते हैं। यह अवसर उस समय विशेष रूप से देखने को मिलता है जब संघर्ष या कोई विशेष परिवर्तन होता है। सामुदायिक कार्यकर्ता सदैव प्रयत्न करता है कि भौतिक तथा अभौतिक कारकों में संतुलित रूप से परिवर्तन हो जिससे सामान्य स्थिति बनी रहे। 

सामुदायिक संगठन की निम्नलिखित प्रमुख अवस्थाएँ होती हैं :- 

(1) सामुदायिक कल्याणकारी संरचना, उसकी सामाजिक एजेन्सियों और उनके कार्यों के सम्बन्ध में ज्ञान, 

(2) जनता को सर्वोत्तम सेवाएँ प्रदान करने के लिए सार्वजनिक तथा असार्वजनिक सामाजिक एजेन्सियों में उपलब्ध सुविधाओं में सहयोग, 

 (3) सार्वजनिक तथा असार्वजनिक एजेन्सियों के स्तर में सुधार, 

(4) व्यापक मानवीय आवश्यकताओं का निश्चय करने के लिए सामाजिक अनुसन्धान एवं सर्वेक्षणों का प्रयोग, 

(5) उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखते हुए इन आवश्यकताओं का विश्लेषण करना, 

(6) आँकड़ों का संश्लेषण, तथ्यों का परीक्षण और आवश्यकताओं की अविलम्बिता तथा महत्व के अनुसार प्राथमिकता का निर्धारण,  

(7) अमहत्पूर्ण सेवाओं का लोप अथवा समंजन और आवश्यकताओं के अनुसार नयी सेवाओं का विकास, 

(8) सभी इच्छुक समूहों एवं जनता के लिए सेवाओं के विस्तार अथवा नयी सेवाओं के सृजन के उद्देश्य से आवश्यकताओं की व्याख्या, 

(9) समाज कल्याण कार्यों के लिए आर्थिक एवं नैतिक बल का संग्रह और  

(10) शिक्षा, सूचना तथा लोगों के सक्रिय भाग द्वारा समाज कल्याण आवश्यकताओं के प्रति सामुदायिक चेतना की सृष्टि। समुदायिक संगठन की रूपरेखा के अन्तर्गत समाज कार्यकता र्अपने व्यावसायिक ज्ञान, कुशलता तथा अनुभव का योगदान करता है : 

(क) सामाजिक दशाओं की जानकारी के कारण समाज कार्यकर्ता अन्य लोगों की स्वस्थ एवं कल्याणकारी आवश्यकताओं की पहचान करने में हाथ बँटाता है। 

(ख) उसमें आवश्यक सर्वेक्षण तथा गवेषणात्मक तथ्य प्राप्त करने तथा दशाओं में सुधार की योजना तैयार करने के लिए लोगों को प्रेरित करने की योग्यता रहती है। 

(ग) सामाजिक कार्यकर्ता सामाजिक आवश्यकताओं की व्याख्या अपने सेवार्थियों, पड़ोस और समुदाय के लिए करने में समर्थ होता है।