संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्वव्यापी विकास के मद्देनजर सहस्त्राब्दि विकास के उद्देश्य (UNO aims for Millennium Development in view of Worldwide Development)

 


संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्वव्यापी विकास के मद्देनजर सहस्त्राब्दि विकास के उद्देश्य (UNO aims for Millennium Development in view of Worldwide Development) 


सहस्त्राब्दि विकास उद्देश्यों की स्थापना, सितंबर 2000 में की गयी। और इसके अर्न्तगत मानव विकास के विभिन्न संकेतकों को अपनाया गया एक बेहतर विश्व की कल्पना करते हुए। 1990 के विश्व सम्मेलन में ही विश्व स्तर पर सभी के सहयोग तथा सहभागिता के आधार पर MDGs को प्रस्तावित की किया गया और 2015 तक कुछ विकास की चुनौतियों पर विषय पाने का लक्ष्य रखा गया और उन्हें आठ की संख्या में निश्चित किया गया और रखा गया। और वो आठ (8) M.D.Gs निम्न थे,


1.धन विहीनता को कम करना


2.भूख का निवारण


3. अस्वस्थता को दूर करना


4. स्वच्छ पानी की उपलब्धता को बढ़ाना


5. लिंग अनुपात ठीक करना


6. शिक्षा की कमी दूर करना


7. पर्यावरण की शुद्धता को दूर करना


तथा भारत इस बात के वचन बद है कि वो 2015 तक निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति करेगा। ये एक अलग प्रश्न है कि ये कहाँ तक सफल प्रयास होगा। जैसा कि हम विकास के बारे में बात कर रहे है, तो हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिन मानदण्डों को MDGs ने विश्व के लिए बनाया है और उसे एक अपने सहयोग के रूप में लेने के लिए, सभी स्वयं से ही संस्थाओं तथा सरकारी संस्थाओं आग्रह किया है कि वे जब भी अपने लिए अपनी संस्थाओं के उद्देश्य पूर्ति हेतु नीति निर्धारण करें तो उन्हें स्वीकार कर उपयोग में लाएँ। विकासशील देशों हेतु MDGs ने एक प्रेणात्मक उद्देश्य दिया है। इन सभी उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु अथवा उनको प्राप्त करने के लिए भारत एक बहुत बड़े क्षेत्र वाला देश है ना हि केवल मानव विकास बल्कि आर्थिक विकास हेतु भी भारत बाध्य है।


जून 2004 में नई दिल्ली कार्यालय ने एक सम्मेलन का आतिथ्य किया, जिसका शीर्षक "सहस्राब्दि विकासीय उद्देश्य और भारत" (Attaining the Millennium Development Goals in India: Role of Public Policy and Service Delivery) जन नीतियाँ तथा उनका सेवा प्रयोग और इसी सम्मेलन में जो विचार विमर्श हुए उनका निचौडत्र निकला कि जो नीति हस्तक्षेप द्वारा MDGs के उद्देश्यों को प्राप्त करने की कोशिश है, उन्हे कुछ वैयक्तिक अध्ययनों द्वारा समझाने की कोशिश की गयी। निम्न उद्देश्यों को समझाया गया


  1. अति धन विहीनता तथा भुखमरी का निराकरण


  1. सर्वव्यापी बुनयादी शिक्षा मुहैया कराना


  1. लिंग भेद न करके समान अधिकार देना तथा महिला को शक्तिशाली तथा मजबूत बनाना


  1. बाल मृत्युदर में कमी लाना


  1. जच्चा को स्वास्थ्य को प्रमुखता देना


  1. एच०आई०वी० / एडस, मलेरिया तथा संक्रामण रोगों का निराकरण


  1. पर्यावरणीय सुरक्षा तथा उसका जारी रहना


  1. एक विश्वस्तरीय सहभागिता को बनाना जिससे कि विकास का कार्य सुचारू रूप से चलता रहे।






