सुधारात्मक वैयक्तिक सेवा कार्य - Corrective Social Case Work -
आपराधी को केवल दण्ड देकर उसकी मनोवृत्ति एवं व्यवहार में परिवर्तन नहीं लाया जा सकता हैं। दण्डशास्त्र के नवीन दृष्टिकोण के अनुसार अपराधों का मुख्य कारण समाज की सामाजिक, आर्थिक दोषपूर्ण संरचना है। अतः अपराधी को दण्ड देना अवांछित , अमानवीय एवं अनैतिक है। अपराधी के व्यक्तित्व में परिवर्तन लाकर उसकी मनोवृत्ति को बदला जा सकता है। अतः अपराधी की दण्ड की अवधि में हर सम्भव प्रयत्नों द्वारा सहायता पहुँचाकर उसके व्यक्तित्व में निहित आत्म-क्षमताओं एवं गुणों को विकसित करना सुधारात्मक दृष्टिकोण का प्रमुख विचार है। यह विचारधारा तथा दर्शन ऐसी वैज्ञानिक पद्धति का विकास करना चाहती है जिसके उपयोग द्वारा अपराधी दण्ड युक्ति के उपरान्त एक आत्म-सम्मानी, निर्भर, आत्म विश्वासी एवं उत्तरदायी नागरिक की तरह समाज में जीवन यापन कर सके।
सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य का दृढ़ विश्वास है कि प्रत्येक व्यक्ति में एक निहित आत्मसम्मान की भावना एवं सुधार की क्षमता होती है। यदि उसे सहायता पहुँचायी जाय तो वह अपनी समस्याओं का निस्तारण मार्ग ढूँढ़ सकता है। किसी भी व्यक्ति में कोई जन्मजात दोष नहीं होता है, व्यक्तिगत एवं सामाजिक परिस्थितियाँ व्यक्ति को समाज विरोधी कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है। सामाजिक परिस्थितियाँ बहुत बड़ी सीमा तक उसके दोषपूर्ण समायोजन के लिए उत्तरदायी हैं। हर व्यक्ति में परिवर्तन के लक्षण विद्यमान होते हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति का सुधार भी सम्भव है। अतः क्रूर तथा अमानवीय तरीकों के स्थान पर सुधारात्मक तरीकों के प्रयोग द्वारा अपराधी में सुधार लाया जा सकता है।
सुधार शब्द का अर्थ है- अपराधी व्यक्ति को कानून का पालन करने वाले नागरिक की भाँति जीवन व्यतीत करने योग्य बनाना।
इलियट के अनुसार - सुधार वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा आधुनिक समाज कानून तोड़ने वाले व्यक्तियों की आपराधिक मनोवृत्ति में परिवर्तन लाने तथा उनकी जीवन शैली को सामाजिक नियमों के अनुरूप ढालने का प्रयत्न करता है। वेनेट के अनुसार सुधार का उद्देश्य अपराधी को उसकी दण्ड अवधि में एक नई दिशा प्रदान करना है। कोनार्ड के अनुसार सुधार का मुख्य उद्देश्य अपराधी के व्यक्तित्व में एक परिवर्तन लाना है जिससे उसके मन में कारागार अथवा सुधार संस्था से मुक्ति के बाद अच्छा एवं उपयोगी जीवन बिताने की इच्छा उत्पन्न हो सके।
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