रोकड़ बजट तैयार करना , रोकड बजट बनाने की विधियां - Cash Budget Preparation Methods of Cash Budget Preparation

रोकड़ बजट तैयार करना , रोकड बजट बनाने की विधियां - Cash Budget Preparation Methods of Cash Budget Preparation


उपक्रम में रोकड़ बजट बनाने का प्रमुख दायित्व बजट नियन्त्रक या प्रधान वित्तीय अधिकारी पर होता है। सामान्यतता रोकड़ बजट की अवधि अन्य विभागीय बजटों के अनुरूप ही रखा जाती है। इसमें दीर्घकालीन व अल्पकालीन दोनों ही प्रकार के पूर्वानुमान दिये जा सकते हैं। अधिकाँशतः यह बजट एक वर्ष के लिये तैयार किया जाता है और उसे व्यवसाय की प्रकृति और रोकड़ स्थिति के अनुसार तिमाही, मासिक, साप्ताहिक या दैनिक अवधियों में विभाजित किया जाता है। यदि व्यवसाय की रोकड़ स्थिति सुदृढ़ नहीं है या व्यावसायिक क्रियायें अस्थिर है तो साप्ताहिक या दैनिक आधार पर बजट बनाना ही लाभदायक होगा।


रोकड बजट बनाने की विधियां (Methods of Cash Budget)


रोकड़ बजट बनाने की तीन पद्धतियाँ है -


(1) प्राप्ति एवं शोधन पद्धति (Receipts and Payments Method),


(2) समायोजित लाभालाभ पद्धति (Adjusted Profit and Loss Method or Adjusted Earning Method),


(3) स्थिति विवरण पद्धति (Balance Sheet Method)


हम नीचे रोकड़ बजट बनाने की पहली विधि का वर्णन कर रहे है क्योंकि यही व्यवहार में सबसे अधिक लाई जाती है।


(1) प्राप्ति एवं शोधन पद्धति - यह सर्वाधिक प्रचलित पद्धति है।

अल्पकालीन रोकड़ पूर्वानुमानों के लिए सामान्यतया इसी पद्धति का प्रयोग किया जाता है। यह पद्धति अन्य दोनों पद्धतियों से अधिक विस्तृत है क्योंकि इसके अन्तर्गत बजट अवधि की सभी रोकड प्राप्तियों एवं भुगतानों को प्रकट किया जाता है। इसके निर्माण के लिए रोकड़ सम्बन्धी सूचनायें अन्य बजटों से प्राप्त की जाती है।


इस पद्धति में रोकड बजट को दो भागों में विभाजित किया जाता है। एक भाग में रोकड़ प्राप्ति की राशि व समय और दूसरे भाग में रोकड भुगतान की राशि व समय दिखलाया जाता है।


(अ) रोकड प्राप्तियाँ (Cash Receipts) व्यवसाय में रोकड़ प्राप्ति के निम्न स्रोत होते हैं-


(i) क्रिया-कलापों से उत्पन्न रोकड़ प्राप्तियाँ ( Cash Receipts arising from operations) इसके अन्तर्गत ग्राहकों से प्राप्त अग्रिम, नकद बिक्री व देनदारों तथा प्राप्त बिलों से उगाही गई राशि आती है। नकद बिक्री से रोकड प्राप्ति का पूर्वानुमान अपेक्षाकृत सरल होता है परन्तु इस सम्बन्ध में संस्था की नकद छूट नीति को ध्यान में रखना चाहिए। उधार बिक्री की दशा में विक्रय की शर्तों, साख नीति, ग्राहको की स्थिति, व्यवसाय की परिपाटी, और विक्रय बिन्दु तथा वसूली बिन्दु के बीच समयान्तर (Time lag) पर उचित ध्यान देना चाहिए। इसके सम्बन्ध में साख व वसूली विभाग महत्वपूर्ण आँकड़े एकत्रित कर सकता है।


(ii) गैर क्रिया-कलाप रोकड़ प्राप्तियाँ (Non-operating cash receipts) - इसमें ब्याज, लाभांश, किराया कमीशन, रायल्टी, स्क्रेप की बिक्री, कर वापसी, गैर क्रियाकलाप आय सम्मिलित की जाती है।


