त्रिपुरा वेस्ट डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट श्री शैलेश कुमार यादव क्यों ससपेंड हुए।

 


#डिस्ट्रिक्ट_मैजिस्ट्रेट_नहीं_डिस्ट्रिक्ट_मैनेजर_चाहिए◆


त्रिपुरा वेस्ट डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट श्री शैलेश कुमार यादव का व्यवहार देखकर किसी का भी मन क्षोभ से भर जाएगा। यह ठीक है कि आप लॉ फॉलो करा रहे थे। लॉ विल टेक इट कोर्स। राइट। लेकिन जिस भी व्यक्ति ने यह स्टेटमेंट बनाया है वह इसमें टैग वर्ड जोड़ना भूल गया....लॉ विल टेक इट्स कोर्स, लॉफुली। सिर्फ सही करना जरूरी नहीं है, उसे सही तरीके से कार्यान्वित करना भी जरूरी है। सिर्फ कानून का पालन कराना जरूरी नहीं है, उसे कानूनी ढंग से कराना भी उतना ही जरूरी है। 


किसी के वन्स इन आ लाइफ फंक्शन में घुसकर दूल्हे को गले में हाथ लगा कर ठेलना, दुल्हन को स्टेज से भगाना, पंडित को थप्पड़ मारना, सिर्फ कारण पूछने वाले को अरेस्ट करने की धमकी देना... यह सब क्या है? 


क्या नौकरशाही की ट्रेनिंग में पेशेंस रखना, गुस्से को काबू में रखना नहीं सिखाया जाता है। यह प्रजातांत्रिक देश है। प्रजातंत्र में प्रजा सर्वोच्च होती है। हर नेता और नौकरशाह उसका सेवक होता है। वैसे भी जिस देश का प्रधानमंत्री कहता हो की वो प्रधानसेवक है उस देश के किसी नौकरशाह में इतनी अकड़ कैसे पैदा हो जाती है कि वो पब्लिक को खुलेआम पीटे और धमकाए। अगर कोई गलती करता है तो उसके लिए लॉ है, एक्ट है, कोर्ट है, प्रोसीजर है, बजाय उस प्रोसीजर का अनुकरण करने के ये फिल्मी ड्रामा टाइप दुस्साहस करने की हिम्मत नौकरशाही में कैसे उतपन्न हो गयी। ऐसे लोगों पर दंडात्मक कारवाई से ज्यादा जरूरत इस टैंडेंसी के मूल पर प्रहार करने की है।


2007 में तहलका डॉट कॉम में एक खबर पढ़ी थी, ias टॉपर अंकुर गर्ग फाइनली डिलिवर्ड हिज किक। तब उसने एक 13 वर्षीय बच्चे के कमर पर जूते से मारा था। तब से अब तक क्या बदला है। इस तरह की घटनाओं की एक लंबी फेहरिस्त है। 


मुझे इंफोसिस के संस्थापक श्री नारायण मूर्ति का सुझाव बारम्बार याद आता है। There should be no District magistrate, there should be District manager.

सत्य है कि हमें जिला दंडाधिकारी की नहीं, जिला प्रबंधक की जरूरत है।


Sunil kumar sinkretik 

(लेखक 'बनकिस्सा' व 'बात बनेचर')