गरीबी तथा शोषण


गरीबी तथा शोषण में दोनों ही शब्द एक दूसरे के पर्याय से लगते है क्यूंकि इंसान आज इतना स्वार्थी हो चुका है कि उसे अपनी तरक्की के आगे कुछ सूझता ही नहीं है। महात्मा गाँधी जी ने एक बार कहा था "इस पृथ्वी पर हरेक के लिए पर्याप्त साधन मौजूद है जो कि आवश्यकता की पूर्ति हेतु आवश्यक है परन्तु वही यदि "लालच" आ जाए तो वही सभी साधन कम पड़ जाते है और अनियमितता का जाती है। और यही लालच निर्धन का शोष्ण करती है। वर्तमान समय में उपभेक्ता की आवश्यकताओं में बदलाव भी आ गया है, और इसी कारण अमीर तथा गरीब में पूरे देश में बड़ी तादाद में अनियामीतता भी आ गयी है। भारत एक गरीब देश था और ये एक पूर्णधारणा थी, इसका कारण पश्चिमी देशों की सभ्यता औद्योगिककरण ही विकास का 'मॉडल' समझे जाते थे।

गरीब देश क्यूंकि विकास की राह पे इसीलिए उन्हें शोषित करने लायक समझा जाता था। शोषण में उन्हे दान दे दे अपमानित करना भी आता है। जब भी समाज में इस प्रकार की बुराईयाँ तथा असमानता आती है, और मानव समाज पर इसका असर पड़ता है, तो अस्तव्यव्यसता बढ़ जाती है, जिससे समाज के स्तर पर कई प्रकार की समस्याएँ पनपने लगती है और ठीक हो जाता। क्यूंकि समाजिक असमानता को दूर करना तथा मानव सेवा ही उनका मुख्य उद्देश्य होता है। गैर सरकारी संस्थाएँ समस्याओं से निपटने के लिए कई तरह से हस्तक्षेप कर सकती है, और इसी क्रम में शिक्षा मुहैया औपचारिक शिक्षा मुहैया नहीं करा पाती है तो अनौपचारिक शिक्षा एक अच्छा साधन विकल्प है।





गऱीबी तथा असुरक्षा

दलितों तथा लड़कियों कि संख्या अशिक्षितों में ज्यादा होने की वजह से कार्यक्रम की लचीला भी बनाया जाना जरूरी होता है। और कार्यक्रम को एक्लीकृत हो तो और भी सफलता हासिल कर सकता है। सरकार की तरफ से ऐसे बहुत से कार्यक्रम बनाए जाते है, योजनाएँ तैयार की जाती है जो कि यदि ठीक तरीके से फलीभूत हो जाँय तो समस्याओं में कमी आ जाएगी और संस्थएँ उन योजनाओं को अपने उद्देश्य के माध्यम से कार्यान्वित भी कर सकती है।

निर्धनता के कारण गरीब सबसे ज्यादा असुरक्षित है। और साफ ही व्यवसायिक तौर पर सबसे ज्यादा शोषित भी होते है। कुछ मुख्य कारण तथा उसके पड़ने वाले प्रभावों जिससे असुरक्षित आय को हम उन्हें निम्न प्रकार से समझ सकते हैं:


  1. गरीबी के कारण असुरक्षा


  1. अज्ञानता के कारण असुरक्षा


  1. शक्ति के कारण असुरक्षा


  1. जीवन शैली के कारण असुरक्षा


  1. जीवन यापन के तरीकों के कारण असुरक्षा


  1. सुविधाओं का मँहगा होना, इत्यादि ।


और इन्ही असुरक्षा की भावनाओं के कारण जो प्रभाव मानक तथा मानव विकास पर पड़ते है वो निम्न हो सकते है:


1. नशे की लत / मादक द्रव्यों का सेवन


2. मानव तस्करी


3. मजदूर तथा असुरक्षित जीवन


4. बाल श्रम आदि ।


यदि संस्थाएँ इन्ही मुद्दों पर कार्य करें तो समाज का उत्थान हो सकता है।