बाल अपराधियों के सुधार की आवश्यकता तथा महत्व - Reform and Importance of Child Criminals
बाल अपराधियों के सुधार की आवश्यकता तथा इसके महत्व का प्रश्न दण्ड के आधुनिक सुधारवादी दर्शन के सिद्धान्तों एवं विधियों के अभ्युदय के साथ संलग्न है। दण्ड के प्राचीन सिद्धान्तों एवं विधियों में अपराधियों (चाहे वे बालक हों या वयस्क) का कठोरतम दण्ड देने का भाव निहित था क्योंकि उस युग को स्वीकृत मान्यता यह थी कि समाज अपराधी के प्रति प्रतिशोधात्मक दृष्टिकोण रखने का हकदार है और अपराधियों को कठोर दण्ड देकर ही समाज, गैर अपराधी व्यक्तियों में कानून के भयपूर्वक पालन की आदत डाल सकता है।
अतएव बाल अपराधियों के लिए एक ऐसी कारागार प्रशासन की व्यवस्था को कार्यान्वित किया गया जिसमें उनकी शिक्षा, औद्योगिक प्रशिक्षण तथा मनोगत सुधार की पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हों।
बाल अपराधी, पारिवारिक तथा सामाजिक परिस्थितियों का शिकार हो जाते हैं और उनकी अपराधिकता आकस्मिक होने के साथ-साथ उनकी अपरिपक्व बुद्धि, कानून के परिणामों के प्रति अज्ञान तथा अपराध कार्य करने की योजना का प्रदर्शन मात्र है। अतः ऐसी व्यवस्था होनी अनिवार्य है जिसका प्रमुख उद्देश्य उनका सुधार तथा चारित्रिक पुनर्गठन करना हो। इसी विश्वास पर आधारित मान्यताओं को स्वीकार करके आधुनिक युग में बाल अपराधियों के वयस्क अपराधियों से भिन्न प्रकार के बाल सुधार संस्थाओं की स्थापना की गयी है। बाल अपराधियों के सुधार की दिशा में जो भी अन्तर्राष्ट्रीय प्रगतियाँ हुई उनमें बाल न्यायालयों की स्थापना एक महत्वपूर्ण कदम है।
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