(iii) पूँजी - सौदों से रोकड़ प्राप्तियाँ (Cash receipts from capital transactions) - इसमें स्थायी सम्पत्तियों व विनियोगों के विक्रय, अंशो की विक्री कर वापसी, गैर क्रियाकलाप आय सम्मिलित की जाती है।


(ब) रोकड़ भुगतान (Cash Disbursements) में मालूम की जा सकती है रोकड़ भुगतान की राशि निम्न मदों से मालूम की जा सकती है- 


(i) क्रिया-कलापों के लिये भुगतान (Cash Disbursements for operations) - इसमें निम्नलिखित है


(A) रोकड़ क्रय तथा देय खाते (Cash purchases and accounts payable) – इसमें कच्चे माल के विक्रेताओं को दिये जाने वाले अग्रिम, क्रय के समय किये जाने वाली रोकड़ी भुगतान व लेनदारों को दिये जाने वाले भुगतान सम्मिलित है।

ये अनुमान क्रयकी शर्तों प्राप्य छूट और क्रय बिन्दु व भुगतान बिन्दु के बीच समयान्तर ( time lag) पर आधारित होते हैं।


(B) श्रम ( Labour ) इसमें मजदूरी भुगतान में समयान्तर पर ध्यान रखना चाहिए।


(C) उपरिव्यय (Overheads) – इसमें कारखाना उपरिव्यय, विक्रय एवं वितरण उपरिव्यय तथा प्रशासन व सामान्य उपरिव्यय के लिए किए जाने वाले भुगतान सम्मिलित होते हैं। इस लागतों के सम्बन्ध में भुगतान के समयान्तर पर ध्यान रखना चाहिए।


(ii) गैर क्रियाकलापों व्ययों के लिए भुगतान ( Cash disbursements for non-operative expenses) इसमें वित्तीय व्यय (ब्याज किराया, लाभांश,

बोनस आदि), दान, आय-कर आदि के लिए किए जाने वाले भुगतान सम्मिलित है। इन व्ययों को उस अवधि में दिखलाया जाये जिनमें इनका वास्तविक भुगतान किया जाता है।


(iii) पूँजी सौदों के लिए भुगतान (Cash disbursements for capital transactions ) - यह स्थायी सम्पत्तियों व प्रतिभूतियों के क्रय के लिए आवश्यक रोकड अनुमानों से सम्बन्धित है। इसमें बैंक अधिविकर्ष की अदायगी, ऋण-पत्रों का भुगतान आदि मदें भी सम्मिलित की जाती है।


प्रत्येक अवधि के प्रारम्भिक रोकड़ शेष में उस अवधि में प्राप्त कुल रोकड़ को जोड़कर प्राप्त राशि से कुल भुगतान घटा दिये जाते हैं तथा शेष राशि नियंत्रण अवधि के अंतिम रोकड शेष को दर्शाता है।


(2) समायोजित लाभालाभ पद्धति (Adjusted Profit and Loss Method) - जहाँ पर रोकड़ के दीर्घकालीन पूर्वानुमान तैयार किये जाते हैं, वहाँ पर यह पद्धति उपयुक्त रहती है। इसे धन-प्रवाह तालिका भी कहते हैं क्योंकि इसके अन्तर्गत लाभ-हानि खाते को ही रोकड़ पूर्वानुमान में परिवर्तित किया जाता है। यह पद्धति बजटरी नियन्त्रण के लिए बहुत उपायेगी है।


इस पद्धति के अन्तर्गत रोकड़ के प्रारम्भिक शेष में बजट अवधि के अनुमानित लाभों को जोड़कर रोकड़ का अन्तिम शेष निकाला जाता है। इस पद्धति का मूल आधार यह है

