संस्कृत व्याकरण में नासिक्य ध्वनि
नासिक्य
ध्वनि - पहले पाठ में हमने पढ़ा था कि
प्रत्येक वर्ग का पाँचवा अक्षर नासिक्य होता है। किसी शब्द में अनासिक्य व्यंजन से
पहले नासिक्य ध्वनि के लिए उस व्यंजन के वर्ग का पाँचवा अक्षर लिखा जाता है,
जैसे-
अङ्कः
- अंक, चिह्न चञ्चल
- चंचल
अन्तः
- अंत कण्ठः
- गला
कम्प:
- कंपन आरंभ:
- आरंभ
अर्घ
स्वर (य, र, ल, व),
ऊष्म व्यंजन (श. प. स) और ह से पहले नासिक्य ध्वनि का रूप
कुछ अस्पष्ट-सा होता है, इसलिए सभी अर्धस्वरों और ऊष्म
व्यंजनों से पहले की नासिक्य ध्वनि को प्रायः उससे पहले वाले अक्षर के ऊपर बिंदी (ं)
लगाकर प्रकट किया जाता है,
जैसे-
संयमः
संयम संशय
संदेह
अंश
भाग,
अंश संसार संसार
संवाद:
बातचीत संहारः
विनाश
टाइम
और छपाई की सुविधा के कारण संयुक्ताक्षर में पंचमाक्षर के स्थान पर बिंदी का
प्रयोग बढ़ता जा रहा है, इसलिए ऊपर दिए गए
शब्द संस्कृत में भी निम्नलिखित रूप में लिखे हुए मिल सकते हैं:
अंक:,
अंत:, कंप:, चंचल, कंठ:, आरंभ:
टिप्पणी
:- हिन्दी में ये शब्द इस रूप में भी स्वीकृत हैं। (भारत सरकार द्वारा गठित वर्तनी
समिति के निर्णयों के अनुसार ऐसे शब्दों को बिंदी के साथ ही लिखा जाना चाहिए)।
परन्तु संस्कृत के पारम्परिक पण्डितों का आग्रह है कि इन्हें पंचमाक्षरों के साथ
ही लिखा जाए। चूँकि नासिक्य व्यंजनों का निर्धारण उनके बाद वाले व्यंजन के अनुसार
होता है इसलिए बिन्दु से लिखने पर भी उनके उच्चारण में कोई अन्तर नहीं पड़ता।
संयुक्त
अक्षर में ‘इ’ की मात्रा (ि) लगाते समय पूरे संयुक्ताक्षर को एक वर्ण माना जाता है
और ‘इ’ की मात्रा संयुक्ताक्षर से पूर्व लिखी जाती है चाहे इ का उच्चारण
संयुक्ताक्षर के बाद ही क्यों न हो जैसे
शान्तिः
- शान्ति, मुक्ति: - मुक्ति
टिप्पणी:-
जब हलन्त के प्रयोग से संयुक्ताक्षर बनता है तो इ की मात्रा दूसरे अक्षर से पहले
लगती है,
जैसे
बुद्धि:
- बुद्धि पट्टिका – पटिया
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