कि किसी अवधि में व्यवसाय में जितने लाभ अर्जित किय जाते हैं उससे इस व्यवसाय में उतनी ही रोचकता में वृद्धि होगी (अर्थात् लाभ रोकड़) अतः यदि सम्बन्धित अवधि में कोई उधार सौदे, पूँजी सौदे, सभूत राशियों (Accruals), प्रावधान, स्टाक परिवर्तन या लाभ - समायोजन न हों तो लाभ-हानि खाते में दिखलाया गया शेष रोकड़ वही के रोकड़ शेष के बराबर होगा। यह मान्यता अव्यवहारिक है क्योंकि उपर्युक्त बाते कभी स्थिर नहीं रहती। अतः इस मान्यता में कुछ समायोजन करने आवश्यक हो जाते है। इस पद्धति में रोकड़ पूर्वानुमान बजट अवधि के लाभों से प्रारम्भ होते है और फिर इस अक को निम्नलिखित मदों से समायोजित किया जाता है -


(अ) जोड़े जाने वाली मदें (Items to be added)


(1) व्ययों की गैर रोकड़ी मदें ये व्यय की ऐसी मदे है जो कि लाभ-हानि खाते के नाम तो लिख दी जाती है परन्तु जिनसे रोकड बहिर्वाह (cash outflow) नहीं होता। ये निम्नलिखित हो सकती है -


(1) द्वास (Depreciation)


(ii) अपलिखित स्थगित व्यय (Written off deferred expenses)


(iii) अपलिखित अमूर्त सम्पत्तियों (Written off fictitious assets)


(iv) अपलिखित पूर्वदत्त व्यय (Written off prepaid expenses ) 


2. दो अवधियों के बीच सम्पत्तियों और शुद्ध मूल्य (Net Worth) में परिवर्तन जो कि नकदी की मात्रा में वृद्धि लाते है। ये निम्नलिखित है-


(i) अन्तिम स्कन्ध में कमी


(ii) विविध देनदारों में कमी


(iii) विभिन्न लेनदारों व अन्य दायित्वों में वृद्धि


(iv) उपार्जित व्यय (Accrued expenses )


(v) संयन्त्रों व अन्य स्थाई सम्पत्तियों का विक्रय


(vi) पूँजी का निर्गमन


(vii) ऋण - पत्रों का निर्गमन ।


(ब) घटाये जाने वाली मदें (Items to be deducted)


(1) आय की गैर- रोकड़ी मदें ये आय की ऐसी मदें हैं जिन पर आय बजट अवधि में अर्जित तो कर ली जायेंगी, परन्तु प्राप्त न हो सकेंगी, जैसे उपार्जित किराया, ब्याज, लाभांश, रायल्टी आदि ।


(2) दो अवधियों में सम्पत्तियों, दायित्वों और शुद्ध मूल्य के परिवर्तन जो कि रोकड़ की मात्रा में कमी लाते है। ये निम्नलिखित हो सकते हैं


(i) अन्तिम स्कन्ध में वृद्धि


(ii) विविध देनदारों में वृद्धि


(iii) विविध लेनदारों व अन्य दायित्वों में कमी


(iv) गत अवधि के अदत्त भुगतान


(v) ऋण-पत्रों या शोध्यनीय पूर्वाधिकार अंशों का शोधन


(vi) पूँजी वापसी


(vii) लाभांश भुगतान 


(viii) सम्पत्तियों का क्रय


(ix) अंशो या प्रतिभूतियों का क्रय।


(3) स्थिति विवरण पद्धति (Balance Sheet Method) रोकड के पूर्वानुमान लगाने की यह पद्धति सिद्धांत रूप में समायोजित लाभा - लाभ पद्धति के अनुरूप ही है। यह पद्धति रोकड़ के दीर्घकालीन पूर्वानुमान के लिये बहुत उपयुक्त है। इस पद्धति के अन्तर्गत आगामी अवधि के लिये, केवल रोकड़ को छोड़कर अन्य सभी मदों को दर्शाते हुये अनुमानित स्थिति विवरण बना लिया जाता है। फिर स्थिति विवरण के दोनों पक्षों की सन्तुलित किया जाता है, अन्तर रोकड़ शेष कहलाता है। यदि सम्पत्ति पक्ष को योग दायित्व पक्ष के योग से अधिक होता है तो वह अन्तर बैंक में रोकड़ शेष प्रकट करता है।